कार्गिल (लद्दाख क्षेत्र ) में 1981 में ढाई माह पुनः 1982 में एक माह टेम्पोरेरी ट्रांसफर पर रहा हूँ । उस क्षेत्र में पहाड़ी नदियां ही जल का स्त्रोत हैं जो अक्तूबर से अप्रैल तक बर्फ से जमी रहती हैं। ठंड के कारण वृक्षों की लकड़ी को जलावन के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। अतः जहां वहाँ धन -संपत्ति की चोरी कोई नहीं करता है वहीं पानी व लकड़ी चुरा ले जाने की वहाँ घटनाएँ होती रहती हैं। ऐसे क्षेत्र में सरकारी नौकरी के बावजूद कृत्रिम ग्लेशियर बना कर जल - समस्या का समाधान करना वस्तुतः ऋषित्व कृत्य है। पदमश्री चेवांग नार्फ़ेल साहब ने स्तुत्य एवं अनुकरणीय दृष्टांत प्रस्तुत किया हैं उनको जितना भी सम्मान दिया जाये वह कम ही होगा।
कार्गिल (लद्दाख क्षेत्र ) में 1981 में ढाई माह पुनः 1982 में एक माह टेम्पोरेरी ट्रांसफर पर रहा हूँ । उस क्षेत्र में पहाड़ी नदियां ही जल का स्त्रोत हैं जो अक्तूबर से अप्रैल तक बर्फ से जमी रहती हैं। ठंड के कारण वृक्षों की लकड़ी को जलावन के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। अतः जहां वहाँ धन -संपत्ति की चोरी कोई नहीं करता है वहीं पानी व लकड़ी चुरा ले जाने की वहाँ घटनाएँ होती रहती हैं। ऐसे क्षेत्र में सरकारी नौकरी के बावजूद कृत्रिम ग्लेशियर बना कर जल - समस्या का समाधान करना वस्तुतः ऋषित्व कृत्य है। पदमश्री चेवांग नार्फ़ेल साहब ने स्तुत्य एवं अनुकरणीय दृष्टांत प्रस्तुत किया हैं उनको जितना भी सम्मान दिया जाये वह कम ही होगा।
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