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Sunday 2 October 2016

गांधी जी और शास्त्री जी : एक परिचय ------ पूनम



मोहनदास करमचंद गांधी जब महात्मा गांधी बने तो जन-जन के प्रिय नायक भी थे। आज भी यही कहा जाता है कि भारत को स्वतन्त्रता महात्मा गांधी के ही मुख्य प्रयासों से मिली है। लेकिन डा सम्पूर्णानन्द जो यू पी के मुख्यमंत्री और राजस्थान के राज्यपाल भी रहे और संविधान सभा के सदस्य भी रहे बहौत ही निराशा के साथ साप्ताहिक हिंदुस्तान मे 1967 मे लिखे अपने एक लेख मे कहते हैं-"हमारे देश मे भी गांधी नाम का एक पागल पैदा हुआ था,संविधान के पन्नों पर उसके नाम का एक भी छींटा देखने को नहीं मिलेगा। "

 सम्पूर्णानन्द जी ने अपने अनुभवों के आधार पर कोई गलत निष्कर्ष नहीं निकाला है। आजादी के तुरंत बाद गांधी जी की उपेक्षा शुरू हो गई थी अंत तक उन्हें नेहरू-पटेल के झगड़ों मे मध्यस्थता करनी पड़ती थी। परंपरागत रूप से  प्रतिवर्ष गांधी जयंती को एक राष्ट्रीय पर्व के रूप मे मनाया जाता है। गांधी जी के नाम पर गोष्ठियाँ करके खाना-पूर्ती कर ली जाती है। कुछ समय पूर्व तक खादी  के वस्त्रों पर गांधी आश्रम से छूट मिलती थी। यह कह कर इतिश्री कर ली जाती है कि गांधी जी के विचार आज भी प्रासगिक हैं जबकि कहने वाले भी उन पर अमल नहीं करना चाहते।


गांधी जी के नाम का उपयोग एक फैशन के रूप मे किया जाता है। 1977 मे आपात काल के बाद छत्तीस गढ़ मे पवन दीवान को छत्तीस गढ़ का गांधी कह कर प्रचारित किया गया था और अभी-अभी कारपोरेट घरानों के रक्षा कवच अन्ना हज़ारे को दूसरा गांधी कहा गया है। वाराणासी के एक चिंतक महोदय ने एन डी ए शासन मे हुये रु 75000/-करोड़ के यू टी आई घोटाले के समय रहे यू टी आई चेयरमैन डा सुब्रहमनियम स्वामी की तुलना गांधी जी से की है।

गांधी और गांधीवाद का बेहूदा मज़ाक उड़ाया जा रहा है। 1980 मे 'गांधीवादी समाजवाद' का शिगूफ़ा उन लोगों ने छोड़ा था जिन्हें गांधी जी की हत्या के लिए उत्तरदाई माना जाता रहा था। यदि 1970 के लगभग लार्ड रिचर्ड  एटन बरो ने'गांधी' नामक फिल्म न बनाई होती तो आज की पीढ़ी शायद गांधी जी के नाम से भी अपरिचित रह जाती।

गांधी जी का आग्रह सर्वाधिक 'सत्य' और 'अहिंसा' पर था और इन्हीं दोनों को उन्होने अपने संघर्ष का हथियार बनाया था। 'अहिंसा'-मनसा -वाचा-कर्मणा होनी चाहिए तभी वह अहिंसा है। लेकिन आज गांधीवादी कहे गए अन्ना जी के इंटरनेटी भक्त 'तुम्हें गोली से मार देंगे','वाहियात', 'बकवास ' आदि अनेकों अपशब्दों का प्रयोग खुल्लम-खुल्ला कर रहे हैं। यही है आज का गांधीवाद। 

लाल बहादुर शास्त्री 

एक अत्यंत गरीब परिवार मे जन्मे और अभावों मे जिये लाल बहादुर शास्त्री सच्चे गांधीवादी थे । गांधी जयंती पर ही उनकी जयंती भी है। छल -छद्म से दूर रह कर स्वाधीनता संघर्ष मे भाग लेने के बाद शास्त्री जी ने ईमानदारी से राजनीति की है। यू पी के गृह मंत्री रहे हो या केंद्र के रेल मंत्री सभी जगह निष्पक्षता व ईमानदारी के लिए शास्त्री जी का नाम बड़े आदर के साथ लिया जाता है। इसीलिए अपनी गंभीर बीमारी के समय नेहरू जी ने शास्त्री जी को निर्विभागीय मंत्री बना कर एक प्रकार से कार्यवाहक प्रधानमंत्री ही बना दिया था। नेहरू जी की इच्छा के अनुरूप ही शास्त्री जी को उनके बाद प्रधान मंत्री बनाया गया। दृढ़ निश्चय के धनी शास्त्री जी ने अमेरिकी  PL-480 की बैसाखी को ठुकरा दिया और जनता से सप्ताह मे एक दिन उपवास रखने की अपील की जिसका जनता ने सहर्ष पालन भी किया। अमेरिकी कठपुतली पाकिस्तान को 1965 के युद्ध मे करारी शिकस्त शास्त्री जी की सूझ-बूझ और कठोर निर्णय से ही दी जा सकी।

आज शास्त्री जी का नाम यदा-कदा किन्हीं विशेष अवसरों पर ही लिया जाता है। गांधी जी का नामोच्चारण तो राजनीतिक फायदे के लिए हो जाता है परंतु शास्त्री जी का नाम लेकर कोई भी ईमानदारी के फेर मे फंसना नहीं चाहता। नेहरू जी के सलाहकार के रूप मे शास्त्री जी ने जिन नीतियों का प्रयोग किया उनसे यू पी मे कम्यूनिस्टों का प्रभाव क्षीण हो गया और कालांतर मे सांप्रदायिक शक्तियों का उभार होता गया। खुद गरीब होते हुये भी गरीबों के लिए संघर्ष करने वालों को ठेस पहुंचाना शास्त्री जी का ऐसा कृत्य रहा जिसके दुष्परिणाम आज गरीब वीभत्स रूप मे भुगत रहे हैं।

गांधी जी ट्रस्टीशिप के हामी थे और शास्त्री जी सच्चे गांधीवादी परंतु आज देश मे शिक्षा समेत हर चीज का बाजारीकरण हो गया है। बाजार ही राजनीति,धर्म और समाज को नियंत्रित कर रहा है। गांधी-शास्त्री जयंती मनाना एक रस्म-अदायगी ही है। भविष्य मे कुछ सुधार हो सके इसकी प्रेरणा प्राप्त करने हेतु गांधी-शास्त्री का व्यक्तित्व और कृतित्व अविस्मरणीय रहेगा।

गांधी जी ने आम आदमी को केन्द्रित किया था एक आर्यसमाजी उपदेशक महोदय ने अपने प्रवचन मे बताया  था की जब गांधी जी चंपारण मे नीलहे गोरों के अत्याचार के विरुद्ध संघर्ष करने गए थे तो एक गरीब आदिवासी परिवार ने उन्हें बुलाया था। गांधी जी उस परिवार के लोगों से मिलने गए तब उन्हें उनकी वास्तविक गरीबी का र्हसास हुआ,परिवार की महिला ने गांधी जी से कहा की वह अपनी बेटी को भी भेजेगी अतः वह अंदर गई और वही धोती पहन कर उसकी बेटी गांधी जी से मिलने आई। गांधी जी को समझ आ गया कि वहाँ माँ -बेटी के मध्य केवल एक ही धोती है। उसी क्षण उन्होने आधी धोती पहनने का फैसला किया और मृत्यु पर्यंत ऐसा ही करते रहे। ब्रिटिश सरकार उन्हें हाफ नेक्ड फकीर कहती रही परंतु उन्ही से वार्ता भी करनी पड़ी। उन्ही गांधी जी के देश मे आदिवासियों से क्या सलूक हुआ,एक नजर डालें हिंदुस्तान,लखनऊ,01 अक्तूबर 2011 के इस सम्पाद्कीय पर।हम प्रतिवर्ष गांधी जयंती तो मनाते हैं परंतु गांधी जी से प्रेरणा नहीं लेते जिसकी नितांत आवश्यकता है।

1-10-11 का समपादकीय-
साभार :

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यद्यपि  महात्मा गांधी ने सरकार में कोई पद ग्रहण नहीं किया;परन्तु उन्हें राष्ट्रपिता की मानद उपाधि से विभूषित किया गया है.गांधी जी क़े जन्मांग में लग्न में बुध बैठा है और सप्तम भाव में बैठ कर गुरु पूर्ण १८० अंश से उसे देख रहा है जिस कारण रूद्र योग घटित हुआ.रूद्र योग एक राजयोग है और उसी ने उन्हें राष्ट्रपिता का खिताब दिलवाया है.गांधी जी का जन्म तुला लग्न में हुआ था जिस कारण उनके भीतर न्याय ,दया,क्षमा,शांति एवं अनुशासन क़े गुणों का विकास हुआ.पराक्रम भाव में धनु राशि ने उन्हें वीर व साहसी बनाया जिस कारण वह ब्रिटिश सरकार से अहिंसा क़े बल पर टक्कर ले सके.


गांधी जी क़े सुख भाव में उपस्थित होकर केतु ने उन्हें आश्चर्यजनक ख्याति दिलाई परन्तु इसी क़े कारण उनके जीवन क़े अंतिम वर्ष कष्टदायक व असफल रहे.(राजेन्द्र बाबू को भी ऐसे ही केतु क़े कारण अंतिम रूप से नेहरु जी से मतभेदों का सामना करना पड़ा था.)एक ओर तो गांधी जी देश का विभाजन न रुकवा सके और दूसरी ओर साम्प्रदायिक सौहार्द्र  भी स्थापित न हो सका और अन्ततः उन्हें अंध -धर्मान्धता का शिकार होना पड़ा.

गांधी जी क़े विद्या भाव में कुम्भ राशि होने क़े कारण ही वह कष्ट सहने में माहिर बने ,दूसरों की भलाई और परोपकार क़े कार्यों में लगे रहे और उन्होंने कभी भी व्यर्थ असत्य भाषण नहीं किया.गांधी जी क़े अस्त्र सत्य और शास्त्र अहिंसा थे.गांधी जी क़े सप्तमस्थ  गुरु ने ही उन्हें विद्वान व राजा क़े तुल्य राष्ट्रपिता की पदवी दिलाई.

गांधी जी क़े भाग्य भाव में मिथुन राशि है जिस कारण उनका स्वभाव सौम्य,सरस व सात्विक बना रहा.धार्मिक सहिष्णुता इसी कारण उनमें कूट -कूट कर भरी हुई थी.उन्होंने सड़ी -गली रूढ़ियों व पाखण्ड का विरोध किया अपने सदगुणों और उच्च विचारों क़े कारण अहिंसक क्रांति से देश को आज़ाद करने का लक्ष्य उन्हें इसी क़े कारण प्राप्त हो सका.गांधी जी क़े कर्म भाव में कर्क राशि की उपस्थिति ने ही उनकी आस्था श्रम,न्याय व धर्म में टिकाये रखी और इसी कारण राजनीति में रह कर भी वह पाप-कर्म से दूर रह कर गरीबों की सेवा क़े कार्य कर सके.गांधी जी का सर्वाधिक जोर दरिद्र -नारायण की सेवा पर रहता था और उसका कारण यही योग है.गांधी जी क़े एकादश भाव में सिंह राशि एवं चन्द्र ग्रह की स्थिति ने उन्हें हठवादी,सादगी पसन्द ,सूझ -बूझ व नेतृत्व की क्षमता सम्पन्न तथा विचारवान बनाया.इसी योग क़े कारण उनके विचार मौलिक एवं अछूते थे जो गांधीवाद क़े नाम से जाने जाते हैं.अस्तु गांधी जी को साधारण इन्सान से उठ कर महात्मा बनाने में उनके जन्म-कालीन ग्रह व नक्षत्रों का ही योग है.

साभार ::
http://krantiswar.blogspot.in/2012/10/blog-post.html

(इस ब्लॉग पर प्रस्तुत आलेख लोगों की सहमति -असहमति पर निर्भर नहीं हैं -यहाँ ढोंग -पाखण्ड का प्रबल विरोध और उनका यथा शीघ्र उन्मूलन करने की अपेक्षा की जाती है)

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