सबों को नया वर्ष मंगलमय हो!:
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Tuesday, 31 December 2013
Thursday, 26 December 2013
Sunday, 3 November 2013
Friday, 1 November 2013
Wednesday, 23 October 2013
Tuesday, 22 October 2013
Wednesday, 16 October 2013
ईमान बकरा और कुर्बानी---नज़मा हेपतुल्ला की जुबानी
Gaurav Singhal Senior Journalist's status.
एक आदमी बकरा काट
रहा था,
तभी बकरा हंसने लगा,
आदमी बोला, मैँ तुझे काट रहा हूं, और तू हंस
रहा है
बकरा बोला - ये सोच कर हंस रहा हूं कि मैँ तो जिँदगी भर घास
खाता रहा, फिर
भी मुझे इतनी दर्द नाक मौत मिल रही है,
तूने तो जिंदगी भर दूसरोँ को मारकर खाया है,
तेरी मौत कितनी दर्दनाक होगी ।
रहा था,
तभी बकरा हंसने लगा,
आदमी बोला, मैँ तुझे काट रहा हूं, और तू हंस
रहा है
बकरा बोला - ये सोच कर हंस रहा हूं कि मैँ तो जिँदगी भर घास
खाता रहा, फिर
भी मुझे इतनी दर्द नाक मौत मिल रही है,
तूने तो जिंदगी भर दूसरोँ को मारकर खाया है,
तेरी मौत कितनी दर्दनाक होगी ।
Sunday, 13 October 2013
आज के रावण ---गिरीश नलिनी बिशनोई
हर साल :
बांस की खप्पचियों से बने
रावण को फूंकने वालों
रुको ,ढूंढो
इसके इर्द -गिर्द खड़ी भीड़ में
उन रावणों को ढूंढो
जो नित्य ही
सीताओं का हरण ही नहीं
बलात्कार के बाद
उसकी हत्या भी करते हैं ।
क्या इससे
यह रावण अच्छा नहीं
जिसकी कैद में
सीता की पवित्रता अच्छुण रही
आज तुम
इस पुतले को नहीं
इन्हे भी एक पर एक चुन दो
और फिर बारूद के पलीते से
लगा दो आग
ताकि आज भी सीताएं
कलयुगी रावण से मुक्त हो जाएँ
और तुम्हें
एक पर्व को मनाने का सच्चा सुख
मिल जाये। ।
==================
यह कविता 'दैनिक जागरण', आगरा के 'पुनर्नवा'-07 अक्तूबर 2005 के अंक में प्रकाशित है।
कवि-गिरीश नलिनी बिशनोई, डॉ ज़ाकिर हुसैन रोड, नागौर, बिजनौर ।
=================
'दशहरा'की हार्दिक शुभकामनायें
बांस की खप्पचियों से बने
रावण को फूंकने वालों
रुको ,ढूंढो
इसके इर्द -गिर्द खड़ी भीड़ में
उन रावणों को ढूंढो
जो नित्य ही
सीताओं का हरण ही नहीं
बलात्कार के बाद
उसकी हत्या भी करते हैं ।
क्या इससे
यह रावण अच्छा नहीं
जिसकी कैद में
सीता की पवित्रता अच्छुण रही
आज तुम
इस पुतले को नहीं
इन्हे भी एक पर एक चुन दो
और फिर बारूद के पलीते से
लगा दो आग
ताकि आज भी सीताएं
कलयुगी रावण से मुक्त हो जाएँ
और तुम्हें
एक पर्व को मनाने का सच्चा सुख
मिल जाये। ।
==================
यह कविता 'दैनिक जागरण', आगरा के 'पुनर्नवा'-07 अक्तूबर 2005 के अंक में प्रकाशित है।
कवि-गिरीश नलिनी बिशनोई, डॉ ज़ाकिर हुसैन रोड, नागौर, बिजनौर ।
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'दशहरा'की हार्दिक शुभकामनायें
Friday, 11 October 2013
जल ही जीवन है ---पूनम माथुर/विजय माथुर
जल के बिना किसी का भी जीवित रहना बहुत मुश्किल है। इसीलिए जल को अमृत भी कहा गया है। हमारे देश में 'गंगा जल' को विशेष स्थान और महत्व दिया गया है। क्यों? निम्नलिखित स्कैन कापी में जिन तथ्यों का उल्लेख है उनके अतिरिक्त जो विशेष तथ्य है और जिसका उल्लेख नहीं किया गया है उसी ओर ध्यानाकर्षण करना हमारा उद्देश्य है ।
आर्यसमाज, कमला नगर, आगरा में एक प्रवचन के दौरान आचार्य विश्वदेव (आयुर्वेदाचार्य, व्याकरणाचार्य) जी ने इस रहस्य का खुलासा करते हुये बताया था कि जिस स्थान पर 'बद्रीनाथ' मंदिर बना दिया गया है उसके नीचे 'गंधक'-'SULPHOR' की पहाड़ियाँ हैं। गंगा की एक धारा जिसका जल गरम होता है उसका कारण गंधक की पहाड़ियों से गुज़र कर आना ही है। जब गंगा के गरम जल की धारा दूसरी धारा से मिल कर आगे बढ़ती है तो उसमें भी गंधक का प्रभाव आ जाने से यह जल 'एंटी बेक्टीरिया' प्रभाव का होने से इसमें कीटाणु नहीं पड़ते और यह काफी समय तक सेवन करने योग्य बना रहता है। परंतु आजकल विकास के नाम पर जो 'विनाश' किया गया है उसके दुष्परिणाम स्वरूप गंगा जल की शुद्धता पर प्रश्न चिन्ह खड़ा हो गया है। 'गंगा जल' की शुद्धता बहाली हेतु जो सवाल प्रस्तुत लेख में उठाए गए हैं उनका निराकरण किए बगैर गंगा को जीवन दायिनी अधिक समय तक नहीं बनाए रखा जा सकता है। अतः प्रत्येक देशवासी का कर्तव्य है कि वह इसके निमित्त अपना योगदान दे। इसी प्रकार हर नदी के जल की शुद्धता की ओर भी मानव हित में ध्यान दिया जाना चाहिए।
आर्यसमाज, कमला नगर, आगरा में एक प्रवचन के दौरान आचार्य विश्वदेव (आयुर्वेदाचार्य, व्याकरणाचार्य) जी ने इस रहस्य का खुलासा करते हुये बताया था कि जिस स्थान पर 'बद्रीनाथ' मंदिर बना दिया गया है उसके नीचे 'गंधक'-'SULPHOR' की पहाड़ियाँ हैं। गंगा की एक धारा जिसका जल गरम होता है उसका कारण गंधक की पहाड़ियों से गुज़र कर आना ही है। जब गंगा के गरम जल की धारा दूसरी धारा से मिल कर आगे बढ़ती है तो उसमें भी गंधक का प्रभाव आ जाने से यह जल 'एंटी बेक्टीरिया' प्रभाव का होने से इसमें कीटाणु नहीं पड़ते और यह काफी समय तक सेवन करने योग्य बना रहता है। परंतु आजकल विकास के नाम पर जो 'विनाश' किया गया है उसके दुष्परिणाम स्वरूप गंगा जल की शुद्धता पर प्रश्न चिन्ह खड़ा हो गया है। 'गंगा जल' की शुद्धता बहाली हेतु जो सवाल प्रस्तुत लेख में उठाए गए हैं उनका निराकरण किए बगैर गंगा को जीवन दायिनी अधिक समय तक नहीं बनाए रखा जा सकता है। अतः प्रत्येक देशवासी का कर्तव्य है कि वह इसके निमित्त अपना योगदान दे। इसी प्रकार हर नदी के जल की शुद्धता की ओर भी मानव हित में ध्यान दिया जाना चाहिए।
Thursday, 10 October 2013
Wednesday, 9 October 2013
Monday, 7 October 2013
चलीं सब कोई मिल के---पूनम माथुर
सबेरे सबेरे जब उठनी एखबार 'नई दिशाएँ' देखनी। ओकर पन्ना तीन पर देखनी एक गो चोर बूढ़ी औरत के साईकिल लौटाल देलस । पढ़ के त मन बड़ा खुस हो गईल। जब इंटर में पढ़त रहनी त एगो अङ्ग्रेज़ी के कविता पढ़ले रहीं ओकरा में लिखल रहे 'CHILD IS THE FATHER OF MAN' । बच्चा के बड़ा रूप मनुष्य होला। लोग कहेला बच्चा भगवान के रूप होला। और परमात्मा के बड़ा अच्छा लाईफ साईकिल बा। सबसे पहले बच्चा यानि के बचपन फिर जवानी और अंत में बुढ़ापा । बच्चा त निश्चछल होला। ओकरा में कोनों कल-छ्ल नई खे। अगर अइसे देखीं बालक के मतलब बिना लालच के, जवानी -जब्बर बानी, बुढ़ापा -बुझे के तरफ बानी ।
राज कपूर के सिनेमा में गाना बा-'पहला घंटा -बचपन,दूसरा -जवानी, तीसरा बुढ़ापा।' इ देखावल गई बा के लाईफ के तीन स्टेज बा। अगर आदमी सीख सके तो अच्छा सीख ले न त फिर दुनिया से गो । इ फिलासफी केतना बढ़िया बा दुनिया के समझे के खातिर।'सजन रे झूठ मत बोलो खुदा के पास जाना है;न हाथी है न घोडा है वहाँ पैदल ही जाना है ' । 'बचपन खेल में खोया जवानी नींद भर सोया बुढ़ापा देख कर रोया' ये सब जो उदाहरण सिनेमा में देखावल जा ला सब इंसान के सुधारे के रास्ता होखेला । 'तोरा मन दर्पण कहलाए'।
नई दिशाएँ पढ़ के लागल के इंसान मन के भी दरवाजा खोल सकत । समाचार त बहुत छोटा बाटे पर मन के और दिल के हिला के रख देवे वाला बा। प्यार मोहब्बत से बिना डरइले बिना धमकौले इंसान के दिमाग बदल दिअल जा सकत । इंसान के हृदय परिवर्तन कर दिअल जा सकत । जइसे सिनेमा 'दो आँखें बारह हाथ' में डाकू के हृदय परिवर्तन हो गई रहे । ऊ सब के सुधारवादी तरीका से अच्छा इंसान बने पर ज़ोर दियल गई रहे। अइसे ही अपराधीअन के सुधार करके मुख्य धारा में जोड़ल जा सकत बा। ये एक तरह के मनोवैज्ञानिक नज़रिया बाटे।
सम्राट अशोक एतना मारी मारी,कुट्टा काटी करके खून खराबा करके अंत में का पइले?बाद में त सम्राट अशोक के इ सब से विरक्ति हो गइल उनकरो हृदय परिवर्तन हो गइल ।
सारा दुनिया में चंद पइसा खातिर लूट मार,बम गोला छूट रहल बा ;आतंक मचल बा मानव से मानव के डर बनल बा। मर जइबा सब यहीं छूट जाई। सोच इंसान के बदले के चाहीं। प्यार मोहब्बत से काम करे के चाहीं। आतंक मारा काटी के बदले के चाहीं। स्वस्थ जीवन जिये के हर इंसान में ललक जगावे के चाहीं।फिर देरी काहे के बा। चलीं सब कोई मिल के।
राज कपूर के सिनेमा में गाना बा-'पहला घंटा -बचपन,दूसरा -जवानी, तीसरा बुढ़ापा।' इ देखावल गई बा के लाईफ के तीन स्टेज बा। अगर आदमी सीख सके तो अच्छा सीख ले न त फिर दुनिया से गो । इ फिलासफी केतना बढ़िया बा दुनिया के समझे के खातिर।'सजन रे झूठ मत बोलो खुदा के पास जाना है;न हाथी है न घोडा है वहाँ पैदल ही जाना है ' । 'बचपन खेल में खोया जवानी नींद भर सोया बुढ़ापा देख कर रोया' ये सब जो उदाहरण सिनेमा में देखावल जा ला सब इंसान के सुधारे के रास्ता होखेला । 'तोरा मन दर्पण कहलाए'।
नई दिशाएँ पढ़ के लागल के इंसान मन के भी दरवाजा खोल सकत । समाचार त बहुत छोटा बाटे पर मन के और दिल के हिला के रख देवे वाला बा। प्यार मोहब्बत से बिना डरइले बिना धमकौले इंसान के दिमाग बदल दिअल जा सकत । इंसान के हृदय परिवर्तन कर दिअल जा सकत । जइसे सिनेमा 'दो आँखें बारह हाथ' में डाकू के हृदय परिवर्तन हो गई रहे । ऊ सब के सुधारवादी तरीका से अच्छा इंसान बने पर ज़ोर दियल गई रहे। अइसे ही अपराधीअन के सुधार करके मुख्य धारा में जोड़ल जा सकत बा। ये एक तरह के मनोवैज्ञानिक नज़रिया बाटे।
सम्राट अशोक एतना मारी मारी,कुट्टा काटी करके खून खराबा करके अंत में का पइले?बाद में त सम्राट अशोक के इ सब से विरक्ति हो गइल उनकरो हृदय परिवर्तन हो गइल ।
सारा दुनिया में चंद पइसा खातिर लूट मार,बम गोला छूट रहल बा ;आतंक मचल बा मानव से मानव के डर बनल बा। मर जइबा सब यहीं छूट जाई। सोच इंसान के बदले के चाहीं। प्यार मोहब्बत से काम करे के चाहीं। आतंक मारा काटी के बदले के चाहीं। स्वस्थ जीवन जिये के हर इंसान में ललक जगावे के चाहीं।फिर देरी काहे के बा। चलीं सब कोई मिल के।
Sunday, 6 October 2013
इन्सान आज केन्ने जा रहल बा --- पूनम माथुर
(इस ब्लाग की आज वर्षगांठ पर दो वर्ष पूर्व शुक्रवार, 25 फरवरी 2011को प्रकाशित इस लेख को पुनर्प्रकाशित किया जा रहा है जो कि स्वम्य लेखिका को बेहद पसंद है ---विजय राजबली माथुर)
हमार भईय्या जब रेल से घरे आवत रहलन तब ट्रेन में उनकर साथी लोगन कहलन कि हमनी के त बहुत तरक्की कर ले ले बानी सन.आज हमनी के देश त आजादी के बाद बहुत प्रगतिशील हो गइल बा.पहिले के जमाना में त घोडा गाडी ,बैल गाडी में लोग सफर करत रहलन लेकिन अब त पूरा महीना दिन में समूचा देश विदेश घूम के लोग घरे लौटी आवेला .आजकल त This,That,Hi,Hello के जमाना बा. कोई पूछे ला कि how are you ?त जवाब मिले ला fine sir /madam कह दिहल जाला .कपड़ा ,लत्ता ,घर द्वार गाडी-घोडा फैशन हर जगह लोगन में त हमही हम सवार बा. आज त तरक्की के भर-मार बा.पर अपना पन से दूर-दराज बा.कोई कहे ला हमार फलनवा नेता बाडन त कोई कहे ला अधिकारी बाडन कोई प्राब्लम बा त हमरा से कहअ तुरन्ते सालव हो जाईल तनी चाय पानी के खर्चा लागी.बाकी त हमार फलनवा बडले बाडन निश्चिन्त रहअ .खुश रहअ ,मस्त रहअ मंत्री,नेता अधिकारी बस जौन कहअ सब हमरे हाथे में बाडन .बात के सिलसिला अउर आगे बढित तब तक स्टेशन आ गईल .सब के गंतव्य आ गईल .अब के बतीआवेला सबे भागम्भागी में घरे जाय के तैयारी करत रहे अब बिहान मिलब सन .भाईबा त बात आगे बढ़ी आउर बतिआवल जाई सब कोई आपन आपन रास्ता नाप ले ले.रात हो गईल रहे सवारी मिले में दिक्कत रहे हमार भइया धीरे धीरे पैदल घरे के ओरे बढ़त रहलन त देखलन कि आर ब्लाक पर एगो गठरी-मोटरी बुझाई.औरु आगे बढ़लन त देखलन कि एगो आदमी गारबेज के पास बईठलबा थोडा औरु आगे उत्सुकता वश बढले त देखले कि ऊ आदमी त कूड़ा में से खाना बीन के खाता बेचारा भूख के मारल .अब त हमार भयीआ के आंखि में से लोर चुए लागल भारी मन से धीरे धीरे घरे पहुचलन दरवाजा हमार भौजी खोलली घर में चुपचाप बइठ गइला थोड़े देरे के बाद हाथ मुंह धो कर के कहलन की" आज खाना खाने का जी नही कर रहा है. आफिस में नास्ता ज्यादा हो गया है ,तुम खाना खा लो कल वही नास्ता कर लेंगे.भाभी ने पूछा बासी ,हाँ तो क्या हुआ कितनों को तो ऐसा खाना भी नसीब नहीं होता.हम तो सोने जा रहे हैं बहुत नींद आ रही है."
परन्तु बात त भुलाव्ते ना रहे कि आज तरक्की परस्त देश में भी लोगन के झूठन खाये के पड़ता आज हमार देश केतना तरक्की कइले बा .फिर एक सवाल अपने आप में जेहन में उठे लागल कि भ्रष्टाचार ,बलात्कार,कालाबाजारी,अन्याय-अत्याचार ,चोरी-चकारी में इन्सान के 'मैं वाद' में पनप रहल बा .ई देश के नागरिक केतना आगे बढलबा अपने पूर्वज लोगन से?
भोरे-भोरे जब बच्चा लोगन उठल अउर नास्ता के टेबुल पर बइठल त कहे लागल "ये नहीं खायंगे वो नहीं खायेंगे"त ब हमार भइया रात के अंखियन देखल विरतांत कहलन त लड़कन बच्चन सब के दिमाग में बात ऐसन बइठ गईल अउर सब सुबके लगलन सन .जे खाना मिले ओकरा प्रेम से खाई के चाही न नुकर ना करे के चाही .प्रेम से खाना निमको रोटी में भी अमृत बन जा ला.अब त लडकन सब के ऐसन आदत पडी गईल बा .चुप-चाप खा लेवेला अगर बच्चन सब के ऐसन आदत पड़जाई त वक्त-बे वक्त हर परिस्थिति के आज के नौजवान पीढी सामना कर सकेला .जरूरत बाटे आज सब के आँख खोले के मन के अमीर सब से बड़ा अमीर होला.तब ही देश तरक्की करी.इ पैसा -कौड़ी सब इहे रह जाई
एगो गीत बाटे -"कहाँ जा रहा है तू जाने वाले ,अपने अन्दर मन का दिया तो जला ले."
आज के इ तरक्की के नया दौर में हमनी के संकल्प लिहीं कि पहिले हमनी के इन्सान बनब.-वैष्णव जन तो तेने कहिये .................................................................के चरितार्थ करब ..................................................................
हमार भईय्या जब रेल से घरे आवत रहलन तब ट्रेन में उनकर साथी लोगन कहलन कि हमनी के त बहुत तरक्की कर ले ले बानी सन.आज हमनी के देश त आजादी के बाद बहुत प्रगतिशील हो गइल बा.पहिले के जमाना में त घोडा गाडी ,बैल गाडी में लोग सफर करत रहलन लेकिन अब त पूरा महीना दिन में समूचा देश विदेश घूम के लोग घरे लौटी आवेला .आजकल त This,That,Hi,Hello के जमाना बा. कोई पूछे ला कि how are you ?त जवाब मिले ला fine sir /madam कह दिहल जाला .कपड़ा ,लत्ता ,घर द्वार गाडी-घोडा फैशन हर जगह लोगन में त हमही हम सवार बा. आज त तरक्की के भर-मार बा.पर अपना पन से दूर-दराज बा.कोई कहे ला हमार फलनवा नेता बाडन त कोई कहे ला अधिकारी बाडन कोई प्राब्लम बा त हमरा से कहअ तुरन्ते सालव हो जाईल तनी चाय पानी के खर्चा लागी.बाकी त हमार फलनवा बडले बाडन निश्चिन्त रहअ .खुश रहअ ,मस्त रहअ मंत्री,नेता अधिकारी बस जौन कहअ सब हमरे हाथे में बाडन .बात के सिलसिला अउर आगे बढित तब तक स्टेशन आ गईल .सब के गंतव्य आ गईल .अब के बतीआवेला सबे भागम्भागी में घरे जाय के तैयारी करत रहे अब बिहान मिलब सन .भाईबा त बात आगे बढ़ी आउर बतिआवल जाई सब कोई आपन आपन रास्ता नाप ले ले.रात हो गईल रहे सवारी मिले में दिक्कत रहे हमार भइया धीरे धीरे पैदल घरे के ओरे बढ़त रहलन त देखलन कि आर ब्लाक पर एगो गठरी-मोटरी बुझाई.औरु आगे बढ़लन त देखलन कि एगो आदमी गारबेज के पास बईठलबा थोडा औरु आगे उत्सुकता वश बढले त देखले कि ऊ आदमी त कूड़ा में से खाना बीन के खाता बेचारा भूख के मारल .अब त हमार भयीआ के आंखि में से लोर चुए लागल भारी मन से धीरे धीरे घरे पहुचलन दरवाजा हमार भौजी खोलली घर में चुपचाप बइठ गइला थोड़े देरे के बाद हाथ मुंह धो कर के कहलन की" आज खाना खाने का जी नही कर रहा है. आफिस में नास्ता ज्यादा हो गया है ,तुम खाना खा लो कल वही नास्ता कर लेंगे.भाभी ने पूछा बासी ,हाँ तो क्या हुआ कितनों को तो ऐसा खाना भी नसीब नहीं होता.हम तो सोने जा रहे हैं बहुत नींद आ रही है."
परन्तु बात त भुलाव्ते ना रहे कि आज तरक्की परस्त देश में भी लोगन के झूठन खाये के पड़ता आज हमार देश केतना तरक्की कइले बा .फिर एक सवाल अपने आप में जेहन में उठे लागल कि भ्रष्टाचार ,बलात्कार,कालाबाजारी,अन्याय-अत्याचार ,चोरी-चकारी में इन्सान के 'मैं वाद' में पनप रहल बा .ई देश के नागरिक केतना आगे बढलबा अपने पूर्वज लोगन से?
भोरे-भोरे जब बच्चा लोगन उठल अउर नास्ता के टेबुल पर बइठल त कहे लागल "ये नहीं खायंगे वो नहीं खायेंगे"त ब हमार भइया रात के अंखियन देखल विरतांत कहलन त लड़कन बच्चन सब के दिमाग में बात ऐसन बइठ गईल अउर सब सुबके लगलन सन .जे खाना मिले ओकरा प्रेम से खाई के चाही न नुकर ना करे के चाही .प्रेम से खाना निमको रोटी में भी अमृत बन जा ला.अब त लडकन सब के ऐसन आदत पडी गईल बा .चुप-चाप खा लेवेला अगर बच्चन सब के ऐसन आदत पड़जाई त वक्त-बे वक्त हर परिस्थिति के आज के नौजवान पीढी सामना कर सकेला .जरूरत बाटे आज सब के आँख खोले के मन के अमीर सब से बड़ा अमीर होला.तब ही देश तरक्की करी.इ पैसा -कौड़ी सब इहे रह जाई
एगो गीत बाटे -"कहाँ जा रहा है तू जाने वाले ,अपने अन्दर मन का दिया तो जला ले."
आज के इ तरक्की के नया दौर में हमनी के संकल्प लिहीं कि पहिले हमनी के इन्सान बनब.-वैष्णव जन तो तेने कहिये .................................................................के चरितार्थ करब ..................................................................
Hindustan-lucknow27/02/2011 |
14 टिप्पणियां:
- सचमुच मौजूदा दौर में तरक्की के मायने भौतिक संसाधन जुटाने भर से लिए जाने लगा है..... मनुष्यता का मान कहीं खो रहा है..... तरक्की के मापदंड ऐसे ही हो चले हैं....सुंदर लेखप्रत्युत्तर देंहटाएं
- vakt ke sath har cheez ko ankane ke paipane badal jate hain, shayad isiliye ye kalyug hai, kyunki yahan par to ab insaniyat ko ankane ka paimana bhi badal gaya hai. lekin kahin na kahin aaj bhi neev mai koi tabdili nahi hui hai, shayad isi liye aaj bhi aapke aur mere jese log zinda hain.प्रत्युत्तर देंहटाएं
nisandeh hi ye ek umda prastuti hai. - बहुत ही अच्छा आलेख और सच भी है...मुझे पढ़ने में बड़ा मजा आया बोलनी नहीं आती पर अच्छी लगती है...और आपने जो हकीकत बयां की है उसे पढ़कर और जानकर भी दुख जरूर होता है...मगर यही बदलाव आज की आधुनिकता है...प्रत्युत्तर देंहटाएं
- बहुत ही अच्छा आलेख और सच भी है...मुझे पढ़ने में बड़ा मजा आया बोलनी नहीं आती पर अच्छी लगती है...और आपने जो हकीकत बयां की है उसे पढ़कर और जानकर भी दुख जरूर होता है...मगर यही बदलाव आज की आधुनिकता है...प्रत्युत्तर देंहटाएं
- "ई देश के नागरिक केतना आगे बढलबा अपने पूर्वज लोगन से?"प्रत्युत्तर देंहटाएं
सही कहा आपने, ये काफी प्रगति कर गए ! - आपकी उम्दा प्रस्तुति कल शनिवार (26.02.2011) को "चर्चा मंच" पर प्रस्तुत की गयी है।आप आये और आकर अपने विचारों से हमे अवगत कराये......"ॐ साई राम" at http://charchamanch.uchcharan.com/प्रत्युत्तर देंहटाएं
चर्चाकार:Er. सत्यम शिवम (शनिवासरीय चर्चा) - चरन स्पर्स के बाद कहs तानि कि राऊर एकएक बतिया साँच बाटे... हमनी के बच्चे से ईहे ट्रेनिंग मिलल बा!! जऊन खाए के भेटाता ऊ भगवान के परसाद समझ के खाए के चाहिं.. अऊर एगो बतिया बुझाता कि रऊआ लिखल भुला गईनीं.. खाना ओतने लेवे के चाहिं जेतना खाएल जाओ.. जुट्ठा छोड़ल ठीक नईखे! जुट्ठा छोड़के हमनीं जेतना खाना बरबाद करेनीं, ओतनो खाना केहु के नसीब नईखे..प्रत्युत्तर देंहटाएं
- सलिल भईया के ढेरे सा आसीस.प्रत्युत्तर देंहटाएं
ई बतिया हमरा से लिखे बेरी छूट गईर रहे.ध्यान दिलावे खातिर धन्यवाद.
-पूनम - चरन स्पर्स। बहुते सही कहले बानी।प्रत्युत्तर देंहटाएं
ई त एक दमे सही बात बा कि खाना बिलकुले बरबान ना करे के चाही।
लेख के आखिर में जे बात कहनी ह “आज के इ तरक्की के नया दौर में हमनी के संकल्प लिहीं कि पहिले हमनी के इन्सान बनब” से सौ फीसदी सही बा। हम तो रोजे भगबान के आगे गुहराबे ली
बस मौला ज्यादा नहीं, कर इतनी औकात,
सर उँचा कर कह सकूं, मैं मानुष की जात - मनोज भइया के बहुते आसीसप्रत्युत्तर देंहटाएं
मनुष्य बने खातिर जे कविता रऊरा लिखले बानी उ त हर इंसान के समझे बूझे के चाहीं ई बतिया त हमनी के आगे आवे वाला बाल-बच्चन ,पीढी दर पीढी के बतावे के चाहीं. तभी त दुनिया बदली.
---पूनम - आज के इ तरक्की के नया दौर में हमनी के संकल्प लिहीं कि पहिले हमनी के इन्सान बनब.....प्रत्युत्तर देंहटाएं
सटीक बात...सुंदर विचार। गहन चिन्तन के लिए बधाई। - सार्थक और सामयिक आलेख।
आज आवश्यकता है अपनी संस्कृति को सुरक्षित रखने की।
Saturday, 5 October 2013
निराली ----पूनम माथुर
कुछ सहेली
सुलझाए पहेली
करती ठिठोली
सिर- माथे रोली
अविरल जीवन शैली
प्रखर मौली
यश खुशहाली
देश सम्हाली
कोयल बोली
डाली-डाली
उम्मीद हरियाली
बगिया फूल वाली
गदगद माली
सबको थाली
पेट न खाली
जेब सिक्कों वाली
दिन होली
रात दीवाली
बजाएँ ताली
कव्वाली मतवाली
अतीत गौरवशाली
वर्तमान शक्तिशाली
भविष्य हो ऐश्वर्यशाली
राजा रंक टोली
बारात निकाली
कंधे चार की हो ली
टोली मस्त चली
सखियाँ सहेली
समझीं पहेली । ।
सुलझाए पहेली
करती ठिठोली
सिर- माथे रोली
अविरल जीवन शैली
प्रखर मौली
यश खुशहाली
देश सम्हाली
कोयल बोली
डाली-डाली
उम्मीद हरियाली
बगिया फूल वाली
गदगद माली
सबको थाली
पेट न खाली
जेब सिक्कों वाली
दिन होली
रात दीवाली
बजाएँ ताली
कव्वाली मतवाली
अतीत गौरवशाली
वर्तमान शक्तिशाली
भविष्य हो ऐश्वर्यशाली
राजा रंक टोली
बारात निकाली
कंधे चार की हो ली
टोली मस्त चली
सखियाँ सहेली
समझीं पहेली । ।
Friday, 4 October 2013
बात है -दिल की ,समय की -बात है -----पूनम माथुर
(1 )
बात है :
परसों की है बात
बना रही थी रोटी सात
कलम और कागज की है बात
चकले और बेलन की है बात
न कागज था न दवात
आ रहे थे मन में खयालात
चूल्हे पर सेंक रही थी रोटी
कभी चकले पर रोटी
कभी तवे पर रोटी
ख्याल आ -जा रहे थे जैसे
पकने और जलने जैसे
हाथ का काम कलम से भी था
हाथ का काम चकले से भी था
पुरानी है चकले और कलमकी दोस्ती
इसके बिना न है इंसान की कोई हस्ती
रोटी और कलम से ही है इंसान की बस्ती
नहीं चलती इसके बिना जीवन की कश्ती
पर जीवन राक्षस और रावण के लिए है सस्ती
भाईचारे और प्यार-प्रेम से होगी जीवन में मस्ती
रंग लाएगी तब विधाता की गृहस्थी । ।
(2)
दिल की बात :
किसी का सब मिल जाता है
किसी का सब लुट जाता है
किसी का घर आबाद हो जाता है
किसी का घर तबाह हो जाता है
किसी के मन में अंधेरा हो जाता है
किसी के मन में उजाला हो जाता है
किसी को हर बार छला जाता है
किसी को हर बार सहा जाता है
दूसरे का दुख देख कर कोई बुद्ध हो जाता है
घर बार छोड़ कर मन शुद्ध हो जाता है
पर आज दूसरे का माल हड़प कर कोई गिद्ध हो जाता है
आँखों में न्याय की आस लिए कोई वृद्ध हो जाता है
दिल की बातें खुद दिल से की जाती हैं
रोना है तो खुद रो लें किसी से कही नहीं जाती हैं। ।
(3 )
समय:
कुछ लोग सकुचाये हुये हैं
कुछ लोग घबराए हुये हैं
कुछ लोग सताये हुये हैं
कुछ लोग शरमाये हुये हैं
कुछ लोग तड़पाये हुये हैं
कुछ लोग आँखों से पर्दा उठाए हुये हैं
क्योंकि ये लोग समाज के बनाए हुये हैं
समाज में अपने आप को ऊंचा उठाए हुये हैं
इसी लिए तो सबके ऊपर शासन जमाये हुये हैं। ।
Wednesday, 2 October 2013
किताबों के पन्नों पर ---पूनम माथुर
गांधी शास्त्री जयंती पर स्मरण :
(2)
(1)
बापू गांधी को टांग दीवार पर
श्रद्धांजलि देने का स्वांग करते 30 जनवरी पर
चलते नहीं उनकी लीक लकीर पर
बना महात्मा फूल चढाते दरो दीवाल पर
कैसा अंजाम किया इस फकीर पर
चाहते नहीं संसार के प्राणियों से प्यार करना पर
हरि व जन का क्या जानें सम्मान करना पर
हे राम का बंदा बलिदान हो गया देश पर
क्या जाने साबरमती का संत ऐसे बर्ताव -व्यवहार पर
क्या जाने क्या माने गांधी को अपने अभिमान पर
सच के प्रहरी को धोखा दे रखा है इस कदर पर
बदनाम करते हैं अपने दीन ईमान धरम पर
हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई भाईचारे का पाठ पढ़ाया पर
भाई भाई मे एकता का संदेश बताया -समझाया पर
लोगों ने मानव धर्म का कदर न चाहा न जाना पर
मानव का मानव से ये नाता समझ न आया पर
सबको सन्मति दे भगवान का भजन गाया पर
अब तो निगाह है सिर्फ ले लेने पर
जान देने की नहीं ध्यान है ले लेने पर
दिल दिमाग मे छाया है ध्यान सिर्फ एश-ओ-आराम पर
सत्य व अहिंसा को रखकर ताक पर
झूठ और बेईमानी से काम करते हाथ जोड़ते हर बार पर
करते अपमान अहिंसा के पुजारी का हर बात पर
छोड़ कर संसार चला गया संत, देश की बाग डोर अब तेरे हाथों पर
अब तो ऐसा ही आया है ज़माना, सत्य अहिंसा किताबों के पन्नों पर
(2)
है यह छोटा सा नारा
जय जवान जय किसान का
अच्छे औलाद बन जाओ इंसान का
स्वर्ग को उतार लाओ
धरती पे यह घड़ी है
तुम्हारे इम्तिहान का
क्यों कत्ल करते हो
धरती पर बेगुनाहों का
यह घड़ी है
सत चित आनंद मे समाने का
तुम्हारे अंदर का आईना
ललकारता खजाना ज़मीर का
अमर कर दो दुनिया में
दास्तान बंदगी का
Sunday, 29 September 2013
दिल की बीमारी से निजात पाईये---पूनम माथुर
सूखी रोटी खाइये
साईकिल पर चलिये
पेट्रोल को आईना दिखाये
प्रभु के गुण गाईये
दिल की बीमारी से निजात पाईये
प्रदूषण को मत बढ़ाइये
सिगरेट और धूम्रपान से अपने को बचाईये
एक पेड़ लगाइये
हरियाली पाइये
सभी के जीवन को स्वस्थ बनाइये
कुदरत का खजाना पाइये
पानी कम गिराइये
प्रेम और भाई -चारे को बढ़ाईये
शरीर के रोगों को भगाईये
दिल की बीमारी से निजात पाईये
दिल-दिमाग को स्वस्थ बनाईये। ।
Thursday, 26 September 2013
Wednesday, 25 September 2013
पूछना है सबका ?
मतलब से लोग पूछा करते हैं
मतलब निकल जाने के बाद भगाया करते हैं
मतलब से लोग गधों कोभी बाबा कहा करते हैं
मतलब निकाल कर माँ-बाप को घर से निकाला करते हैं
मतलब निकल जाने पर दुनिया वाले धक्का दिया करते हैं
मतलब से दुनिया को सलाम किया करते हैं
मतलब की है दुनिया,लोग बेमतलब के हुआ करते हैं
मतलब के लिये रिश्ता बना लिया करते हैं
मतलब के लिये ही रिश्तों को बेच दिया करते हैं
मतलब से ही सभी को सलाम किया करते हैं
मतलब के खातिर अपने देश को खरीद व बेच लिया करते हैं
मतलब वालों का ज़मीर ऐसा ही हुआ करता है। ।
---(पूनम माथुर)
मतलब निकल जाने के बाद भगाया करते हैं
मतलब से लोग गधों कोभी बाबा कहा करते हैं
मतलब निकाल कर माँ-बाप को घर से निकाला करते हैं
मतलब निकल जाने पर दुनिया वाले धक्का दिया करते हैं
मतलब से दुनिया को सलाम किया करते हैं
मतलब की है दुनिया,लोग बेमतलब के हुआ करते हैं
मतलब के लिये रिश्ता बना लिया करते हैं
मतलब के लिये ही रिश्तों को बेच दिया करते हैं
मतलब से ही सभी को सलाम किया करते हैं
मतलब के खातिर अपने देश को खरीद व बेच लिया करते हैं
मतलब वालों का ज़मीर ऐसा ही हुआ करता है। ।
---(पूनम माथुर)
Tuesday, 24 September 2013
बस यूँ ही
क्या ले के आए थे सपना
कोई नहीं है जग में अपना
सब हैं मृग मरीचिका के सताये
दुनिया में हैं सब अपने को बहलाये
सब हैं बेगाने कहने को चले अपने
ये क्या जाने खुदा के बनाये
तीर औरों पे कहीं चलाये
निशाना कहीं और लगाये
चले किसी को गले लगाने
पर क्या फायदा अपने को बचाये
सब कुछ है अनबूझ पहेली
सखी रे कोई नहीं तेरी सहेली
सपना टूटा बिखरे अपने
हो गए सब आज पराये
राग और रंग का क्या मिलना
अब तो है सब को अलविदा कहना
एक-एक कर सब को है चलना। ।
---(पूनम माथुर)
कोई नहीं है जग में अपना
सब हैं मृग मरीचिका के सताये
दुनिया में हैं सब अपने को बहलाये
सब हैं बेगाने कहने को चले अपने
ये क्या जाने खुदा के बनाये
तीर औरों पे कहीं चलाये
निशाना कहीं और लगाये
चले किसी को गले लगाने
पर क्या फायदा अपने को बचाये
सब कुछ है अनबूझ पहेली
सखी रे कोई नहीं तेरी सहेली
सपना टूटा बिखरे अपने
हो गए सब आज पराये
राग और रंग का क्या मिलना
अब तो है सब को अलविदा कहना
एक-एक कर सब को है चलना। ।
---(पूनम माथुर)
Sunday, 22 September 2013
बेटियाँ
विश्व बेटी दिवस पर :
सम्मान करें बेटियों का
मान करें बेटियों का
अपमान न करें बेटियों का
विज्ञापन न करें बेटियों का
वरदान समझें बेटियों को
योगदान समझें बेटियों का
बेटियों को न मसलें न कुचलें
सारा संसार है आपकी बगिया । ।
(दुनिया की सभी बेटियों को मेरी ओर से हार्दिक बधाई व उज्ज्वल भविष्य की शुभकामनायें )
जयहिंद !!
---पूनम माथुर
सम्मान करें बेटियों का
मान करें बेटियों का
अपमान न करें बेटियों का
विज्ञापन न करें बेटियों का
वरदान समझें बेटियों को
योगदान समझें बेटियों का
बेटियों को न मसलें न कुचलें
सारा संसार है आपकी बगिया । ।
(दुनिया की सभी बेटियों को मेरी ओर से हार्दिक बधाई व उज्ज्वल भविष्य की शुभकामनायें )
जयहिंद !!
---पूनम माथुर
Saturday, 21 September 2013
Thursday, 19 September 2013
"क्या हमको ही देश की नींव कहा"---~(कवि मोहित पूनफेर)~
"मृत सी जीवन शैली को,
ना जाने किसने सजीव कहा।
हम भी भारत के बालक है,
क्या हमको ही देश की नींव कहा।।
.
हमें दिनभर है मैला ढौना,
चंद टुकड़ों के लिए है रोना।
भुखे पेट प्यासी प्यास लेकर,
फुटपाथ पर रोज हमें सोना।
गरीबी रेखा के नीचे होने से,
हमारा भी एक मकान बना।
फिर उस मकान की छत के नीचे,
माँ अब्बा का शमशान बना।
किसने मृत जिन्गानी को,
माथे पर लिखी तकदीर कहा।
हम भी भारत के बालक है
क्या हमको ही देश की नींव कहा।।
.
मृत सी जीवन शैली को,
ना जाने किसने सजीव कहा।
हम भी भारत के बालक है,
क्या हमको ही देश की नींव कहा।।
.
स्कूल स्लेट कॉपी पेंसिल,
छीन गया हमारा झोला है।
गर्मी में जिन्दगानी मोम सी है,
सर्दी में बर्फ का गोला है।
जुते वर्दी की बात ना कर,
बस फटा पुराना चोला है।
फिर आते जाते राहगीर ने,
हमको पाजी कीड़ा निर्जिव कहा।
हम भी भारत के बालक है,
क्या हमको ही देश की नींव कहा।।
.
मृत सी जीवन शैली को,
ना जाने किसने सजीव कहा।
हम भी भारत के बालक है,
क्या हमको ही देश की नींव कहा।।
.
दीवाली होली नवरात्रों पर,
हमारी भी मौज हो जाती है।
भारत की माँए दुआएँ खरीदने,
नए कपड़े हमारे लाती है।
हलवा पूरी मालपूए खीर,
वो झोली में रख जाती है।
ना जाने किस श्रद्धा मुर्ति ने,
हमें रुप ईशवरीय सजीव कहा।
हम भी भारत के बालक है,
क्या हमको ही देश की नींव कहा।।
.
मृत सी जीवन शैली को,
ना जाने किसने सजीव कहा।
हम भी भारत के बालक है,
क्या हमको ही देश की नींव कहा।।
~~~~(कवि मोहित पूनफेर)~~~~~~
—
हम भी भारत के बालक है,
क्या हमको ही देश की नींव कहा।।
.
हमें दिनभर है मैला ढौना,
चंद टुकड़ों के लिए है रोना।
भुखे पेट प्यासी प्यास लेकर,
फुटपाथ पर रोज हमें सोना।
गरीबी रेखा के नीचे होने से,
हमारा भी एक मकान बना।
फिर उस मकान की छत के नीचे,
माँ अब्बा का शमशान बना।
किसने मृत जिन्गानी को,
माथे पर लिखी तकदीर कहा।
हम भी भारत के बालक है
क्या हमको ही देश की नींव कहा।।
.
मृत सी जीवन शैली को,
ना जाने किसने सजीव कहा।
हम भी भारत के बालक है,
क्या हमको ही देश की नींव कहा।।
.
स्कूल स्लेट कॉपी पेंसिल,
छीन गया हमारा झोला है।
गर्मी में जिन्दगानी मोम सी है,
सर्दी में बर्फ का गोला है।
जुते वर्दी की बात ना कर,
बस फटा पुराना चोला है।
फिर आते जाते राहगीर ने,
हमको पाजी कीड़ा निर्जिव कहा।
हम भी भारत के बालक है,
क्या हमको ही देश की नींव कहा।।
.
मृत सी जीवन शैली को,
ना जाने किसने सजीव कहा।
हम भी भारत के बालक है,
क्या हमको ही देश की नींव कहा।।
.
दीवाली होली नवरात्रों पर,
हमारी भी मौज हो जाती है।
भारत की माँए दुआएँ खरीदने,
नए कपड़े हमारे लाती है।
हलवा पूरी मालपूए खीर,
वो झोली में रख जाती है।
ना जाने किस श्रद्धा मुर्ति ने,
हमें रुप ईशवरीय सजीव कहा।
हम भी भारत के बालक है,
क्या हमको ही देश की नींव कहा।।
.
मृत सी जीवन शैली को,
ना जाने किसने सजीव कहा।
हम भी भारत के बालक है,
क्या हमको ही देश की नींव कहा।।
~~~~(कवि मोहित पूनफेर)~~~~~~
—

Saturday, 14 September 2013
एक गरीब बच्चे की नज़र से---हिन्दी शायरी
एक गरीब बच्चे की नज़र से:-
सिक्कों में खनकते हर एहसास को देखा..
आज फिर मैंने अपने दबें हाल को देखा...
अंगीठी में बन रही थी जो कोयले पे रोटियाँ..
आज फिर मैंने अपनी माँ के जले हाथ को देखा...
बट रही थी हर तरफ किताबे और कापियाँ..
आज फिर मैंने अपने हिस्से के कोरे कागज़ को देखा...
सज रही थी हर तरफ बुलंदियों पर खिड़कियाँ..
आज फिर मैंने अपने धंसते संसार को देखा...
चढ़ रही थी हर तरफ दुआओं की अर्ज़ियाँ..
मंदिर भी माँ मैंने तेरे पांव में देखा...
लग रही थी जब मेरे अरमानो की बोलियाँ..
हर ख्वाब-ए-चादर को अपने पांव की सिमट में देखा...
================================*****=====
हिन्दी दिवस की शुभकामनाओं सहित ---पूनम माथुर
एक गरीब बच्चे की नज़र से:-
सिक्कों में खनकते हर एहसास को देखा..
आज फिर मैंने अपने दबें हाल को देखा...
अंगीठी में बन रही थी जो कोयले पे रोटियाँ..
आज फिर मैंने अपनी माँ के जले हाथ को देखा...
बट रही थी हर तरफ किताबे और कापियाँ..
आज फिर मैंने अपने हिस्से के कोरे कागज़ को देखा...
सज रही थी हर तरफ बुलंदियों पर खिड़कियाँ..
आज फिर मैंने अपने धंसते संसार को देखा...
चढ़ रही थी हर तरफ दुआओं की अर्ज़ियाँ..
मंदिर भी माँ मैंने तेरे पांव में देखा...
लग रही थी जब मेरे अरमानो की बोलियाँ..
हर ख्वाब-ए-चादर को अपने पांव की सिमट में देखा...
================================*****=====
हिन्दी दिवस की शुभकामनाओं सहित ---पूनम माथुर
सिक्कों में खनकते हर एहसास को देखा..
आज फिर मैंने अपने दबें हाल को देखा...
अंगीठी में बन रही थी जो कोयले पे रोटियाँ..
आज फिर मैंने अपनी माँ के जले हाथ को देखा...
बट रही थी हर तरफ किताबे और कापियाँ..
आज फिर मैंने अपने हिस्से के कोरे कागज़ को देखा...
सज रही थी हर तरफ बुलंदियों पर खिड़कियाँ..
आज फिर मैंने अपने धंसते संसार को देखा...
चढ़ रही थी हर तरफ दुआओं की अर्ज़ियाँ..
मंदिर भी माँ मैंने तेरे पांव में देखा...
लग रही थी जब मेरे अरमानो की बोलियाँ..
हर ख्वाब-ए-चादर को अपने पांव की सिमट में देखा...
================================*****=====
हिन्दी दिवस की शुभकामनाओं सहित ---पूनम माथुर
Thursday, 12 September 2013
Friday, 6 September 2013
Thursday, 5 September 2013
Thursday, 15 August 2013
Tuesday, 25 June 2013
प्रभु की लीला---पूनम माथुर
इसे प्रभु की माया कहें या लीला। उत्तराखंड में जो कहर बरपा है। क्या आप पत्थर के भगवान को पूजने जा रहे थे? इससे तो कहीं अच्छा होता कि,रक्त दान या अंग दान कर देते तो परमात्मा की इस दुनिया को संवार सकते थे जबकि अब सम्पूर्ण अंग सड़ रहे हैं ,बह रहे हैं और प्रदूषण फैला रहे हैं। परमात्मा ने जब आपको बुद्धि व विवेक दिया है तो क्यों नहीं सोचते कि क्या गलत है और क्या सही?परमात्मा सीख देता है परंतु लोग मानते कब हैं?अपने अहंकार के मद में डूबे रहते हैं। 'कुंभ; के बाद क्या लोगों को कुछ सीख नहीं मिली?क्यों न घर में ही पूजा-पाठ करे? क्या गरीबों के लिए कुछ नहीं होता है?क्या अमरनाथ,बद्रीनाथ,केदारनाथ गरीबों के लिए नहीं होता है?परंतु उनके पास पैसे कहाँ होते हैं?सो वो कहाँ जाएँ?क्या ये पैसे वाले लोग,'कर'चोर लोग धन इकट्ठा करके पिकनिक मनाने जाते हैं?उनका मानना है जो पैसा हमने कमाया है हम ही उसका उपभोग करें। परंतु यह चुराया हुआ धन तो पूरी जनता का है। जनता की हाय से बचना चाहिए नहीं तो ऐसी आपदाएँ बार-बार आती ही रहेंगी। आज का राजा कल का भिखारी हो गया है। यह परमात्मा की ओर से दिया हुआ 'दंड'है या 'न्याय' जो कहिए। 'प्रकृति' किसी को माफ नहीं करती है। परमात्मा या प्रकृति का यह इंसाफ है-इस हाथ ले उस हाथ दे। जो अपनी मेहनत के पैसे से गए होंगे वे 'अपवाद' स्वरूप बच गए हैं।
हमारे देश में इतना पैसा है परंतु कोई 'रोटी' और कोई 'लंगोटी' के लिए जूझ रहा है तो कोई मंहगी शराब और अय्याशी में डूब रहा है। अगर इन पैसों का सही स्तेमाल होता तो कितने बेकार नौजवानों को नौकरी मिल जाती,कितनी लड़कियों की शादियाँ हो जातीं। शायद देश के 35 प्रतिशत लोगों को काम तो मिल ही जाता। आज आपदा में इन लोगों का कमाया हुआ धन पानी में बह गया। खुद लड़ कर मर रहे हैं। लाशों के ऊपर चढ़ कर 'चांडालों' की तरह भाग रहे हैं। कलयांणकारी 'शिव' ने अपना 'रौद्र तांडव' दिखाया है उसका भी तो 'दर्शन' कर लो!क्या आज प्रकृति ने अपना सही रूप नहीं दिखाया?क्यों प्रकृति के ऊपर इतना भार डाल रहे थे?इसी लिए प्रकृति को 'खफा' होना पड़ा।
अगर अपनी कमाई को लोग नेक काम में लगाते तो न इस तरह से मरते और परमात्मा के यहाँ नेक बंदे के रूप में नाम और दर्ज हो जाता। बाकी लोगों को यह समझने के लिए प्रकृति और शिव ने यह उदाहरण दिया है। अभी इस वक्त 'आपदा कोष' में लोग पैसा जमा कर रहे हैं तो क्या वे हमेशा देश के नौजवानों के किए धन एकत्र नहीं कर सकते?
विदेशों में तरक्की होती है परंतु प्रकृति-जलवायु,पहाड़,नदी,नालों को छेड़ा नहीं जाता है परंतु हमारा देश तो कोरा नकलची है। इसका भुगतान तो लोग करेंगे ही। नकल के लिए भी अक्ल की ज़रूरत होती है। पेड़ काटे जा रहे हैं,कारखाने बनाए जा रहे हैं,बिजली की खपत अंधाधुंध हो रही है। तो इसका असर तो पड़ेगा ही।
ये आपदाएँ परमात्मा की तरफ से मनुष्य की आँखें खोलने के लिए होती हैं कि प्रकृति के साथ छेड़ -छाड़ न करो तभी मानवता सुरक्षित रह पाएगी।
Wednesday, 19 June 2013
भूखी नंगी जनता---पूनम माथुर
27-01-2012 को लिखित
---------------------------------------------
कैसा है यह गणतन्त्र का त्यौहार
कोई भूखा सोता है कोई नंगा रहता है
कोई बेघर होता है कोई खाते-खाते उल्टी करता है
कैसा है यह गणतन्त्र का त्यौहार
हाँ-हाँ सब करते हैं पर ना ही कोई कुछ करने को तैयार
कैसे होगा भोली-भाली जनता का उद्धारदुष्ट,दुशप्रवहार,संस्कार
कैसे हम मनाएंगे यह गणतन्त्र का त्यौहार
जब तक हम सभी नहीं लाएँगे सच्चा प्यार-दुलार
तब तक कैसे होगा प्राणियों का सत्कार
छोड़ दो यह नारेबाजी यह सब करना है बेकार
जब तक नहीं पनपते तुम्हारे अंदर अच्छे संस्कार
क्यों करते हो झूठे आडंबर क्यों नहीं करते हो उनका बहिष्कार
जब तक नहीं होगा इंसान के अंदर इंसानियत का संचार
मत करो 'दिखावा' का दुष्प्रचार
दुष्टों को क्यों नहीं लगाते फटकार
कैसे मनाएँ गणतन्त्र का त्यौहार
अपने अन्तर्मन मे ढूंढो अच्छे विचार
तभी मना सकोगे गणतन्त्र का त्यौहार
दुष्टों और भ्रष्टों ने लोगों का जीना और' तंत्र' को कर रखा है लाचार
अमर शाहीदों की कुर्बानी को कर रखा है बेकार
इन्हें मन व जड़ से उखाड़ फेंको तभी होगा गणतन्त्र का सच्चा त्यौहार
जय हिन्द
(पूनम माथुर)
---------------------------------------------
कैसा है यह गणतन्त्र का त्यौहार
कोई भूखा सोता है कोई नंगा रहता है
कोई बेघर होता है कोई खाते-खाते उल्टी करता है
कैसा है यह गणतन्त्र का त्यौहार
हाँ-हाँ सब करते हैं पर ना ही कोई कुछ करने को तैयार
कैसे होगा भोली-भाली जनता का उद्धारदुष्ट,दुशप्रवहार,संस्कार
कैसे हम मनाएंगे यह गणतन्त्र का त्यौहार
जब तक हम सभी नहीं लाएँगे सच्चा प्यार-दुलार
तब तक कैसे होगा प्राणियों का सत्कार
छोड़ दो यह नारेबाजी यह सब करना है बेकार
जब तक नहीं पनपते तुम्हारे अंदर अच्छे संस्कार
क्यों करते हो झूठे आडंबर क्यों नहीं करते हो उनका बहिष्कार
जब तक नहीं होगा इंसान के अंदर इंसानियत का संचार
मत करो 'दिखावा' का दुष्प्रचार
दुष्टों को क्यों नहीं लगाते फटकार
कैसे मनाएँ गणतन्त्र का त्यौहार
अपने अन्तर्मन मे ढूंढो अच्छे विचार
तभी मना सकोगे गणतन्त्र का त्यौहार
दुष्टों और भ्रष्टों ने लोगों का जीना और' तंत्र' को कर रखा है लाचार
अमर शाहीदों की कुर्बानी को कर रखा है बेकार
इन्हें मन व जड़ से उखाड़ फेंको तभी होगा गणतन्त्र का सच्चा त्यौहार
जय हिन्द
(पूनम माथुर)
Tuesday, 18 June 2013
साथ
आया बसंत
गया पतझड़
माया झूमा
छाया उल्लास
सब आशावान
करें सम्मान
चमका दिनमान
कोयल बोली
बौर मतवाली
भौरा बैठा
झूमे डालीडाली
कोयल मतवारी
कुहुक प्यारी
विरहन बेचारी
सरसों पीलीपीली
ललकारे हरियाली
रंग धानी
यौवन खेले
चाल मस्तानी
मदनमोहन मन
खेले अठखेली
दिन होली
रात दीवाली
ऐसी अभिलाषा
पूरी हो
जाए जीवन
की आस प्यास
मिले सबको
सबका साथ
यही अर्थ
है मधुमास
(श्रीमती पूनम माथुर)
गया पतझड़
माया झूमा
छाया उल्लास
सब आशावान
करें सम्मान
चमका दिनमान
कोयल बोली
बौर मतवाली
भौरा बैठा
झूमे डालीडाली
कोयल मतवारी
कुहुक प्यारी
विरहन बेचारी
सरसों पीलीपीली
ललकारे हरियाली
रंग धानी
यौवन खेले
चाल मस्तानी
मदनमोहन मन
खेले अठखेली
दिन होली
रात दीवाली
ऐसी अभिलाषा
पूरी हो
जाए जीवन
की आस प्यास
मिले सबको
सबका साथ
यही अर्थ
है मधुमास
(श्रीमती पूनम माथुर)
Sunday, 16 June 2013
Saturday, 15 June 2013
समझ नहीं आया---पूनम माथुर
शनिवार, 5 नवम्बर 2011
समझ नहीं आया
बुरा * लिखें आप लोग दूर जाएँगे।
घमंड न कर इंसान यह सब समझ जाएँगे,
अपने को हैवान न बना ये सब समझ जाएँगे।
दुनिया को नई राह दिखा जाएँगे ,
ऐसा काम कर जाएँगे।
नाम से क्या मतलब है? अगर दुनिया को नई राह दिखा जाएँगे,
तब मानव,मानव बन जाएँगे इंसान कहला जाएँगे।
पच्चीस -पचास-पिच्छतर का यह जीवन क्यों बर्बाद कर जाएँगे?
सब मे सब का यह झलक दिखा जाएँगे ।
लाल न होने पाये यह धरती ऐसा प्रयास कर जाएँगे,
हरी-भरी धरती हो ऐसा संकल्प करवा जाएँगे।
तमसो माँ ज्योतिर्मय का दुनिया मे राज करवा जाएँगे,
तब विधाता का एक छोटा सा शिष्य कहलाएंगे।
न कोई मजदूर हो,न कोई मालिक यह बतलाने की कोशिश कर जाएँगे,
सब का मालिक एक है यह बतलाने की कोशिश कर जाएँगे।
--पूनम माथुर
============
10 टिप्पणियां:
- अच्छा लिखें आप लोग खिंचे आएंगे ,प्रत्युत्तर देंहटाएं
बुरा लिखें आप लोग दूर जाएँगे।
घमंड न कर इंसान यह सब समझ जाएँगे,
अपने को हैवान न बना ये सब समझ जाएँगे।सारगर्भित रचना.... - ब्लोगर्स के लिए सार्थक सन्देश देती रचना ।प्रत्युत्तर देंहटाएं
बहुत सुन्दर । - रहा हौसला अगर यही,अमल पे लाने मेंप्रत्युत्तर देंहटाएं
नहीं तनिक संशय कि मंजिल हासिल कर जाएंगे - सार्थक सन्देश....प्रत्युत्तर देंहटाएं
सच्ची अभिव्यक्ति....
सादर - सटीक बात ..अच्छा सन्देश
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आज तरक्की का माप तौल आँख से किया जाने लगा है....आँख से भौतिक तरक्की भर का आकलन किया जा सकता है...यदि हम एक अच्छे मनुष्य न हुए तो वस्तुओं की भीड़ बढाकर भी क्या हासिल होगा....