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Friday 28 December 2012

संवाद /बिना-नज़र समझ के फेर बा ---पूनम माथुर


जब हमनी के बी ए मे हिन्दी के किताब-'राजतिलक' मे एगो पढ़ले रही ऊ लिख रहल बानी -"राजा की वास्तविक शक्ति जनपद के विश्वास मे होती है न कि,शस्त्रागार मे होती है। "

दिल्ली पुलिस के लोग प्रशासक वर्ग मे कहावे ला लेकिन केतना बड़का दुर्भाग्य बा कि ऊ लोग जनता के साथे  बातचीत के माध्यम या संवाद के माध्यम से कोईयो काम ना करवा सकल हा। का हर बतिया के ऐके को जबाब बा लाठी मार दे। लाठी के आगे भूतवों भाग जाई ।' रामायण '-'महाभारत' मे पहिले दूनों पक्ष के बीच मे संवाद भइल बाटे ओकरा बाद । लड़ाई भइल बा। लेकिन आज नयका युग त कलयुग बा। जाड़ा के दिन जे तरह से पानी के फुहार से आऊर लाठी से मार-मार के परदरशंनकारी के भगावल गईल हा का इहे उचित बा। लोगन के जुड़े के कारण मोबाइल के क्रान्ति काही या इलेक्ट्रानिक क्रान्ति थोड़े ही देरी हजारों लोग एक दूसरा के साथ बाटे भले ही एकरा म नेतृत्व के अभाव होखे। पर एकता त दिखाई दे रहल बा।

जनता के गोसा त सोलह दिसंबर के घटना ही नईखे,सरकारी तंत्र के असंवेदनशील आऊर गैर जबाब देही भी बाटे । न त आज के प्रशासन मे भीड़ से निबटे के केईओ कुशलता बाटे, खाली लाठी देखावे लन जनता ऐही  से  ना सड़क पर उतर ल हिया। कोछो जनता त गोसाई रहे ओकरा त भवानात्मक संतबना चाहीत रहे। सत्ता पर काबिज लोग के ओह घड़ी काम रहे उन लोगन के संतव्ना देवे। कुछ राजद्रोही लोग भीड़ के ऊकसवा देवे लन कि देश मे गृह-युद्ध हो जाये। कालेज -स्कूल के बच्चन के बुद्धि केतना होला। बेचारा सब पीट गईलन। चूके कारवाई ठीक तरह से ना भाईल हा एह से इतना भीड़ जूट गईल आऊर हंगामा होई गईल। संवाद के माध्यम से सब काम हो जाईत न पानी के फुहार से आऊर ना लाठी से। प्यार मोहब्बत से सब काम हो सकत। भवानात्मक रूप से। संवाद के जरिये से ही अंगुलीमाल जईसन डाकू के हृदय परिवर्तन हो गईल । 

संवाद के बिना ही त कुछ लोग मर जाता दूनो तरफ के लोगन   के तकलीफ बा। वोट लेवे के बारी त राजनीतिक लोग घरे परे हाथ जोड़ के घूमेला। का एक घड़ी जब देस मे अइसन स्थिति बाटे त उन लोगन के मुंह काहे बंद बा। ऊ लोग के नेतृत्व करके चाही राजनीतिक नेतृत्व होवे चाही। खाली कुर्सी चाही। देश तो आपन  बा -जाति धर्म मे त ना बाटे के चाही। सभे राजनीतिक दल के अपील करे के चाही की अइसन घड़ी मे शांति बनावे चाही। ना त दुश्मन हावी हो जाई। देश के कुछ गद्दार यही चाह रहल बा। लड़ाई लगा के आपन उल्लू सीधा कर रहल बा।  आज के संदर्भ मे जेतना कांड  हो रहल बा। सब संवाद के अभाव के कारण ही बा। एगो त जेनरेशन गैप हो गईल बा। माहतारी बाप के बाल बच्चा से कोईओ मतलब नई खे । पैसा आऊर पैसा कमाए के धुन लागल बाटे।

दादी -नानी  के किस्सा कहानी खत्म हो गईल बा। लॉरी त न जाने कहअवा छूट गईल बा। एकरा मे बहुत बड़ा संदेश रहे जे छोट बच्चा के दिमाग के अन्तर्मन पर पडत रहे । अंजाने मे ही चरित निर्माण भी धीरे-धीरे होत रहे। आज के बच्चा भूखे रोअत रोअत सुत जाला । महतारी बाप काम पर से लौटिए तवे तक बचवा सिसकते-सुबकते सुत जाला। न ओकरा पास प्यार बाटे न संवाद बाटे न केहु के गोदी बाटे । सही रास्ता दिखावे वाला कोई नईखे । बरगर-पिज्जा खा आऊर जिय। कोई ओ कहबा जा रहल बा कोई ओ मतलबे नई खे । हाय पइसा पइसा।

आज के युग मे फिर से दादी  नानी के युग के आव्हान करे के चाहि। फिर से दादी- नानी के किस्सा-कहानी के माध्यम से नीति आऊर  नैतिक शिक्षा के जमाना लौट आई ,अपराध रुकी । बड़ा-बूढ़ा समझ आऊर नजर के बात करीहे। आज फिर वही गोदी लौटिके बच्चन के चाही। आधुनिक सिनेमा ,आर्केस्ट्रा गाना के कम करके फिर से पुरनका सिनेमा के लावे के चाही। जइसे -प्यासा,चित्रलेखा,दो आँखें बारह हाथ,हकीकत,जाग्रति,दुश्मन जइसन सिनेमा देखावे के चाही। नुक्कड़ नाटक के माध्यम से भी जनता मे जाग्रति फेलावे के चाही । सम्राट अशोक के भी त हृदय परिवर्तन हो गईल रहे। त फिर हर इंसान मे इंसान बनावे के नजरिया होखे के चाही। एक गो गाना बाटे-"इंसान की औलाद हो इंसान बनो ,न हिन्दू बनो न मुसलमान बनो"।

शरीर के खातिर खाना पानी चाही । त मन-आत्मा  के खातिर भी त संस्कार रूपी भोजन देवे के चाही । ई कर्तव्य देशवासी,समाज,घर-परिवार,अड़ौसी-पड़ौसी के बाटे। गलत शिक्षा के कारण ही सब दूरगुन फेलल बाटे। आई हम सभे इहे दृढ़ संकल्प लीही की संवाद के माध्यम से लोग के बदले के कोशिश करब। 


1 comment:

  1. रउआ क धन्यवाद .... हम त मूक(निशब्द)हो गईनी !!

    आभार !!

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