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Tuesday, 25 June 2013

प्रभु की लीला---पूनम माथुर




इसे प्रभु की माया कहें या लीला। उत्तराखंड में जो कहर बरपा है। क्या आप पत्थर के भगवान को पूजने जा रहे थे? इससे तो कहीं अच्छा होता कि,रक्त दान या अंग दान कर देते तो परमात्मा की इस दुनिया को संवार सकते थे जबकि अब सम्पूर्ण अंग सड़ रहे हैं ,बह रहे हैं और प्रदूषण फैला रहे हैं। परमात्मा ने जब आपको बुद्धि व विवेक दिया है तो क्यों नहीं सोचते कि क्या गलत है और क्या सही?परमात्मा सीख देता है परंतु लोग मानते कब हैं?अपने अहंकार के मद में डूबे रहते हैं। 'कुंभ; के बाद क्या लोगों को कुछ सीख नहीं मिली?क्यों न घर में ही पूजा-पाठ करे? क्या गरीबों के लिए कुछ नहीं होता है?क्या अमरनाथ,बद्रीनाथ,केदारनाथ गरीबों के लिए नहीं होता है?परंतु उनके पास पैसे  कहाँ होते हैं?सो वो कहाँ जाएँ?क्या ये  पैसे वाले लोग,'कर'चोर लोग धन इकट्ठा करके पिकनिक मनाने जाते हैं?उनका मानना है जो पैसा हमने कमाया है हम ही उसका उपभोग करें। परंतु यह चुराया हुआ धन तो पूरी जनता का है। जनता की हाय से बचना चाहिए नहीं तो ऐसी आपदाएँ बार-बार आती ही रहेंगी। आज का राजा कल का भिखारी हो गया है। यह परमात्मा की ओर से दिया हुआ 'दंड'है या 'न्याय' जो कहिए। 'प्रकृति' किसी को  माफ नहीं करती है। परमात्मा या प्रकृति का यह इंसाफ है-इस हाथ ले उस हाथ दे। जो अपनी मेहनत के पैसे से गए होंगे वे 'अपवाद' स्वरूप बच गए हैं।

 हमारे देश में इतना पैसा है परंतु कोई 'रोटी' और कोई 'लंगोटी' के लिए जूझ रहा है तो कोई मंहगी शराब और अय्याशी में डूब रहा है। अगर इन पैसों का सही स्तेमाल होता तो कितने बेकार नौजवानों को नौकरी मिल जाती,कितनी लड़कियों की शादियाँ हो जातीं। शायद देश के 35 प्रतिशत लोगों को काम तो मिल ही जाता। आज आपदा में इन लोगों का कमाया हुआ धन पानी में बह गया। खुद लड़ कर मर रहे हैं। लाशों के ऊपर चढ़ कर 'चांडालों' की तरह भाग रहे हैं। कलयांणकारी  'शिव' ने अपना 'रौद्र तांडव' दिखाया है उसका भी तो 'दर्शन' कर लो!क्या आज प्रकृति ने अपना सही रूप नहीं दिखाया?क्यों प्रकृति के ऊपर इतना भार डाल रहे थे?इसी लिए प्रकृति को 'खफा' होना पड़ा।  

अगर अपनी कमाई को लोग नेक काम में लगाते तो न  इस तरह से मरते और परमात्मा के यहाँ नेक बंदे के रूप में नाम और  दर्ज हो जाता। बाकी लोगों को यह समझने के लिए प्रकृति और शिव ने यह उदाहरण दिया है। अभी इस वक्त 'आपदा कोष' में लोग पैसा जमा कर रहे हैं तो क्या वे हमेशा देश के नौजवानों के किए धन एकत्र नहीं कर सकते?

विदेशों में तरक्की होती है परंतु प्रकृति-जलवायु,पहाड़,नदी,नालों को छेड़ा नहीं जाता है परंतु हमारा देश तो कोरा नकलची है। इसका भुगतान तो लोग करेंगे ही। नकल के लिए भी अक्ल की ज़रूरत होती है। पेड़ काटे जा रहे हैं,कारखाने बनाए जा रहे हैं,बिजली की खपत अंधाधुंध हो रही है। तो इसका असर तो पड़ेगा ही। 

ये आपदाएँ परमात्मा की तरफ से मनुष्य की आँखें खोलने के लिए होती हैं कि प्रकृति के साथ छेड़ -छाड़ न करो  तभी मानवता सुरक्षित  रह पाएगी।  

Wednesday, 19 June 2013

भूखी नंगी जनता---पूनम माथुर

27-01-2012 को लिखित 
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कैसा है यह गणतन्त्र का त्यौहार
कोई भूखा सोता है कोई नंगा रहता है
कोई बेघर होता है कोई खाते-खाते उल्टी करता है
कैसा है यह गणतन्त्र का त्यौहार
हाँ-हाँ सब करते हैं पर ना ही कोई कुछ करने को तैयार
कैसे होगा भोली-भाली जनता का उद्धारदुष्ट,दुशप्रवहार,संस्कार 
कैसे हम मनाएंगे यह गणतन्त्र का त्यौहार
जब तक हम सभी नहीं लाएँगे सच्चा प्यार-दुलार
तब तक कैसे होगा प्राणियों का सत्कार
छोड़ दो यह नारेबाजी यह सब करना है बेकार
जब तक नहीं पनपते तुम्हारे अंदर अच्छे संस्कार
क्यों करते हो झूठे आडंबर क्यों नहीं करते हो उनका बहिष्कार
जब तक नहीं होगा इंसान के अंदर इंसानियत का संचार
मत करो 'दिखावा' का दुष्प्रचार
दुष्टों को क्यों नहीं लगाते फटकार
कैसे मनाएँ गणतन्त्र का त्यौहार
अपने अन्तर्मन मे ढूंढो अच्छे विचार
तभी मना सकोगे गणतन्त्र का त्यौहार
दुष्टों और भ्रष्टों ने लोगों का जीना और' तंत्र' को कर रखा है लाचार
अमर शाहीदों की कुर्बानी को कर रखा है बेकार
इन्हें मन व जड़ से उखाड़ फेंको तभी होगा गणतन्त्र का सच्चा त्यौहार



जय हिन्द  


(पूनम माथुर)

Tuesday, 18 June 2013

साथ

आया बसंत
गया पतझड़
माया झूमा
छाया उल्लास
सब आशावान
करें सम्मान
चमका दिनमान
कोयल बोली
बौर मतवाली
भौरा बैठा
झूमे डालीडाली
कोयल मतवारी
कुहुक प्यारी
विरहन बेचारी
सरसों पीलीपीली
ललकारे हरियाली
रंग धानी
यौवन खेले
चाल मस्तानी
मदनमोहन मन
खेले अठखेली
दिन होली
रात दीवाली
ऐसी अभिलाषा
पूरी हो
जाए जीवन
की आस प्यास
मिले सबको
सबका साथ
यही अर्थ
है मधुमास


(श्रीमती पूनम माथुर)

Saturday, 15 June 2013

समझ नहीं आया---पूनम माथुर

शनिवार, 5 नवम्बर 2011

समझ नहीं आया

अच्छा लिखें आप लोग खिंचे आएंगे ,
बुरा  * लिखें आप लोग दूर जाएँगे।
घमंड न कर इंसान यह सब समझ जाएँगे,
अपने को हैवान न बना ये  सब समझ जाएँगे।
दुनिया को नई राह दिखा जाएँगे ,
ऐसा काम कर जाएँगे।
नाम से क्या मतलब है? अगर दुनिया को नई राह दिखा जाएँगे,
तब मानव,मानव बन जाएँगे इंसान कहला जाएँगे।
पच्चीस -पचास-पिच्छतर का यह जीवन क्यों बर्बाद कर जाएँगे?
सब मे सब का यह झलक दिखा जाएँगे ।
लाल न होने पाये यह धरती ऐसा प्रयास कर जाएँगे,
हरी-भरी धरती हो ऐसा संकल्प करवा जाएँगे।
तमसो माँ ज्योतिर्मय का दुनिया मे राज करवा जाएँगे,
तब विधाता का एक छोटा सा शिष्य कहलाएंगे।
न कोई मजदूर हो,न कोई मालिक यह बतलाने की कोशिश कर जाएँगे,
सब का मालिक एक है यह बतलाने की कोशिश कर जाएँगे।


--पूनम माथुर


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10 टिप्‍पणियां:

  1. अच्छा लिखें आप लोग खिंचे आएंगे ,
    बुरा लिखें आप लोग दूर जाएँगे।
    घमंड न कर इंसान यह सब समझ जाएँगे,
    अपने को हैवान न बना ये सब समझ जाएँगे।सारगर्भित रचना....
    प्रत्‍युत्तर देंहटाएं
  2. मानवता से परिपूर्ण संदेश देती सुंदर रचना.
    प्रत्‍युत्तर देंहटाएं
  3. ब्लोगर्स के लिए सार्थक सन्देश देती रचना ।
    बहुत सुन्दर ।
    प्रत्‍युत्तर देंहटाएं
  4. रहा हौसला अगर यही,अमल पे लाने में
    नहीं तनिक संशय कि मंजिल हासिल कर जाएंगे
    प्रत्‍युत्तर देंहटाएं
  5. सार्थक सन्देश....
    सच्ची अभिव्यक्ति....
    सादर
    प्रत्‍युत्तर देंहटाएं
  6. बहुत ही सुन्दर,, सिख देती रचना
    प्रत्‍युत्तर देंहटाएं
  7. सटीक बात ..अच्छा सन्देश

Friday, 14 June 2013

दो कवितायें ---पूनम माथुर

रविवार, 16 अक्तूबर 2011

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(1) दर्द


कोई किसी के आँसू क्यों पोंछे ?
कोई किसी का दर्द क्यों मोल ले या सम्हाले ?
सब अपने मे व्यस्त अलमस्त बने
दूसरों के क्यों हमदर्द बने?
यह जीवन है क्यों खराब करे?
यह जीवन है क्यों बर्बाद करे?
पल-पल घमंड मे डूबे
क्या करने को क्या कर गुजरे।


(2) छवि

एक दो तीन
बापू के बन्दर तीन
क्यों करते हो छवि मलीन
एक पल मे सब जाएगा छीन

 

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12 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत अच्छी प्रस्तुति ||

    बधाई ||

    बंदरों ने छीनकर, जीवन चलाया |
    हाथों को काम में कैसा फंसाया ?
    आँख, मुंह, कान का चक्कर अजीब --
    मर न जाएँ भूख से बन्दर गरीब ||

    यह मेरी ताज़ी तुरंती है स्वीकार करें ||
    प्रत्‍युत्तर देंहटाएं
  2. धन्य-धन्य यह मंच है, धन्य टिप्पणीकार |

    सुन्दर प्रस्तुति आप की, चर्चा में इस बार |

    सोमवार चर्चा-मंच

    http://charchamanch.blogspot.com/
    प्रत्‍युत्तर देंहटाएं
  3. बहुत भावपूर्ण कवितायेँ हैं ।
    बढ़िया है ।
    प्रत्‍युत्तर देंहटाएं
  4. छीजती संवेदना एकदिन लील जाएगी हमारी मौलिकता को।
    प्रत्‍युत्तर देंहटाएं
  5. खूबसूरत प्रस्तुति. शुभकामनायें.
    प्रत्‍युत्तर देंहटाएं
  6. पल-पल घमंड मे डूबे
    क्या करने को, क्या कर गुजरे।

    भावपूर्ण अभिव्यक्ति.
    प्रत्‍युत्तर देंहटाएं
  7. कल 19/10/2011 को आपकी कोई एक पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है . धन्यवाद!
    प्रत्‍युत्तर देंहटाएं
  8. कुछ ही शब्दों में गहरी बात ... बहुत लाजवाब ...

Monday, 10 June 2013

नक्सलवाद या मनुष्यवाद ---पूनम माथुर

सुना है पढ़ा है कि सरकार नक्सलवाद को खत्म करने जा रही है। आज के समाचार पत्र में नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में विकास का हाल बताएगा गूगल समाचार छ्पा है। नक्सलवाद पर आज सर्व दलीय बैठक की सूचना भी छ्पी है।
 उडिया साहित्यकार प्रतिभा राय  से लखनऊ विश्वविद्यालय में हिन्दी विभाग के प्रो .कालीचरण ने विगत 2 अप्रैल को एक चर्चा-'दलित,स्त्री और आदिवासी' पर प्रतिक्रिया  मांगी थी जिसके जवाब में प्रतिभा राय ने कहा था कि स्त्री तो दलित है ही। परंतु इससे पूर्व मनुष्य है सभी को मानव अधिकारों की ज़रूरत है। उन्होने कहा कि वह सभी विषयों पर लिखती रही हैं। आदिवासियों पर शोध  करके उन्होने उपन्यास 'आदिभूमि' लिखा है जिसमे 'बंडा'जाति के आदिवासी नंगे रहते है।बंडा का अर्थ ही नंगा होता है। उन्होने उनकी जाति पूछी तो वे बोले 'रेमो'। रेमो का मतलब मनुष्य होता है। उन्होने अपनी भाषा 'रेमोबीन' बताई जिसका अर्थ 'मानवता' होता है। जबकि वे मानवता जानते हैं तो  उन्हें  अलग से क्यों कोई और नाम दें? यह कहना सत्य है कि व्यक्ति एक सच है। समाज तो व्यक्तियों का जोड़ है। राज्य,समाज एक कल्पना ही तो है। हर व्यक्ति बदले तो समाज बदले। दूसरों को बदलने का हमारा कोई हक नहीं है। यह तो दूसरे की निजता पर आक्रमण है। जो बदलाव बाहरी क्रांतियों से हुआ है वह तो सतही है। अंदर से जो बदलाव होगा वह ठोस होगा।

 साफ ज़ाहिर है कि जंतान्त्रिक संस्थाओं से भारत में ही नहीं समूचे विश्व में मोह भंग हुआ है। इसलिए यह कहना कि नैतिकता का क्षरण हमारे देश में ही हो रहा है गलत है। ज़रूरत है पूरे विश्व में नैतिक मानदंडों को फिर से प्रतिस्थापित करने के लिए समाज के दर्शन  को बदलने की। तभी जो संसद में जाएगा या भेजा जाएगा उसकी नैतिकता फौलादी होगी जिसे कोई भी दलाल नहीं तोड़ पाएगा।

क्या हमारी सरकार नक्सलवाद से लड़ रही है?जूझ रही है?क्या सरकार के पास कोई 'प्यारवाद' नहीं है जिससे इस समस्या का अंत हो जाये। संसद या सरकार में बैठे हुये लोग देवता नहीं हैं। वे भी तो मनुष्य हैं। तो फिर यह कैसा मनुष्यवाद है जिसमें मनुष्य ही मनुष्य का खून पी रहा है ?सरकार ठीक हो तो सब कुछ ठीक हो जाएगा। क्या मैंने गलत सोचा है?

समझना ---पूनम माथुर

शुक्रवार, 14 अक्तूबर 2011

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पूनम माथुर 
किसे कहें अपना
किसे पराया
कोई खद्दरधारी
कोई चद्दरधारी
कोई दुत्कार करे
कोई सत्कार करे
कोई समझता अपना
कोई समझता पराया
कोई कहे आत्मा
कोई कहे परमात्मा
कौन है सच्चा
कौन है  झूठा
कोई कहे एक
कोई कहे अनेक
कोई देता सजा
कोई लेता मजा
कोई देता दवा
कोई देता दगा
क्या है एकसार
क्या है विस्तार
कौन किसे बिगाड़े
कौन किसे संवारे
एक नैया आना
एक नैया जाना
समझ का फेर माना
सबको एक दिन आना-जाना
सबमे तू  ही समाया
यह किसी ने न जाना।


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12 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत अच्छी कविता लिखी है मम्मी ने।

  2. "सबमे तू ही समाया
    यह किसी ने न जाना।"
    जीवन की दौड़-धूप के बाद व्यक्ति इसी निष्कर्ष पर पहुँचता है. पूनम बहन जी ने बहुत सुंदर कविता लिखी है. बहुत बहुत आभार.

  3. बहुत सुन्दर, सार्थक कविता| धन्यवाद|

  4. बहुत बढ़िया |
    बधाई ||
    http://dineshkidillagi.blogspot.com/

  5. सच्चाई को बयाँ करती सुन्दर कविता ।

    समझ का फेर माना
    सबको एक दिन आना-जाना
    सबमे तू ही समाया
    यह किसी ने न जाना।

    बस इसी समझ की कमी रहती है ।

  6. समझ का फेर माना
    सबको एक दिन आना-जाना
    सबमे तू ही समाया
    यह किसी ने न जाना।

    बहुत गहरी बात लिए पंक्तियाँ.....

  7. बहुत ही अच्‍छी प्रस्‍तुति ।

  8. bahut hi satik bate...dil ko chhoo gayi

  9. सार्थक चिंतन पूनम जी...
    सादर बधाईयां....

  10. सबमे तू ही समाया

    यही तो समझना है!
    सुंदर !

  11. जो इस बात को जानता है वो चिंता मुक्त रहता है ...

  12. बहुत ही सुन्दर लिखा है आपने
    प्रत्येक पंक्ति भावमय और अर्थपूर्ण है..

Wednesday, 5 June 2013

भारतमयी मारग्रेट कजिंस

जिस प्रकार एनीबेसेंट ने भारतीय स्वतन्त्रता आंदोलन को बलप्रदान किया था उसी प्रकार 'मारग्रेट कजिंस'भी भारत में बस कर यहाँ की महिलाओं के लिए संघर्ष रत रहीं थीं। 12 जून 2004 को दैनिक जागरण,आगरा में प्रकाशित इस आलेख को इसलिए प्रस्तुत किया जा रहा है कि महिलाओं को मताधिकार दिलाने में उनके योगदान को याद रखा जाये। 
पूनम माथुर