धोखा खाता
मरता अन्नदाता
सूदखोर पैसा बनाता
कैसा ज़ोर- जुल्म का नाता
नौजवान सड़कों पर कराहता
दफ्तर के चक्कर काटता
हर कोई अमीर नहीं होता
गरीबों का एक सपना होता
उनका भी एक धंधा होता
चैन से दो वक्त खा सकता
कोई चोर और डाकू नहीं बनना चाहता
मजबूरी ही तो अंधे कुएं में ले जाता
जहां से चाह कर भी वापस नहीं आ सकता
न मौत होती , न आतंक होता
न राजा होता, न रंक होता
न रौब होता , न दबाव होता
धरती और आकाश सभी का होता
काश ऐसा हो पाता ?
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