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Saturday 1 August 2015

" जइसन उनकर दिन लौटल वईसन सबकर दिन लौटे ।" :प्रेमचंद हमारे देश-काल-परिस्थिति में आज भी जीवित हैं --- पूनम

कल हम लोग 'उमानाथबली' प्रेक्षागृह में IPTA और प्रलेस के संयुक्त तत्वावधान में दो नाटकों का मंचन देखने गए थे।प्रेमचंद की दो कहानियों पर ये दो नाटक थे। पहला था-'पंच परमेश्वर'   और दूसरा 'शूद्र' । सुमन श्रीवास्तव का बच्चों द्वारा जो कार्यक्रम प्रस्तुत किया गया वह बड़ा सराहनीय था । बच्चे ही तो भविष्य के कर्ण धार हैं। हमारे आफिस की मैडम सरजू बाला प्रसाद कहती थीं -" बच्चे कच्ची मिट्टी की तरह होते हैं जिस रूप में ढाल दो वे ढल जाएँगे। " अगर इस प्रयास को हम सभी मिल कर करें तो बहुत सारे बच्चे पढ़-लिख जाएँ। पर क्या आज के जमाने में सबके पास ऐसा दिल है? 
नाटक -'पंच परमेश्वर' :
हिन्दू-मुसलमान दो धर्म का समन्वय दिखाया गया है। उसमें दिखलाया गया है कि 'पंच' न हिन्दू होता है न मुसलमान उसके मुंह से निकली बोली ही न्याय है।वह खुदा है-परमेश्वर है वह कभी गलत नहीं करेगा। जीवन मे खुदा का न्याय ही सर्वोपरि है। यहाँ झूठ की कोई सरकार नहीं है। इस कहानी के माध्यम से आज भी सभी जनों को जाति- धर्म से ऊपर उठ कर इंसानियत और भाई चारे का संदेश मिलता है। अगर वास्तव में ऐसा हो जाये तो कोई अन्याय हो ही नहीं। न कोई अमीर होगा न कोई गरीब होगा। सबको सबकी मेहनत के अनुसार वाजिब हक मिलेगा। न कोई भूखा होगा और न कोई नंगा होगा। इसलिए परमेश्वर के न्याय में विश्वास रखना चाहिए। 

नाटक-'शूद्र' :

यह नाटक पूर्ण रूप से नारी के ऊपर केन्द्रित है। एक अच्छे- भले घर की नारी को किस तरह से छ्ला जा रहा है। वह अपने पति के प्रेम में हर समय लीन रहती थी। बूढ़े ब्राह्मण ने आकर छ्लावा किया। उसने कहा कि मैं तुम्हें तुम्हारे पति के पास छोड़ आऊँगा उन्होने तुम्हें बुलाया है। एक दिन के बाद उसकी माँ आने वाली थीं और बकरियाँ थीं। लेकिन बूढ़े ब्राह्मण ने ठग कर कलकत्ता का लालच दिया और वहाँ जाने पर उसे उसका पति नहीं मिला। फिर उसने जहाज़ से विदेश भेज दिया। जहाज़ में 'शेफाली' नामक अच्छी भली नारी की मुलाक़ात 'गौरी' से हुई। उसने बूढ़े ब्राह्मण की सारी कहानी बताई कि यह सबको ठगता है। वह इन्सानों को बेचता है। विदेश में गौरी की मुलाक़ात अपने पति मंगरू से हुई। उसे लगा कि अब उसे जन्नत ही मिल गया। जब मंगरू ने वहाँ की सारी दास्तानें बताईं तो उसके पैरों तले ज़मीन खिसक गई । जब मंगरू से एजेंट ने कहा कि या तो गौरी को दो या शेफाली को दोनों में से एक मेरी है। उसने कहा कि एक मेरी बहन है, एक मेरी बीवी है । मंगरू एजेंट से रहम की भीख मांग रहा था । एजेंट ने अपनी कोठी पर बुला कर मंगरू की ज़बरदस्त कोड़े से पिटाई की। उसके कराहने की आवाज़ गौरी के कानों तक पहुंची । अपने पति को छुड़ाने के लिए एजेंट के पास गई। और उसने एजेंट को उसकी माँ का वास्ता देकर सही रास्ते पर लाया। एजेंट भी सुधर गया । इससे यह भी पता चलता है कि यदि खतरनाक से भी खतरनाक व्यक्ति को सही ढंग से सुधारा जाये तो वह सुधर जाता है। फिर एजेंट ने मंगरू का इलाज करवाया। परंतु मंगरू तो गौरी को गलत समझ रहा था। वह गौरी का वरन नहीं कर रहा था। 

परंतु अंत में पति से दुत्कार के बाद सम्मान पूर्वक स्वतंत्र जीवन जीने की मांग गौरी ने एजेंट से की जिसे उसने मान लिया। गौरी और शेफाली ने जिस प्रकार विपरीत परिस्थितियों में अपने सम्मान की रक्षा की उसी तरह से हर नारी को करना चाहिए , घबड़ाना नहीं चाहिए। 

 कहानी  खत्म होने पर हमारी दादी कहती थीं-"  जइसन उनकर दिन लौटल वईसन सबकर दिन लौटे ।"

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