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Monday 10 June 2013

समझना ---पूनम माथुर

शुक्रवार, 14 अक्तूबर 2011

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पूनम माथुर 
किसे कहें अपना
किसे पराया
कोई खद्दरधारी
कोई चद्दरधारी
कोई दुत्कार करे
कोई सत्कार करे
कोई समझता अपना
कोई समझता पराया
कोई कहे आत्मा
कोई कहे परमात्मा
कौन है सच्चा
कौन है  झूठा
कोई कहे एक
कोई कहे अनेक
कोई देता सजा
कोई लेता मजा
कोई देता दवा
कोई देता दगा
क्या है एकसार
क्या है विस्तार
कौन किसे बिगाड़े
कौन किसे संवारे
एक नैया आना
एक नैया जाना
समझ का फेर माना
सबको एक दिन आना-जाना
सबमे तू  ही समाया
यह किसी ने न जाना।


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12 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत अच्छी कविता लिखी है मम्मी ने।

  2. "सबमे तू ही समाया
    यह किसी ने न जाना।"
    जीवन की दौड़-धूप के बाद व्यक्ति इसी निष्कर्ष पर पहुँचता है. पूनम बहन जी ने बहुत सुंदर कविता लिखी है. बहुत बहुत आभार.

  3. बहुत सुन्दर, सार्थक कविता| धन्यवाद|

  4. बहुत बढ़िया |
    बधाई ||
    http://dineshkidillagi.blogspot.com/

  5. सच्चाई को बयाँ करती सुन्दर कविता ।

    समझ का फेर माना
    सबको एक दिन आना-जाना
    सबमे तू ही समाया
    यह किसी ने न जाना।

    बस इसी समझ की कमी रहती है ।

  6. समझ का फेर माना
    सबको एक दिन आना-जाना
    सबमे तू ही समाया
    यह किसी ने न जाना।

    बहुत गहरी बात लिए पंक्तियाँ.....

  7. बहुत ही अच्‍छी प्रस्‍तुति ।

  8. bahut hi satik bate...dil ko chhoo gayi

  9. सार्थक चिंतन पूनम जी...
    सादर बधाईयां....

  10. सबमे तू ही समाया

    यही तो समझना है!
    सुंदर !

  11. जो इस बात को जानता है वो चिंता मुक्त रहता है ...

  12. बहुत ही सुन्दर लिखा है आपने
    प्रत्येक पंक्ति भावमय और अर्थपूर्ण है..

1 comment:

  1. बहुत सुन्दर, सार्थक कविता ...
    धन्यवाद

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