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Monday 26 November 2012

दो कवितायें

शुक्रवार, 25 नवम्बर 2011


पूनम की दो कवितायें


"तीन"



(श्रीमती पूनम माथुर )
सम से समता 
निज से निजता  
एक से एकता

लघु से लघुता

प्रभु से प्रभुता 

मानव से मानवता

दानव से दानवता

सुंदर से सुंदरता 

जड़ से जड़ता

छल से छलता

जल से जलता

दृढ़ से दृढ़ता  

ठग से ठगता

कर्म से कर्मठता

दीन से दीनता

चंचल से चंचलता

कठोर से कठोरता

समझ से समझता

खेल से खेलता

पढ़ से पढ़ता

इस का विधाता

से रिश्ता होता

ये दिल जानता

ये गहरा नाता

गर समझना आता

अपना सब लगता

मन हमारा मानता

दर्द न होता

जग अपना होता

विधाता का करता

गुणगान शीश झुकाता

मानवधर्म का मानवता

से सर्वोत्तम रिश्ता

सेवा प्रार्थना होता

सबसे अच्छा होता

ये गहरा रिश्ता

अगर सबने होता

समझा ये नाता

दिलों मे होता

रामकृष्ण गर बसता

संसार सुंदर होता

झगड़ा न होता

विषमता से समता

आ गया होता

विधाता से निकटता

तब हो जाता

जग तुमसा होता

जय भू माता 



        * * *
(नोट- यह कविता 'जो मेरा मन कहे ' पर प्रकाशित हो चुकी है)


 देखा एक बच्चा 




हमने एक छोटा बच्चा देखा 
उसमे पिता का नक्शा देखा 
दादा दादी का राजदुलारा देखा 
उसकी माँ ने उसमे संसार का नजारा देखा 

अपनों ने उसमे अपना बचपन देखा 
बच्चों का उसमे सजीव चित्रण देखा 
इनकी मस्तानी और निराली दुनिया को देखा 
प्रेम मोहब्बत की दुनिया को देखा 

सबसे अच्छी दुनिया को देखा 
इनकी भोली सूरत के आगे दुश्मनों को भी झुकते देखा 
दुश्मनों को भी इनको चूमते देखा 
इनको गैरों को भी अपना बनाते देखा 

इस फरिश्ते के आगे सबको नमन करते देखा 
सुख-दुख भूल सबको इनमे घुल मिल जाते देखा 

(यशवन्त के जन्मदिन पर उसको माता पूनम का आशीर्वाद)
 
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    Bhushan a year ago


    सरल शब्द और सशक्त भाव की सुंदर कविताएँ. यशवंत जी को जन्मदिन की कोटिशः हार्दिक शुभकामनाएँ.



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    मनोज कुमार a year ago


    अलग और अनूठे फॉर्मेट में लिखी गई सुन्दर रचना।



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    डॉ॰ मोनिका शर्मा a year ago


    बेहतरीन रचनाएँ ..माँ के आशीष रूपी शब्द मन को छू गए ....



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    sushma 'आहुति' a year ago


    दोनों ही कविताएं.... बेहतरीन शब्द सयोजन है.....



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    Rakesh Kumar a year ago


    अरे वाह! बहुत सुन्दर.
    दोनों कवितायें लाजबाब हैं.
    बहुत बहुत बधाई.



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    Akshitaa (Pakhi) a year ago


    दोनों कविताएँ बहुत अच्छी लगीं..बधाई !!



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    डॉ टी एस दराल a year ago


    ममतामयी दूसरी रचना बहुत बढ़िया लगी .
    पहली में किया गया प्रयोग भी अच्छा है .



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    रश्मि प्रभा... a year ago


    इस फरिश्ते के आगे सबको नमन करते देखा
    सुख-दुख भूल सबको इनमे घुल मिल जाते देखा ... isse badhker aashish nahin koi , na hi yash ko zarurat hogi ... punam ji - aap bahut achha likhti hain



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    अनुपमा पाठक a year ago


    दोनों कवितायेँ सुन्दर हैं!

    माँ का शब्दाशीश अभिभूत करने वाला है!



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    सदा a year ago


    दोनो ही रचनाएं बहुत बढि़या ... शुभकामनाओं के साथ आभार ।

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