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Saturday, 27 June 2015

देखा जीवन --- पूनम माथुर

ज़िंदगी को हमने तबाह और बर्बाद होते देखा 
हर चंद घुट-घुट कर सांस लेते हुये देखा 
कोई किसी का नहीं होता यह बात हमने अपनी आँखों से देखा 
तबाही का मंजर है जीवन पल-पल  घुटते हुये देखा 
अपनों को हमने दूसरों में बदलते हुये देखा 
चंद पैसों के आगे सबको गुलाम होते हुये देखा 
सच को झूठ में तब्दील होते हुये देखा 
इंसानियत  को हैवानियत में बदलते हुये देखा 
मिट्टी (तन )को मिट्टी का सौदा करते हुये देखा 
अपनों को अपनों से आँख चुराते हुये देखा 
पूर्णिमा को अमावस्या में जाते हुये देखा।