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Wednesday 17 September 2014

पुण्य तिथि पर स्मरण :हसरत जयपुरी


बृहस्पतिवार, 19 सितम्बर 2013 'लोकसंघर्ष 'से साभार


वो अपने चेहरे में सौ आफ़ताब रखते हैं इसीलिये तो वो रुख़ पे नक़ाब रखते हैं -



सलाम प्यार को , चाहत को , मेहरबानी को , सलाम जुल्फ को खुशबु की कामरानी को सलाम
सलाम गाल के तिलों को जो दिलो की मंजिल है ऐसी शायरी के अजीमो शख्सियत हसरत जयपुरी का जन्म 15 अप्रैल 1918 में जयपुर में हुआ था \ हसरत जयपुरी का नाम इकबाल हुसैन था | इन्होने अपनी पूरी शिक्षा दीक्षा जयपुर से हासिल की और इसके साथ ही सरो -- शायरी का हुनर इन्होने अपने मरहूम नाना से तालीम के रूप में हासिल किया | हसरत कहते है बेशक मैंने शेरो - शायरी की तालीम अपने नाना से ली पर इश्क की तालीम मैं अपनी प्रेमिका राधा से पाई | उसने बताया कि इश्क क्या होता है |  राधा मेरे हवेली के सामने रहती थी वो बहुत ही खुबसूरत थी | और मैं उसे प्यार करता था | वो झरोखे से झाकती थी तब मैं अपने जीवन का पहला शेर लिखा उसके लिए '' तू झरोखे से जो झाके , तो मैं इतना पुछू | मेरे महबूब तुझे प्यार करु या न करु |
अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद चमड़े  की झोपड़ी की आग बुझाने के लिए मैं बम्बई आ गया यहाँ पर मैंने आठ साल बस कंडेक्टरी  की नौकरी करते हुए हसरत साहब ने कभी हसिनाओ से टिकट का पैसा नही लिया वो कहते है मैं इन हसिनाओ  को देखते हुए बस यही कहा करता था कि तुम खुदा की बनाई नेमत हो तुमसे टिकट के लिए पैसा नही लूँगा और उनसे जो प्रेरणा मिलती मुझे वो गीतों  -- कविताओ में घर आकर कागज के सीने में उतार देता | हसरत इन कामो के साथ ही मुशायरो में शिरकत करते उसी दौरान एक कार्यक्रम में पृथ्वीराज कपूर उनके गीतों को सुनकर काफी प्रभावित हुए और उन्होंने अपने पुत्र राजकपूर को हसरत जयपुरी से मिलने की सलाह दिया | राजकपूर स्वंय हसरत जयपुरी के पास गये और उन्होंने उन्हें अपने स्टूडियो बुलाया और वह पर उन्होंने हसरत साहब को एक धुन सुनाई | उस धुन पर हसरत साहब को गीत लिखना था | धुन के बोल कुछ इस तरह के थे '' अबुआ का पेड़ है वही मुंडेर है , आजा मेरे बालमा काहे की देर है ' हसरत जयपुरी ने धुन सुनकर अपनी फ़िल्मी जीवन का पहला गीत लिखा "" जिया बेकरार है , छाई बहार है आजा मोरे बालमा तेरा इन्तजार है |  फिल्म '' बरसात के लिए लिखे इस गीत ने हसरत जयपुरी को पुरे देश में एक नई पहचान दी | हिंदी फिल्मो में जब भी टाइटिल गीतों का जिक्र होता है तो सबसे पहले हसरत जयपुरी नाम सबसे पहले लिया जाता है वैसे तो हसरत जयपुरी एक ऐसे शायर थे|  |    '' दीवाना मुझको लोग  कहे ( दीवाना ) , ' दिल एक मंदिर है , रात और दिन दीया  जले , तेरे घर के सामने इक घर बनाउगा, गुमनाम है कोई बदनाम है कोई , दो जासूस करे महसूस , जैसे ढेर सराई फिल्मो के उन्होंने टाइटिल गीत लिखे इसके साथ ही हसरत जयपुरी ने लिखा '' अब्शारे  -- गजल '' में
ये कौन आ गई दिलरुबा महकी महकी
फ़िज़ा महकी महकी हवा महकी महकी

वो आँखों में काजल वो बालों में गजरा
हथेली पे उसके हिना महकी महकी

ख़ुदा जाने किस-किस की ये जान लेगी
वो क़ातिल अदा वो सबा महकी महकी

सवेरे सवेरे मेरे घर पे आई
ऐ "हसरत" वो बाद-ए-सबा महकी महकी

उन्होंने प्रेम को प्रतीक माना ---------------- हसरत जयपुरी ने अपनी उस प्रेमिका के लिए बहुत से गीत लिखे जहा वो बोल पड़ते है चल मेरे साथ ही चल ऐ मेरी जान-ए-ग़ज़ल
इन समाजों के बनाये हुये बंधन से निकल, चल ,
हम वहाँ जाये जहाँ प्यार पे पहरे न लगें
दिल की दौलत पे जहाँ कोई लुटेरे न लगें
कब है बदला ये ज़माना, तू ज़माने को बदल, चल


प्यार सच्चा हो तो राहें भी निकल आती हैं
बिजलियाँ अर्श से ख़ुद रास्ता दिखलाती हैं

तू भी बिजली की तरह ग़म के अँधेरों से निकल, चलइन्होने अपने प्यार का इजहार बहुत ही शानदार तरीके से किया पर हसरत कभी अपनी उस पहली प्रेमिका को कह नही पाए और उन्होंने उस '' राधा '' के लिए जो अपना पहला प्रेम पत्र लिखा था उसको वो कभी अपनी राधा को नही दे पाए तब राजकपूर ने उनके प्रेम -- पत्र को एक फिल्म में इस्तेमाल किया '' ये मेरा प्रेम पत्र पढ़कर कही तुम नाराज न होना कि तुम मेरी जिन्दगी हो तुम मेरी बन्दगी हो ""हसरत के गीतों में अंतर वेदना के साथ प्रेम की असीम गहराई है |हसरत जयपुरी की जोड़ी राजकपूर के साथ 1971  तक कायम रही |'' मेरा नाम जोकर '' और '' कल आज और कल '' के बाक्स आफिस में विफलता के कारण राजकपूर से उनकी जोड़ी टूट गयी और राजकपूर ने फिर आनन्द बख्शी को अपने साथ ले लिया |  इसके बाद हसरत जयपुरी ने राजकपूर के लिए 1985 में प्रदर्शित फिल्म '' राम तेरी गंगा मैली '' में सुन साहिबा सुन ' गीत लिखा जो काफी लोकप्रिय हुआ | हसरत जयपुरी को दो बार फिल्म फेयर एवार्ड पुरूस्कार से सम्मानित किया गया | हसरत जयपुरी ने यु तो बहुर रूमानी गीत लिखे लेकिन असल जिन्दगी में उन्हें अपना पहला प्यार नही मिला | हसरत के तीन दशक के लम्बे फ़िल्मी कैरियर में 300 से अधिक फिल्मो के लिए करीब 2000 गीत लिखे | अपने गीतों से श्रोताओ को मन्त्र मुग्ध करने वाला शायर 17 सितम्बर 1999 में चिर निद्रा में विलीन हो गया और छोड़ गया अपने लिखे वो गीत जो उसने सादे कागज के कैनवास पे उतारे थे और अलविदा कह दिया उसने इस दुनिया को | ऐसे शायर को आज उनकी पूण्य तिथि पर शत शत नमन |
-सुनील दत्ता
स्वतंत्र पत्रकार व समीक्षक

Monday 15 September 2014

पत्नी ने पति को दी सीख



काम वाली के माध्यम से अपने-अपने हिस्से की खुशी के बारे में बताया । पैसे की कीमत को भी समझना चाहिए। जो अमीर होते हैं चंद मिनटों में ढेरों पैसा खर्च कर देते हैं परंतु दूसरों को देने के लिए टाल-मटोल करते हैं । दूसरे की खुशी को भी समझना चाहिए। यह ज़िंदगी के लिए बहुत ज़रूरी है।

Thursday 11 September 2014

हेट जेहाद और लव जेहाद क्या है?


सम्राट अकबर महान ने जोधा बाई से शादी करके क्या लव जेहाद शुरू किया था ? या शासक-शासित एकता का पैगाम दिया था। इतिहास को जान-बूझ कर भुलाया क्यों जा रहा है? लेकिन आज सत्ता -प्राप्ति के लिए मार-काट क्यों?

Wednesday 10 September 2014

पढ़ाई है क्या चीज़ ? हमें भी तो बताओ अंकल .........


देश के भविष्य के साथ हमारी शिक्षा व्यवस्था किस प्रकार खिलवाड़ कर रही है यह उसी का जीता-जागता नमूना है।

Monday 8 September 2014

इन पर भी गौर करें

जीवन को सफल बनाने के लिए इन बातों पर गौर करें और इन पर चल कर लाभ उठाएँ । न किसी से शिकवा होगा और न ही शिकायत।