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Monday 10 June 2013

नक्सलवाद या मनुष्यवाद ---पूनम माथुर

सुना है पढ़ा है कि सरकार नक्सलवाद को खत्म करने जा रही है। आज के समाचार पत्र में नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में विकास का हाल बताएगा गूगल समाचार छ्पा है। नक्सलवाद पर आज सर्व दलीय बैठक की सूचना भी छ्पी है।
 उडिया साहित्यकार प्रतिभा राय  से लखनऊ विश्वविद्यालय में हिन्दी विभाग के प्रो .कालीचरण ने विगत 2 अप्रैल को एक चर्चा-'दलित,स्त्री और आदिवासी' पर प्रतिक्रिया  मांगी थी जिसके जवाब में प्रतिभा राय ने कहा था कि स्त्री तो दलित है ही। परंतु इससे पूर्व मनुष्य है सभी को मानव अधिकारों की ज़रूरत है। उन्होने कहा कि वह सभी विषयों पर लिखती रही हैं। आदिवासियों पर शोध  करके उन्होने उपन्यास 'आदिभूमि' लिखा है जिसमे 'बंडा'जाति के आदिवासी नंगे रहते है।बंडा का अर्थ ही नंगा होता है। उन्होने उनकी जाति पूछी तो वे बोले 'रेमो'। रेमो का मतलब मनुष्य होता है। उन्होने अपनी भाषा 'रेमोबीन' बताई जिसका अर्थ 'मानवता' होता है। जबकि वे मानवता जानते हैं तो  उन्हें  अलग से क्यों कोई और नाम दें? यह कहना सत्य है कि व्यक्ति एक सच है। समाज तो व्यक्तियों का जोड़ है। राज्य,समाज एक कल्पना ही तो है। हर व्यक्ति बदले तो समाज बदले। दूसरों को बदलने का हमारा कोई हक नहीं है। यह तो दूसरे की निजता पर आक्रमण है। जो बदलाव बाहरी क्रांतियों से हुआ है वह तो सतही है। अंदर से जो बदलाव होगा वह ठोस होगा।

 साफ ज़ाहिर है कि जंतान्त्रिक संस्थाओं से भारत में ही नहीं समूचे विश्व में मोह भंग हुआ है। इसलिए यह कहना कि नैतिकता का क्षरण हमारे देश में ही हो रहा है गलत है। ज़रूरत है पूरे विश्व में नैतिक मानदंडों को फिर से प्रतिस्थापित करने के लिए समाज के दर्शन  को बदलने की। तभी जो संसद में जाएगा या भेजा जाएगा उसकी नैतिकता फौलादी होगी जिसे कोई भी दलाल नहीं तोड़ पाएगा।

क्या हमारी सरकार नक्सलवाद से लड़ रही है?जूझ रही है?क्या सरकार के पास कोई 'प्यारवाद' नहीं है जिससे इस समस्या का अंत हो जाये। संसद या सरकार में बैठे हुये लोग देवता नहीं हैं। वे भी तो मनुष्य हैं। तो फिर यह कैसा मनुष्यवाद है जिसमें मनुष्य ही मनुष्य का खून पी रहा है ?सरकार ठीक हो तो सब कुछ ठीक हो जाएगा। क्या मैंने गलत सोचा है?

2 comments:


  1. क्या हमारी सरकार नक्सलवाद से लड़ रही है?
    Ans. नहीं जूझ रही है ...
    Ans. क्या सरकार के पास कोई 'प्यारवाद' नहीं है जिससे इस समस्या का अंत हो जाये। संसद या सरकार में बैठे हुये लोग देवता नहीं हैं। वे भी तो मनुष्य हैं। तो फिर यह कैसा मनुष्यवाद है जिसमें मनुष्य ही मनुष्य का खून पी रहा है ?
    Ans. परिवारवाद का 'प्यारवाद' है ...
    सरकार ठीक हो तो सब कुछ ठीक हो जाएगा। क्या मैंने गलत सोचा
    Ans.सही सोच है ....
    सामयिक मांग भी यही है ...
    सादर
    !!

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  2. पुनम जी आपकी सोच बिल्कुल सही है। सरकार ठीक हो तो सब कुछ ठीक
    हो जाएगा।

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