©इस ब्लॉग की किसी भी पोस्ट को अथवा उसके अंश को किसी भी रूप मे कहीं भी प्रकाशित करने से पहले अनुमति/सहमति अवश्य प्राप्त कर लें। ©

Monday 17 October 2016

स्मिता पाटिल : संवेदनशील और भावप्रवण अदाकारा --- ध्रुव गुप्त




Dhruv Gupt

सुनाई देती है जिसकी धड़कन, तुम्हारा दिल या हमारा दिल है !
आधुनिक भारतीय सिनेमा की महानतम अभिनेत्रियों में एक स्व. स्मिता पाटिल ने हिंदी और मराठी सिनेमा में संवेदनशील और यथार्थवादी अभिनय के जो आयाम जोड़े, उसकी मिसाल विश्व सिनेमा में भी कम ही मिलती है। वह उन अभिनेत्रियों में थीं जिन्हें देह-संचालन से नहीं, अपने चेहरे की भंगिमाओं और आंखों से अभिनय की कला आती थी। रंगमंच से सिनेमा में आई स्मिता ने 1975 में श्याम बेनेगल की फिल्मों - 'चरणदास चोर' और 'निशान्त' से अपनी अभिनय-यात्रा आरम्भ की थी ! उनके संवेदनशील और भावप्रवण अदायगी ने उन्हें उस दौर की दूसरी महान अभिनेत्री शबाना आज़मी के साथ तत्कालीन समांतर और कला सिनेमा का अनिवार्य हिस्सा बना दिया। यथार्थवादी सिनेमा के बाद व्यावसायिक फिल्मों में भी दर्शकों ने उन्हें हाथोहाथ लिया ! अपने मात्र एक दशक लंबे फिल्म कैरियर में स्मिता ने अस्सी से ज्यादा हिंदी और मराठी फिल्मों में अपने अभिनय के झंडे गाड़े, जिनमें कुछ चर्चित हिंदी फ़िल्में थीं - निशान्त, मंथन, भूमिका, गमन, आक्रोश, अल्बर्ट पिंटो को गुस्सा क्यों आता है, चक्र, सदगति, बाज़ार, अर्थ, मंडी, मिर्च मसाला, अर्धसत्य, भवनी भवाई, शक्ति, नमक हलाल, गुलामी, भींगी पलकें, सितम, दर्द का रिश्ता, चटपटी, आज की आवाज़, अनोखा रिश्ता और ठिकाना। फिल्म 'भूमिका' और 'चक्र' में श्रेष्ठ अभिनय के लिए दो राष्ट्रीय पुरस्कारों के अलावा उन्हें दूसरी फिल्मों के लिए चार फिल्मफेयर पुरस्कार भी मिले थे। अभिनेता राज बब्बर से प्रेम और शादी उनके जीवन की त्रासदी साबित हुई ! शादी के कुछ ही वर्षों बाद 1986 में उनकी मृत्यु हो गई।
स्मिता पाटिल के जन्मदिन (17 अक्टूबर) पर भावभीनी श्रधांजलि !

*********************************************************************************************************************************
Smita Patil (17 October 1955 -- 13 December 1986) was an Indian actress of film, television and theatre.
was an Indian actress of film, television and theatre. Regarded among the finest stage and film actresses of her times, Patil appeared in over 80 Hindi and Marathi films in a career that spanned just over a decade. During her career, she received two National Film Awards and a Filmfare Award. She was the recipient of the Padma Shri, India's fourth-highest civilian honour in 1985. Patil graduated from the Film and Television Institute of India in Pune and made her film debut with Shyam Benegal's Charandas Chor (1975). She became one of the leading actresses of parallel cinema, a New Wave movement in India cinema, though she also appeared in several mainstream movies throughout her career. Her performances were often acclaimed, and her most notable roles include Manthan (1977), Bhumika (1977), Aakrosh (1980), Chakra (1981), Chidambaram (1985) and Mirch Masala (1985). Patil was married to actor Raj Babbar. She died on 13 December 1986 at the age of 31 due to childbirth complications. Over ten of her films were released after her death. Her son Prateik Babbar is a film actor who made his debut in 2008.

जंग लाशों की फैक्टरी है -------- जुआन मैनुएल सांतोस

बात सिर्फ चाहने की है, जंग तो बंद ही हो जाये !


फेसबुक कमेंट्स ::
17-10-2016 

Monday 10 October 2016

किसी परिचय की मोहताज नहीं हैं 'रेखा'


सुप्रसिद्ध फिल्म अभिनेत्री 'रेखा'
हिंदुस्तान,आगरा,03 जून 2007 मे प्रकाशित 'रेखा'की जन्म कुंडली 

सुप्रसिद्ध फिल्म अभिनेत्री 'रेखा' किसी परिचय की मोहताज नहीं हैं। उनके पिता सुप्रसिद्ध फिल्म अभिनेता 'जेमिनी' गनेशन ने उनकी माता सुप्रसिद्ध फिल्म अभिनेत्री पुष्पावल्ली से विधिवत विवाह नहीं किया था। उन्हें पिता का सुख प्राप्त नहीं हुआ और न ही पिता का धन ही प्राप्त हुआ। कुल-खानदान से भी लाभ नहीं मिला और समाज से भी आलोचनाओ का सामना करना पड़ा। इतनी जानकारी पत्र-पत्रिकाओं मे छ्पी है। किन्तु ऐसा क्यों हुआ हम ज्योतिष के आधार पर देखेंगे।

धनु लग्न और कुम्भ राशि मे जन्मी रेखा घोर 'मंगली'हैं और उनके द्वादश भाव मे 'शुक्र'ग्रह स्थित है जिसने उन्हे परिवार व समाज से लाभ नहीं प्राप्त होने दिया है। उनके दशम भाव मे जो पिता,कर्म व राज्य का हेतु होता है -कन्या राशि का सूर्य है। इस भाव मे सूर्य की स्थिति उनकी माता और पिता के विचारों मे असमानता का द्योतक है। इसी सूर्य ने उनकी माता को उनके पिता से अलग रखा और इसी सूर्य ने उन्हें खुद को पिता,परिवार व कुल से लाभ नहीं मिलने दिया। तृतीय भाव मे चंद्र ने बैठ कर कुटुंब सुख को और कम किया तथा पति भाव-सप्तम मे बैठ कर 'केतू' ने पति-सुख से वंचित रखा। द्वादश भाव मे 'शुक्र' मंगल की वृश्चिक राशि मे स्थित है जो जीवन भर 'उपद्रव'कराने वाला है और इसी ने उन्हें व्यसनी भी बनाया।

लग्न मे बैठे 'मंगल' की दृष्टि ने वैवाहिक सुख तो नहीं मिलने दिया किन्तु कला-ज्ञान और धन की प्रचुरता उसी ने उपलब्ध कारवाई। लग्न मे ही बैठे 'राहू' ने उन्हें शारीरिक 'स्थूलता' प्रदान की थी जिसे उन्होने अपने प्रयासों से नियंत्रित कर लिया है। यही 'राहू'  उन्हें छोटी परंतु पैनी आँखें ,संकरा तथा अंदर खिचा हुआ सीना,चालाकी तथा ऐय्याशी भी प्रदान कर रहा है।

तृतीय भाव मे बैठा चंद्र 'रेखा' को अल्पभाषी,व म्रदुल व्यवहार वाला भी बना रहा है जिसके प्रभाव से वह कम से कम बोल कर अधिक से अधिक कार्य करके दिखा सकी हैं। अष्टम भाव मे उच्च का ब्रहस्पति उन्हें दीर्घायु भी प्रदान कर रहा है तथा धनवान व स्वस्थ भी रख रहा है।

राज योग 

दशम भाव मे कन्या राशि का सूर्य 'रेखा' को 'राज्य-भंग ' योग भी प्रदान कर रहा है। इसका अर्थ हुआ कि पहले उन्हें 'राज्य-सुख 'और 'राज्य से धन'प्राप्ति होगी फिर उसके बाद ही वह भंग हो सकता है। लग्न मे बैठा 'राहू' भी उन्हें राजनीति-निपुण बना रहा है। एकादश भाव मे बैठा उच्च का 'शनि' उन्हें 'कुशल प्रशासक' बनने की क्षमता प्रदान कर रहा है। नवम  भाव मे 'सिंह' राशि का होना जीवन के उत्तरार्द्ध मे सफलता का द्योतक है। अभी वह कुंडली के दशम भाव मे 58 वे वर्ष मे चल रही हैं और आगामी जन्मदिन के बाद एकादश भाव मे 59 वे वर्ष मे प्रवेश करेंगी। समय उनके लिए अनुकूल चल रहा है।

राज्येश'बुध' की महादशा मे 12 अगस्त 2010 से 23 फरवरी 2017 तक की अंतर्दशाये भाग्योदय कारक,अनुकूल सुखदायक और उन्नति प्रदान करने वाली हैं। 24 फरवरी 2017 से 29 जून 2017 तक बुध मे 'सूर्य' की अंतर्दशा रहेगी जो लाभदायक राज्योन्नति प्रदान करने वाली होगी।

अभी तक रेखा के किसी भी राजनीतिक रुझान की कोई जानकारी किसी भी माध्यम से प्रकाश मे नहीं आई है ,किन्तु उनकी कुंडली मे प्रबल राज्य-योग हैं। जब ग्रहों के दूसरे परिणाम चरितार्थ हुये हैं तो निश्चित रूप से इस राज्य-योग का भी लाभ मिलना ही चाहिए। हम 'रेखा' के राजनीतिक रूप से भी सफल होने की मंगलकामना करते हैं।
---------------------------------------------------------------------------------

हिंदुस्तान,लखनऊ के 27-04-2012 अंक मे प्रकाशित सूचना-



शुभ समय ने अपना असर दिखाया और 'रेखा' जी को राज्य सभा मे पहुंचाया। हम उनकी सम्पूर्ण सफलता की कामना करते है और उम्मीद करते हैं कि वह 'तामिलनाडू' की मुख्य मंत्री पद को भी ज़रूर सुशोभित करेंगी।
27 अप्रैल,2012 
http://krantiswar.blogspot.in/2012/04/blog-post_19.html ---------------------------------------------------------------------------------






Saturday 8 October 2016

पर्यावरण के अनुकूल गाँव


डबल क्लिक करके साफ पढ़ सकते हैं : 

बेकार की चीजों से कितना सुंदर मकान बना हुआ है। खाली बोतलों की दीवारों से मकान बना कर पूरा का पूरा गाँव आबाद किया गया है। हर चीज़ का इसी तरह उपयोग किया जा सकता है। 

Friday 7 October 2016

दूरी ,मस्तिष्क, चिराग, मकान, दीपक, क्रोध, नीम

इन बातों पर ध्यान दें और सुखी रहें : 
कहने को तो ये छोटी  -  बातें हैं पर इन पर अमल किया जाये तो दुनिया में कहीं लड़ाई का नाम ही न हो। 







Sunday 2 October 2016

गांधी जी और शास्त्री जी : एक परिचय ------ पूनम



मोहनदास करमचंद गांधी जब महात्मा गांधी बने तो जन-जन के प्रिय नायक भी थे। आज भी यही कहा जाता है कि भारत को स्वतन्त्रता महात्मा गांधी के ही मुख्य प्रयासों से मिली है। लेकिन डा सम्पूर्णानन्द जो यू पी के मुख्यमंत्री और राजस्थान के राज्यपाल भी रहे और संविधान सभा के सदस्य भी रहे बहौत ही निराशा के साथ साप्ताहिक हिंदुस्तान मे 1967 मे लिखे अपने एक लेख मे कहते हैं-"हमारे देश मे भी गांधी नाम का एक पागल पैदा हुआ था,संविधान के पन्नों पर उसके नाम का एक भी छींटा देखने को नहीं मिलेगा। "

 सम्पूर्णानन्द जी ने अपने अनुभवों के आधार पर कोई गलत निष्कर्ष नहीं निकाला है। आजादी के तुरंत बाद गांधी जी की उपेक्षा शुरू हो गई थी अंत तक उन्हें नेहरू-पटेल के झगड़ों मे मध्यस्थता करनी पड़ती थी। परंपरागत रूप से  प्रतिवर्ष गांधी जयंती को एक राष्ट्रीय पर्व के रूप मे मनाया जाता है। गांधी जी के नाम पर गोष्ठियाँ करके खाना-पूर्ती कर ली जाती है। कुछ समय पूर्व तक खादी  के वस्त्रों पर गांधी आश्रम से छूट मिलती थी। यह कह कर इतिश्री कर ली जाती है कि गांधी जी के विचार आज भी प्रासगिक हैं जबकि कहने वाले भी उन पर अमल नहीं करना चाहते।


गांधी जी के नाम का उपयोग एक फैशन के रूप मे किया जाता है। 1977 मे आपात काल के बाद छत्तीस गढ़ मे पवन दीवान को छत्तीस गढ़ का गांधी कह कर प्रचारित किया गया था और अभी-अभी कारपोरेट घरानों के रक्षा कवच अन्ना हज़ारे को दूसरा गांधी कहा गया है। वाराणासी के एक चिंतक महोदय ने एन डी ए शासन मे हुये रु 75000/-करोड़ के यू टी आई घोटाले के समय रहे यू टी आई चेयरमैन डा सुब्रहमनियम स्वामी की तुलना गांधी जी से की है।

गांधी और गांधीवाद का बेहूदा मज़ाक उड़ाया जा रहा है। 1980 मे 'गांधीवादी समाजवाद' का शिगूफ़ा उन लोगों ने छोड़ा था जिन्हें गांधी जी की हत्या के लिए उत्तरदाई माना जाता रहा था। यदि 1970 के लगभग लार्ड रिचर्ड  एटन बरो ने'गांधी' नामक फिल्म न बनाई होती तो आज की पीढ़ी शायद गांधी जी के नाम से भी अपरिचित रह जाती।

गांधी जी का आग्रह सर्वाधिक 'सत्य' और 'अहिंसा' पर था और इन्हीं दोनों को उन्होने अपने संघर्ष का हथियार बनाया था। 'अहिंसा'-मनसा -वाचा-कर्मणा होनी चाहिए तभी वह अहिंसा है। लेकिन आज गांधीवादी कहे गए अन्ना जी के इंटरनेटी भक्त 'तुम्हें गोली से मार देंगे','वाहियात', 'बकवास ' आदि अनेकों अपशब्दों का प्रयोग खुल्लम-खुल्ला कर रहे हैं। यही है आज का गांधीवाद। 

लाल बहादुर शास्त्री 

एक अत्यंत गरीब परिवार मे जन्मे और अभावों मे जिये लाल बहादुर शास्त्री सच्चे गांधीवादी थे । गांधी जयंती पर ही उनकी जयंती भी है। छल -छद्म से दूर रह कर स्वाधीनता संघर्ष मे भाग लेने के बाद शास्त्री जी ने ईमानदारी से राजनीति की है। यू पी के गृह मंत्री रहे हो या केंद्र के रेल मंत्री सभी जगह निष्पक्षता व ईमानदारी के लिए शास्त्री जी का नाम बड़े आदर के साथ लिया जाता है। इसीलिए अपनी गंभीर बीमारी के समय नेहरू जी ने शास्त्री जी को निर्विभागीय मंत्री बना कर एक प्रकार से कार्यवाहक प्रधानमंत्री ही बना दिया था। नेहरू जी की इच्छा के अनुरूप ही शास्त्री जी को उनके बाद प्रधान मंत्री बनाया गया। दृढ़ निश्चय के धनी शास्त्री जी ने अमेरिकी  PL-480 की बैसाखी को ठुकरा दिया और जनता से सप्ताह मे एक दिन उपवास रखने की अपील की जिसका जनता ने सहर्ष पालन भी किया। अमेरिकी कठपुतली पाकिस्तान को 1965 के युद्ध मे करारी शिकस्त शास्त्री जी की सूझ-बूझ और कठोर निर्णय से ही दी जा सकी।

आज शास्त्री जी का नाम यदा-कदा किन्हीं विशेष अवसरों पर ही लिया जाता है। गांधी जी का नामोच्चारण तो राजनीतिक फायदे के लिए हो जाता है परंतु शास्त्री जी का नाम लेकर कोई भी ईमानदारी के फेर मे फंसना नहीं चाहता। नेहरू जी के सलाहकार के रूप मे शास्त्री जी ने जिन नीतियों का प्रयोग किया उनसे यू पी मे कम्यूनिस्टों का प्रभाव क्षीण हो गया और कालांतर मे सांप्रदायिक शक्तियों का उभार होता गया। खुद गरीब होते हुये भी गरीबों के लिए संघर्ष करने वालों को ठेस पहुंचाना शास्त्री जी का ऐसा कृत्य रहा जिसके दुष्परिणाम आज गरीब वीभत्स रूप मे भुगत रहे हैं।

गांधी जी ट्रस्टीशिप के हामी थे और शास्त्री जी सच्चे गांधीवादी परंतु आज देश मे शिक्षा समेत हर चीज का बाजारीकरण हो गया है। बाजार ही राजनीति,धर्म और समाज को नियंत्रित कर रहा है। गांधी-शास्त्री जयंती मनाना एक रस्म-अदायगी ही है। भविष्य मे कुछ सुधार हो सके इसकी प्रेरणा प्राप्त करने हेतु गांधी-शास्त्री का व्यक्तित्व और कृतित्व अविस्मरणीय रहेगा।

गांधी जी ने आम आदमी को केन्द्रित किया था एक आर्यसमाजी उपदेशक महोदय ने अपने प्रवचन मे बताया  था की जब गांधी जी चंपारण मे नीलहे गोरों के अत्याचार के विरुद्ध संघर्ष करने गए थे तो एक गरीब आदिवासी परिवार ने उन्हें बुलाया था। गांधी जी उस परिवार के लोगों से मिलने गए तब उन्हें उनकी वास्तविक गरीबी का र्हसास हुआ,परिवार की महिला ने गांधी जी से कहा की वह अपनी बेटी को भी भेजेगी अतः वह अंदर गई और वही धोती पहन कर उसकी बेटी गांधी जी से मिलने आई। गांधी जी को समझ आ गया कि वहाँ माँ -बेटी के मध्य केवल एक ही धोती है। उसी क्षण उन्होने आधी धोती पहनने का फैसला किया और मृत्यु पर्यंत ऐसा ही करते रहे। ब्रिटिश सरकार उन्हें हाफ नेक्ड फकीर कहती रही परंतु उन्ही से वार्ता भी करनी पड़ी। उन्ही गांधी जी के देश मे आदिवासियों से क्या सलूक हुआ,एक नजर डालें हिंदुस्तान,लखनऊ,01 अक्तूबर 2011 के इस सम्पाद्कीय पर।हम प्रतिवर्ष गांधी जयंती तो मनाते हैं परंतु गांधी जी से प्रेरणा नहीं लेते जिसकी नितांत आवश्यकता है।

1-10-11 का समपादकीय-
साभार :

*********************************************************************************


यद्यपि  महात्मा गांधी ने सरकार में कोई पद ग्रहण नहीं किया;परन्तु उन्हें राष्ट्रपिता की मानद उपाधि से विभूषित किया गया है.गांधी जी क़े जन्मांग में लग्न में बुध बैठा है और सप्तम भाव में बैठ कर गुरु पूर्ण १८० अंश से उसे देख रहा है जिस कारण रूद्र योग घटित हुआ.रूद्र योग एक राजयोग है और उसी ने उन्हें राष्ट्रपिता का खिताब दिलवाया है.गांधी जी का जन्म तुला लग्न में हुआ था जिस कारण उनके भीतर न्याय ,दया,क्षमा,शांति एवं अनुशासन क़े गुणों का विकास हुआ.पराक्रम भाव में धनु राशि ने उन्हें वीर व साहसी बनाया जिस कारण वह ब्रिटिश सरकार से अहिंसा क़े बल पर टक्कर ले सके.


गांधी जी क़े सुख भाव में उपस्थित होकर केतु ने उन्हें आश्चर्यजनक ख्याति दिलाई परन्तु इसी क़े कारण उनके जीवन क़े अंतिम वर्ष कष्टदायक व असफल रहे.(राजेन्द्र बाबू को भी ऐसे ही केतु क़े कारण अंतिम रूप से नेहरु जी से मतभेदों का सामना करना पड़ा था.)एक ओर तो गांधी जी देश का विभाजन न रुकवा सके और दूसरी ओर साम्प्रदायिक सौहार्द्र  भी स्थापित न हो सका और अन्ततः उन्हें अंध -धर्मान्धता का शिकार होना पड़ा.

गांधी जी क़े विद्या भाव में कुम्भ राशि होने क़े कारण ही वह कष्ट सहने में माहिर बने ,दूसरों की भलाई और परोपकार क़े कार्यों में लगे रहे और उन्होंने कभी भी व्यर्थ असत्य भाषण नहीं किया.गांधी जी क़े अस्त्र सत्य और शास्त्र अहिंसा थे.गांधी जी क़े सप्तमस्थ  गुरु ने ही उन्हें विद्वान व राजा क़े तुल्य राष्ट्रपिता की पदवी दिलाई.

गांधी जी क़े भाग्य भाव में मिथुन राशि है जिस कारण उनका स्वभाव सौम्य,सरस व सात्विक बना रहा.धार्मिक सहिष्णुता इसी कारण उनमें कूट -कूट कर भरी हुई थी.उन्होंने सड़ी -गली रूढ़ियों व पाखण्ड का विरोध किया अपने सदगुणों और उच्च विचारों क़े कारण अहिंसक क्रांति से देश को आज़ाद करने का लक्ष्य उन्हें इसी क़े कारण प्राप्त हो सका.गांधी जी क़े कर्म भाव में कर्क राशि की उपस्थिति ने ही उनकी आस्था श्रम,न्याय व धर्म में टिकाये रखी और इसी कारण राजनीति में रह कर भी वह पाप-कर्म से दूर रह कर गरीबों की सेवा क़े कार्य कर सके.गांधी जी का सर्वाधिक जोर दरिद्र -नारायण की सेवा पर रहता था और उसका कारण यही योग है.गांधी जी क़े एकादश भाव में सिंह राशि एवं चन्द्र ग्रह की स्थिति ने उन्हें हठवादी,सादगी पसन्द ,सूझ -बूझ व नेतृत्व की क्षमता सम्पन्न तथा विचारवान बनाया.इसी योग क़े कारण उनके विचार मौलिक एवं अछूते थे जो गांधीवाद क़े नाम से जाने जाते हैं.अस्तु गांधी जी को साधारण इन्सान से उठ कर महात्मा बनाने में उनके जन्म-कालीन ग्रह व नक्षत्रों का ही योग है.

साभार ::
http://krantiswar.blogspot.in/2012/10/blog-post.html

(इस ब्लॉग पर प्रस्तुत आलेख लोगों की सहमति -असहमति पर निर्भर नहीं हैं -यहाँ ढोंग -पाखण्ड का प्रबल विरोध और उनका यथा शीघ्र उन्मूलन करने की अपेक्षा की जाती है)

गांधी जी , फुटबाल और मुस्कराहट




Saturday 1 October 2016

माँ के उज्ज्वल प्रेम का सौदा नहीं होता

माता की शक्ति के आगे हम तो कुछ नहीं हैं। हम उनकी संतान मात्र हैं।