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Friday, 4 December 2020

धरती हमारी न्यारी ------ पूनम माथुर


उपकार फिल्म का गाना तो आप लोगों ने सुना  ही होगा ‘ मेरे देश की धरती सोना उगले ....................... ‘

धरती की महिमा का क्या उल्लेख करें , सर्व विदित है । वेद का एक श्लोक है :

वायु बहार विमल वसुधा पर  रश्मि चमकावे

अन्न और जल रोग निवारक भू  – माता से पावे।

धरती की कृपया हम सब पर बनी रहे तो धरती वासियों को भी धरती के लिए अपना योगदान देना पड़ेगा। कहीं धरती माता की छाती को चीर कर जल निकाल लेते हैं और कहीं कारखाना बना कर बंजर कर देते हैं। जल- जंगल- जमीन को सुरक्षित रखने के लिए आज हम सभी पृथिवी वासियों का कर्तव्य है कि धरती पर प्रदूषण न फैलाएं। न्यूटन का यह नियम है कि हर क्रिया की प्रतिक्रिया होती है अगर आप अच्छी क्रिया करिएगा तो आपको भी अच्छी प्रतिक्रिया मिलेगी। अतः आज ही से सावधान हो जाएँ और पृथिवी को सुरक्षित रखने का संकल्प लें।  संतुलित और संयमित जीवन जीने का संकल्प लेते हुए धरती को हरा – भरा रखें और सुख शांति सभी के आगे परोसें क्योंकि सभी को धरती पर जीने का हक है ।  

Sunday, 24 May 2020

यादें हमारी





बाबू जी को दुनिया छोड़े हुए 20 वर्ष हो गए। उनको हार्दिक नमन। अब तो मा और बाबू जी दोनों ही नहीं हैं ,  उनके बताए हुए रास्ते पर हम चलते रहें ।

Friday, 10 April 2020

10 अप्रैल -महात्मा हैनीमेन जयंती पर विशेष :

 

डॉ हैनीमेन का जन्म 10 अप्रैल सन 1755 ई .को जर्मन साम्राज्य के अंतर्गत सेकसनी प्रदेश के 'माइसेन 'नामक एक छोटे से गाँव मे हुआ था और 02 जूलाई सन 1843 ई .मे नवासी वर्ष की आयु मे उनका निधन हुआ। "कीर्तिर्यस्य स जीवति"= इस असार संसार को छोडने से पूर्व डॉ हैनीमेन 'चिकित्सा-विधान'मे एक अक्षय कीर्ति स्थापित कर गए। 

उपलब्ध जानकारी के अनुसार डॉ हैनीमेन जर्मनी के एक कीर्ति प्राप्त उच्च -पदवी धारी एलोपैथिक चिकित्सक थे। अनेकों बड़े-बड़े चिकित्सालयों मे बहुत से रोगियों का इलाज करते हुये उनके ध्यान मे यह बात आई कि अनुमान से रोग निर्वाचन (DIAGNOSIS) कर,और कितने ही बार अनुमान पर निर्भर रह कर दवा देने के कारण भयंकर हानियाँ होती हैं,यहाँ तक कि बहुत से रोगियों की मृत्यु तक हो जाया करती है। इन बातों से उन्हें बेहद वेदना हुई और अंततः उन्होने इस भ्रमपूर्ण चिकित्सा (एलोपैथी )द्वारा असत उपाय से धन-उपार्जन करने की लालसा ही त्याग दी एवं निश्चय किया कि अब वह पुस्तकों का अनुवाद करके अपना जीविकोपार्जन करेंगे। इसी क्रम मे एक दिन एक-'मेटिरिया मेडिका' का अनुवाद करते समय उन्होने देखा कि शरीर स्वस्थ रहने पर यदि सिनकोना की छाल सेवन की जाये तो 'कम्प-ज्वर'(जाड़ा-बुखार)पैदा हो जाता है और सिनकोना ही कम्प-ज्वर की प्रधान दवा है। यही बोद्ध डॉ हैनीमेन की नवीन चिकित्सा पद्धति के आविष्कार का मूल सूत्र हुआ। इसके बाद इसी सूत्र के अनुसार उन्होने अनेकों भेषज-द्रव्यों का स्वंय सेवन किया और उनसे जो -जो लक्षण पैदा हुये ,उनकी परीक्षा की । यदि किसी रोगी मे वे लक्षण दिखाई देते तो उसी भेषज-द्रव्य को देकर वह रोगी को 'रोग-मुक्त'भी करने लगे।


डॉ हैनीमेन अभी तक पहले की भांति एलोपैथिक अर्थात स्थूल मात्रा मे ही दवाओं का प्रयोग करते थे। परंतु उन्हे यह एहसास हुआ कि रोग,आरोग्य हो जाने पर भी कुछ दिन बाद रोगी मे दुबारा बहुत सारे अनेक लक्षण पैदा हो जाते हैं। जैसे किनाइन का सेवन करने पर ज्वर तो आरोग्य हो जाता है ,परंतु उसके बाद रोगी मे --रक्त हीनता,प्लीहा,यकृत,पिलई,शोथ (सूजन ),धीमा बुखार आदि अनेक नए-नए उपसर्ग पैदा होकर रोगी को एकदम जर्जर बना डालते हैं। बस उसी एहसास के बाद से उन्होने दवा की मात्रा घटानी आरम्भ कर दी। इससे उन्हें यह मालूम हुआ कि,परिमाण या मात्रा भले ही कम हो ,आरोग्य दायिनी शक्ति पहले की तरह ही मौजूद रहती है और दुष्परिणाम भी पैदा नहीं होते।

अन्त मे उन्होने दवा का परिमाण क्रमशः भग्नांश के आकार मे प्रयोग करना आरम्भ किया और वे भग्नांश दवाएं फ्रेंच स्प्रिट,दूध की चीनी (शुगर आफ मिल्क)और चुयाया हुआ पानी (डिस्टिल्ड वाटर)इत्यादि औषद्ध-गुण विहीन चीजों के साथ मिला कर प्रयोग करना शुरू किया। यही नियम इस समय -'सदृश्य-विधान' कहलाता है जिसे डॉ हैनीमेन के नाम पर 'होम्योपैथिक-चिकित्सा' कहा जाता है। 

होम्योपैथी का 'सदृश्य -विधान' हमारे देश के 'आयुर्वेद' के सदृश्य सिद्धान्त से मेल खाता है। होम्योपैथी दवाएं होती भी हैं बहुत कम कीमत की। पहले होम्योपैथी चिकितक कोई कनसलटेशन चार्ज या परामर्श शुल्क भी नहीं लेते थे। एलोपैथी चिकित्सकों की भांति होम्योपैथी चिकित्सक कोई गरूर या घमंड भी नहीं रखते थे। अधिकांश होम्योपैथी चिकित्सकों के पीछे यह स्लोगन लिखा होता था-I TREATS,HE CURES.तब यह चिकित्सा पद्धति जनता की प्रिय चिकित्सा पद्धति थी।

गत 4-5 वर्षों से एलोपैथी चिकित्सा क्षेत्र मे फैले कमीशन वाद ने इस जन-चिकत्सा पद्धति (होम्योपैथी )को भी अपनी गिरफ्त मे ले लिया है। अब डॉ को कमीशन की रकमे बढ़ा दी गई हैं और विदेश दौरे के पेकेज जैसे एलोपैथी डॉ को मिलते थे वैसे ही मिलने लगे हैं। बाजार वाद के प्रभाव ने इस चिकित्सा पद्धति को भी मंहगा बनाना प्रारम्भ कर दिया है। यह महात्मा हैनीमेन की सोच के विपरीत है। आज जब हम डॉ हैनीमेन की 266  वी जयंती मना रहे हैं तो एक बार इस बात का भी मनन करें कि जिस एलोपैथी चिकित्सा की बुराइयों से त्रस्त होकर डॉ हैनीमेन ने नई जनोपयोगी चिकित्सा पद्धति का सृजन किया था उसे पुनः एलोपैथी की बुराइयों मे फँसने से बचाया जाये। वही डॉ हैनीमेन को सच्ची श्रद्धांजली होगी। 

Friday, 27 December 2019

"क्रिसमस त्यौहार" ------ रजनीश श्रीवास्तव




Rajanish Kumar Srivastava is with Priti Srivastava and 12 others.
December 25 at 8:21 AM · 
पवित्र बाइबिल के वचनों के अनुसार मानव सभ्यता के उत्थान,मानव को पापों से मुक्ति दिलाने,संसार में प्रेम,दया और क्षमा का संचार करने और अपने पापों का प्रायश्चित करते हुए अपने गुनाहगारों को माफ करने की शिक्षा देकर विश्व में शांति की स्थापना करने के लिए परमपिता परमेश्वर ने अपने इकलौते पुत्र "येसु खीस्त" को मनुष्य रूप में इस संसार में भेजा।परमपिता का यह दिव्य पुत्र माता मरियम और उनके पति सेंट जोसेफ के संरक्षण में पला।शांति के मसीहा येसु ने अपने जन्म के लिए कठिनतम परिस्थितियों का चुनाव किया और इजरायल देश के बैतलहम में किसी महल के बजाए एक गोशाले/अस्तबल में जन्म लिया।वे एक पशुओं के छप्पर में एक प्राकृतिक खोह(चरणी) में एक कपड़े में लिपटे हुए माता मरियम और पिता जोसेफ को प्राप्त हुए।तब लोगों ने जान लिया कि मानव जाति के मुक्तिदाता "ईसा मसीह"(येसु खीस्त/जीजस क्राइस्ट) का अवतरण हो चुका है।
जब चार ईसा पूर्व ऑगस्त सीज़र रोम के बादशाह थे और महान हेरोद जूडिया का राजा था तब डेविड की नगरी कहे जाने वाले बेथलहम में येसु खीस्त(ईसा मसीह) का जन्म हुआ।क्रिसमस प्रभु येसु खीस्त(ईसा मसीह) के जन्म का पर्व है।इस पर्व को क्रिसमस(Christ-Mass) इस लिए कहा जाता है क्योंकि क्राइस्ट से तात्पर्य जीजस(येसु/ईसा मसीह) से और Mass से तात्पर्य जीजस (येसु खीस्त )(ईसा मसीह) के जन्मोत्सव को मनाने की चर्च सेवा से होता है।अतः संसार जीजस क्राइस्ट(येसु खीस्त/ईसा मसीह) के जन्मोत्सव क्रिसमस को प्रति वर्ष 25 दिसम्बर को मनाता है।एक धार्मिक परम्परा के अनुसार चुँकि 25 मार्च के दिन मानव जाति के मुक्तिदाता के जन्म की भविष्यवाणी हुई थी । अतः इस भविष्यवाणी के ठीक नौ महीने बाद की तिथि 25 दिसम्बर को प्रभु येसु(ईसा मसीह/येसु) के जन्म की तिथि के रूप में मान्यता मिली।
ऐतिहासिक अभिलेखीय साक्ष्य के अनुसार पहली बार 25 दिसम्बर 336 ई० को रोमन सम्राट कॉन्सटेन्टाइन(प्रथम क्रिश्चियन रोमन सम्राट) ने "क्रिसमस त्यौहार" को मनाने की शुरूआत की और कुछ वर्ष बाद पोप जूलियस प्रथम ने इस पर्व को धार्मिक मान्यता प्रदान कर दी।तबसे प्रति वर्ष 25 दिसम्बर को जीजस क्राइस्ट (येसु खीस्त)( ईसा मसीह) का जन्मोत्सव मनाया जाता है।हर्षोल्लास के बीच यह पवित्र पर्व सारी मानवता को विश्व शान्ति,भाईचारे और प्यार का पैगाम देता है।प्रभु येसु समूचे विश्व में शांति और सौहार्द कायम रखें।इस अभिलाषा के साथ सबको पावन पर्व क्रिसमस की अनन्त शुभकामनाएँ।

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Wednesday, 2 October 2019

हाजिरजवाब महात्मा गांधी

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Friday, 27 September 2019

बच्चों की बातें

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Monday, 10 June 2019

मुंशी प्रेमचंद की व्यंग्य कहानी : बकरी खरीद लो

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Sunday, 21 April 2019

वोट की बारी है





भारत धरती हमारी है 
लोकतन्त्र हमारा प्रहरी है 
मानव जीवन का संतरी है 
हर दल का मेनिफेस्टो जारी है 
हर पाँच साल के बाद जनता की बारी है 
अप्रिय और नोट की महामारी है 
जनता पागल बनी हुई हारी है 
वोट न देने और हमारे अधिकार और कर्तव्य की चोरी है 
यह तो अजब तरह की सीनाजोरी है 
यह कैसी फैली बीमारी है 
भेदभाव को मिटाना जरूरी है 
यही सबसे अच्छी बारी है 
कौन है जो सत्य - अहिंसा का पुजारी है 
अबकी वोट की सवारी है 
बटन दबाने की तैयारी है ।