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Friday 11 November 2016

जीने की राह

किसी भी परिस्थिति में घबराना नहीं चाहिए। हमेशा नए सिरे से शुरुआत करनी चाहिए। सड़क है तो पत्थर भी है , इससे घबराना क्या?


Tuesday 1 November 2016

दूरी -------- मंजुल भारद्वाज

Manjul Bhardwaj
 01-11-2016 
दूरी
-मंजुल भारद्वाज

दूरी क़दमों में होती है या समझ में 
मीलों में होती है या मूल्यों में 
सदियों में होती है या दर्शन में 
युगों में होती है या विचारों में 
दूरी शारीरिक होती है या आत्मिक 
दूरी पृथ्वी और आसमां की है 
या ब्रह्मांड के अनंत की 
एक चिरकाल प्रश्न.... 
एक चिरकाल चिंतन ....
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Monday 17 October 2016

स्मिता पाटिल : संवेदनशील और भावप्रवण अदाकारा --- ध्रुव गुप्त




Dhruv Gupt

सुनाई देती है जिसकी धड़कन, तुम्हारा दिल या हमारा दिल है !
आधुनिक भारतीय सिनेमा की महानतम अभिनेत्रियों में एक स्व. स्मिता पाटिल ने हिंदी और मराठी सिनेमा में संवेदनशील और यथार्थवादी अभिनय के जो आयाम जोड़े, उसकी मिसाल विश्व सिनेमा में भी कम ही मिलती है। वह उन अभिनेत्रियों में थीं जिन्हें देह-संचालन से नहीं, अपने चेहरे की भंगिमाओं और आंखों से अभिनय की कला आती थी। रंगमंच से सिनेमा में आई स्मिता ने 1975 में श्याम बेनेगल की फिल्मों - 'चरणदास चोर' और 'निशान्त' से अपनी अभिनय-यात्रा आरम्भ की थी ! उनके संवेदनशील और भावप्रवण अदायगी ने उन्हें उस दौर की दूसरी महान अभिनेत्री शबाना आज़मी के साथ तत्कालीन समांतर और कला सिनेमा का अनिवार्य हिस्सा बना दिया। यथार्थवादी सिनेमा के बाद व्यावसायिक फिल्मों में भी दर्शकों ने उन्हें हाथोहाथ लिया ! अपने मात्र एक दशक लंबे फिल्म कैरियर में स्मिता ने अस्सी से ज्यादा हिंदी और मराठी फिल्मों में अपने अभिनय के झंडे गाड़े, जिनमें कुछ चर्चित हिंदी फ़िल्में थीं - निशान्त, मंथन, भूमिका, गमन, आक्रोश, अल्बर्ट पिंटो को गुस्सा क्यों आता है, चक्र, सदगति, बाज़ार, अर्थ, मंडी, मिर्च मसाला, अर्धसत्य, भवनी भवाई, शक्ति, नमक हलाल, गुलामी, भींगी पलकें, सितम, दर्द का रिश्ता, चटपटी, आज की आवाज़, अनोखा रिश्ता और ठिकाना। फिल्म 'भूमिका' और 'चक्र' में श्रेष्ठ अभिनय के लिए दो राष्ट्रीय पुरस्कारों के अलावा उन्हें दूसरी फिल्मों के लिए चार फिल्मफेयर पुरस्कार भी मिले थे। अभिनेता राज बब्बर से प्रेम और शादी उनके जीवन की त्रासदी साबित हुई ! शादी के कुछ ही वर्षों बाद 1986 में उनकी मृत्यु हो गई।
स्मिता पाटिल के जन्मदिन (17 अक्टूबर) पर भावभीनी श्रधांजलि !

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Smita Patil (17 October 1955 -- 13 December 1986) was an Indian actress of film, television and theatre.
was an Indian actress of film, television and theatre. Regarded among the finest stage and film actresses of her times, Patil appeared in over 80 Hindi and Marathi films in a career that spanned just over a decade. During her career, she received two National Film Awards and a Filmfare Award. She was the recipient of the Padma Shri, India's fourth-highest civilian honour in 1985. Patil graduated from the Film and Television Institute of India in Pune and made her film debut with Shyam Benegal's Charandas Chor (1975). She became one of the leading actresses of parallel cinema, a New Wave movement in India cinema, though she also appeared in several mainstream movies throughout her career. Her performances were often acclaimed, and her most notable roles include Manthan (1977), Bhumika (1977), Aakrosh (1980), Chakra (1981), Chidambaram (1985) and Mirch Masala (1985). Patil was married to actor Raj Babbar. She died on 13 December 1986 at the age of 31 due to childbirth complications. Over ten of her films were released after her death. Her son Prateik Babbar is a film actor who made his debut in 2008.

जंग लाशों की फैक्टरी है -------- जुआन मैनुएल सांतोस

बात सिर्फ चाहने की है, जंग तो बंद ही हो जाये !


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17-10-2016 

Monday 10 October 2016

किसी परिचय की मोहताज नहीं हैं 'रेखा'


सुप्रसिद्ध फिल्म अभिनेत्री 'रेखा'
हिंदुस्तान,आगरा,03 जून 2007 मे प्रकाशित 'रेखा'की जन्म कुंडली 

सुप्रसिद्ध फिल्म अभिनेत्री 'रेखा' किसी परिचय की मोहताज नहीं हैं। उनके पिता सुप्रसिद्ध फिल्म अभिनेता 'जेमिनी' गनेशन ने उनकी माता सुप्रसिद्ध फिल्म अभिनेत्री पुष्पावल्ली से विधिवत विवाह नहीं किया था। उन्हें पिता का सुख प्राप्त नहीं हुआ और न ही पिता का धन ही प्राप्त हुआ। कुल-खानदान से भी लाभ नहीं मिला और समाज से भी आलोचनाओ का सामना करना पड़ा। इतनी जानकारी पत्र-पत्रिकाओं मे छ्पी है। किन्तु ऐसा क्यों हुआ हम ज्योतिष के आधार पर देखेंगे।

धनु लग्न और कुम्भ राशि मे जन्मी रेखा घोर 'मंगली'हैं और उनके द्वादश भाव मे 'शुक्र'ग्रह स्थित है जिसने उन्हे परिवार व समाज से लाभ नहीं प्राप्त होने दिया है। उनके दशम भाव मे जो पिता,कर्म व राज्य का हेतु होता है -कन्या राशि का सूर्य है। इस भाव मे सूर्य की स्थिति उनकी माता और पिता के विचारों मे असमानता का द्योतक है। इसी सूर्य ने उनकी माता को उनके पिता से अलग रखा और इसी सूर्य ने उन्हें खुद को पिता,परिवार व कुल से लाभ नहीं मिलने दिया। तृतीय भाव मे चंद्र ने बैठ कर कुटुंब सुख को और कम किया तथा पति भाव-सप्तम मे बैठ कर 'केतू' ने पति-सुख से वंचित रखा। द्वादश भाव मे 'शुक्र' मंगल की वृश्चिक राशि मे स्थित है जो जीवन भर 'उपद्रव'कराने वाला है और इसी ने उन्हें व्यसनी भी बनाया।

लग्न मे बैठे 'मंगल' की दृष्टि ने वैवाहिक सुख तो नहीं मिलने दिया किन्तु कला-ज्ञान और धन की प्रचुरता उसी ने उपलब्ध कारवाई। लग्न मे ही बैठे 'राहू' ने उन्हें शारीरिक 'स्थूलता' प्रदान की थी जिसे उन्होने अपने प्रयासों से नियंत्रित कर लिया है। यही 'राहू'  उन्हें छोटी परंतु पैनी आँखें ,संकरा तथा अंदर खिचा हुआ सीना,चालाकी तथा ऐय्याशी भी प्रदान कर रहा है।

तृतीय भाव मे बैठा चंद्र 'रेखा' को अल्पभाषी,व म्रदुल व्यवहार वाला भी बना रहा है जिसके प्रभाव से वह कम से कम बोल कर अधिक से अधिक कार्य करके दिखा सकी हैं। अष्टम भाव मे उच्च का ब्रहस्पति उन्हें दीर्घायु भी प्रदान कर रहा है तथा धनवान व स्वस्थ भी रख रहा है।

राज योग 

दशम भाव मे कन्या राशि का सूर्य 'रेखा' को 'राज्य-भंग ' योग भी प्रदान कर रहा है। इसका अर्थ हुआ कि पहले उन्हें 'राज्य-सुख 'और 'राज्य से धन'प्राप्ति होगी फिर उसके बाद ही वह भंग हो सकता है। लग्न मे बैठा 'राहू' भी उन्हें राजनीति-निपुण बना रहा है। एकादश भाव मे बैठा उच्च का 'शनि' उन्हें 'कुशल प्रशासक' बनने की क्षमता प्रदान कर रहा है। नवम  भाव मे 'सिंह' राशि का होना जीवन के उत्तरार्द्ध मे सफलता का द्योतक है। अभी वह कुंडली के दशम भाव मे 58 वे वर्ष मे चल रही हैं और आगामी जन्मदिन के बाद एकादश भाव मे 59 वे वर्ष मे प्रवेश करेंगी। समय उनके लिए अनुकूल चल रहा है।

राज्येश'बुध' की महादशा मे 12 अगस्त 2010 से 23 फरवरी 2017 तक की अंतर्दशाये भाग्योदय कारक,अनुकूल सुखदायक और उन्नति प्रदान करने वाली हैं। 24 फरवरी 2017 से 29 जून 2017 तक बुध मे 'सूर्य' की अंतर्दशा रहेगी जो लाभदायक राज्योन्नति प्रदान करने वाली होगी।

अभी तक रेखा के किसी भी राजनीतिक रुझान की कोई जानकारी किसी भी माध्यम से प्रकाश मे नहीं आई है ,किन्तु उनकी कुंडली मे प्रबल राज्य-योग हैं। जब ग्रहों के दूसरे परिणाम चरितार्थ हुये हैं तो निश्चित रूप से इस राज्य-योग का भी लाभ मिलना ही चाहिए। हम 'रेखा' के राजनीतिक रूप से भी सफल होने की मंगलकामना करते हैं।
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हिंदुस्तान,लखनऊ के 27-04-2012 अंक मे प्रकाशित सूचना-



शुभ समय ने अपना असर दिखाया और 'रेखा' जी को राज्य सभा मे पहुंचाया। हम उनकी सम्पूर्ण सफलता की कामना करते है और उम्मीद करते हैं कि वह 'तामिलनाडू' की मुख्य मंत्री पद को भी ज़रूर सुशोभित करेंगी।
27 अप्रैल,2012 
http://krantiswar.blogspot.in/2012/04/blog-post_19.html ---------------------------------------------------------------------------------






Saturday 8 October 2016

पर्यावरण के अनुकूल गाँव


डबल क्लिक करके साफ पढ़ सकते हैं : 

बेकार की चीजों से कितना सुंदर मकान बना हुआ है। खाली बोतलों की दीवारों से मकान बना कर पूरा का पूरा गाँव आबाद किया गया है। हर चीज़ का इसी तरह उपयोग किया जा सकता है। 

Friday 7 October 2016

दूरी ,मस्तिष्क, चिराग, मकान, दीपक, क्रोध, नीम

इन बातों पर ध्यान दें और सुखी रहें : 
कहने को तो ये छोटी  -  बातें हैं पर इन पर अमल किया जाये तो दुनिया में कहीं लड़ाई का नाम ही न हो। 







Sunday 2 October 2016

गांधी जी और शास्त्री जी : एक परिचय ------ पूनम



मोहनदास करमचंद गांधी जब महात्मा गांधी बने तो जन-जन के प्रिय नायक भी थे। आज भी यही कहा जाता है कि भारत को स्वतन्त्रता महात्मा गांधी के ही मुख्य प्रयासों से मिली है। लेकिन डा सम्पूर्णानन्द जो यू पी के मुख्यमंत्री और राजस्थान के राज्यपाल भी रहे और संविधान सभा के सदस्य भी रहे बहौत ही निराशा के साथ साप्ताहिक हिंदुस्तान मे 1967 मे लिखे अपने एक लेख मे कहते हैं-"हमारे देश मे भी गांधी नाम का एक पागल पैदा हुआ था,संविधान के पन्नों पर उसके नाम का एक भी छींटा देखने को नहीं मिलेगा। "

 सम्पूर्णानन्द जी ने अपने अनुभवों के आधार पर कोई गलत निष्कर्ष नहीं निकाला है। आजादी के तुरंत बाद गांधी जी की उपेक्षा शुरू हो गई थी अंत तक उन्हें नेहरू-पटेल के झगड़ों मे मध्यस्थता करनी पड़ती थी। परंपरागत रूप से  प्रतिवर्ष गांधी जयंती को एक राष्ट्रीय पर्व के रूप मे मनाया जाता है। गांधी जी के नाम पर गोष्ठियाँ करके खाना-पूर्ती कर ली जाती है। कुछ समय पूर्व तक खादी  के वस्त्रों पर गांधी आश्रम से छूट मिलती थी। यह कह कर इतिश्री कर ली जाती है कि गांधी जी के विचार आज भी प्रासगिक हैं जबकि कहने वाले भी उन पर अमल नहीं करना चाहते।


गांधी जी के नाम का उपयोग एक फैशन के रूप मे किया जाता है। 1977 मे आपात काल के बाद छत्तीस गढ़ मे पवन दीवान को छत्तीस गढ़ का गांधी कह कर प्रचारित किया गया था और अभी-अभी कारपोरेट घरानों के रक्षा कवच अन्ना हज़ारे को दूसरा गांधी कहा गया है। वाराणासी के एक चिंतक महोदय ने एन डी ए शासन मे हुये रु 75000/-करोड़ के यू टी आई घोटाले के समय रहे यू टी आई चेयरमैन डा सुब्रहमनियम स्वामी की तुलना गांधी जी से की है।

गांधी और गांधीवाद का बेहूदा मज़ाक उड़ाया जा रहा है। 1980 मे 'गांधीवादी समाजवाद' का शिगूफ़ा उन लोगों ने छोड़ा था जिन्हें गांधी जी की हत्या के लिए उत्तरदाई माना जाता रहा था। यदि 1970 के लगभग लार्ड रिचर्ड  एटन बरो ने'गांधी' नामक फिल्म न बनाई होती तो आज की पीढ़ी शायद गांधी जी के नाम से भी अपरिचित रह जाती।

गांधी जी का आग्रह सर्वाधिक 'सत्य' और 'अहिंसा' पर था और इन्हीं दोनों को उन्होने अपने संघर्ष का हथियार बनाया था। 'अहिंसा'-मनसा -वाचा-कर्मणा होनी चाहिए तभी वह अहिंसा है। लेकिन आज गांधीवादी कहे गए अन्ना जी के इंटरनेटी भक्त 'तुम्हें गोली से मार देंगे','वाहियात', 'बकवास ' आदि अनेकों अपशब्दों का प्रयोग खुल्लम-खुल्ला कर रहे हैं। यही है आज का गांधीवाद। 

लाल बहादुर शास्त्री 

एक अत्यंत गरीब परिवार मे जन्मे और अभावों मे जिये लाल बहादुर शास्त्री सच्चे गांधीवादी थे । गांधी जयंती पर ही उनकी जयंती भी है। छल -छद्म से दूर रह कर स्वाधीनता संघर्ष मे भाग लेने के बाद शास्त्री जी ने ईमानदारी से राजनीति की है। यू पी के गृह मंत्री रहे हो या केंद्र के रेल मंत्री सभी जगह निष्पक्षता व ईमानदारी के लिए शास्त्री जी का नाम बड़े आदर के साथ लिया जाता है। इसीलिए अपनी गंभीर बीमारी के समय नेहरू जी ने शास्त्री जी को निर्विभागीय मंत्री बना कर एक प्रकार से कार्यवाहक प्रधानमंत्री ही बना दिया था। नेहरू जी की इच्छा के अनुरूप ही शास्त्री जी को उनके बाद प्रधान मंत्री बनाया गया। दृढ़ निश्चय के धनी शास्त्री जी ने अमेरिकी  PL-480 की बैसाखी को ठुकरा दिया और जनता से सप्ताह मे एक दिन उपवास रखने की अपील की जिसका जनता ने सहर्ष पालन भी किया। अमेरिकी कठपुतली पाकिस्तान को 1965 के युद्ध मे करारी शिकस्त शास्त्री जी की सूझ-बूझ और कठोर निर्णय से ही दी जा सकी।

आज शास्त्री जी का नाम यदा-कदा किन्हीं विशेष अवसरों पर ही लिया जाता है। गांधी जी का नामोच्चारण तो राजनीतिक फायदे के लिए हो जाता है परंतु शास्त्री जी का नाम लेकर कोई भी ईमानदारी के फेर मे फंसना नहीं चाहता। नेहरू जी के सलाहकार के रूप मे शास्त्री जी ने जिन नीतियों का प्रयोग किया उनसे यू पी मे कम्यूनिस्टों का प्रभाव क्षीण हो गया और कालांतर मे सांप्रदायिक शक्तियों का उभार होता गया। खुद गरीब होते हुये भी गरीबों के लिए संघर्ष करने वालों को ठेस पहुंचाना शास्त्री जी का ऐसा कृत्य रहा जिसके दुष्परिणाम आज गरीब वीभत्स रूप मे भुगत रहे हैं।

गांधी जी ट्रस्टीशिप के हामी थे और शास्त्री जी सच्चे गांधीवादी परंतु आज देश मे शिक्षा समेत हर चीज का बाजारीकरण हो गया है। बाजार ही राजनीति,धर्म और समाज को नियंत्रित कर रहा है। गांधी-शास्त्री जयंती मनाना एक रस्म-अदायगी ही है। भविष्य मे कुछ सुधार हो सके इसकी प्रेरणा प्राप्त करने हेतु गांधी-शास्त्री का व्यक्तित्व और कृतित्व अविस्मरणीय रहेगा।

गांधी जी ने आम आदमी को केन्द्रित किया था एक आर्यसमाजी उपदेशक महोदय ने अपने प्रवचन मे बताया  था की जब गांधी जी चंपारण मे नीलहे गोरों के अत्याचार के विरुद्ध संघर्ष करने गए थे तो एक गरीब आदिवासी परिवार ने उन्हें बुलाया था। गांधी जी उस परिवार के लोगों से मिलने गए तब उन्हें उनकी वास्तविक गरीबी का र्हसास हुआ,परिवार की महिला ने गांधी जी से कहा की वह अपनी बेटी को भी भेजेगी अतः वह अंदर गई और वही धोती पहन कर उसकी बेटी गांधी जी से मिलने आई। गांधी जी को समझ आ गया कि वहाँ माँ -बेटी के मध्य केवल एक ही धोती है। उसी क्षण उन्होने आधी धोती पहनने का फैसला किया और मृत्यु पर्यंत ऐसा ही करते रहे। ब्रिटिश सरकार उन्हें हाफ नेक्ड फकीर कहती रही परंतु उन्ही से वार्ता भी करनी पड़ी। उन्ही गांधी जी के देश मे आदिवासियों से क्या सलूक हुआ,एक नजर डालें हिंदुस्तान,लखनऊ,01 अक्तूबर 2011 के इस सम्पाद्कीय पर।हम प्रतिवर्ष गांधी जयंती तो मनाते हैं परंतु गांधी जी से प्रेरणा नहीं लेते जिसकी नितांत आवश्यकता है।

1-10-11 का समपादकीय-
साभार :

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यद्यपि  महात्मा गांधी ने सरकार में कोई पद ग्रहण नहीं किया;परन्तु उन्हें राष्ट्रपिता की मानद उपाधि से विभूषित किया गया है.गांधी जी क़े जन्मांग में लग्न में बुध बैठा है और सप्तम भाव में बैठ कर गुरु पूर्ण १८० अंश से उसे देख रहा है जिस कारण रूद्र योग घटित हुआ.रूद्र योग एक राजयोग है और उसी ने उन्हें राष्ट्रपिता का खिताब दिलवाया है.गांधी जी का जन्म तुला लग्न में हुआ था जिस कारण उनके भीतर न्याय ,दया,क्षमा,शांति एवं अनुशासन क़े गुणों का विकास हुआ.पराक्रम भाव में धनु राशि ने उन्हें वीर व साहसी बनाया जिस कारण वह ब्रिटिश सरकार से अहिंसा क़े बल पर टक्कर ले सके.


गांधी जी क़े सुख भाव में उपस्थित होकर केतु ने उन्हें आश्चर्यजनक ख्याति दिलाई परन्तु इसी क़े कारण उनके जीवन क़े अंतिम वर्ष कष्टदायक व असफल रहे.(राजेन्द्र बाबू को भी ऐसे ही केतु क़े कारण अंतिम रूप से नेहरु जी से मतभेदों का सामना करना पड़ा था.)एक ओर तो गांधी जी देश का विभाजन न रुकवा सके और दूसरी ओर साम्प्रदायिक सौहार्द्र  भी स्थापित न हो सका और अन्ततः उन्हें अंध -धर्मान्धता का शिकार होना पड़ा.

गांधी जी क़े विद्या भाव में कुम्भ राशि होने क़े कारण ही वह कष्ट सहने में माहिर बने ,दूसरों की भलाई और परोपकार क़े कार्यों में लगे रहे और उन्होंने कभी भी व्यर्थ असत्य भाषण नहीं किया.गांधी जी क़े अस्त्र सत्य और शास्त्र अहिंसा थे.गांधी जी क़े सप्तमस्थ  गुरु ने ही उन्हें विद्वान व राजा क़े तुल्य राष्ट्रपिता की पदवी दिलाई.

गांधी जी क़े भाग्य भाव में मिथुन राशि है जिस कारण उनका स्वभाव सौम्य,सरस व सात्विक बना रहा.धार्मिक सहिष्णुता इसी कारण उनमें कूट -कूट कर भरी हुई थी.उन्होंने सड़ी -गली रूढ़ियों व पाखण्ड का विरोध किया अपने सदगुणों और उच्च विचारों क़े कारण अहिंसक क्रांति से देश को आज़ाद करने का लक्ष्य उन्हें इसी क़े कारण प्राप्त हो सका.गांधी जी क़े कर्म भाव में कर्क राशि की उपस्थिति ने ही उनकी आस्था श्रम,न्याय व धर्म में टिकाये रखी और इसी कारण राजनीति में रह कर भी वह पाप-कर्म से दूर रह कर गरीबों की सेवा क़े कार्य कर सके.गांधी जी का सर्वाधिक जोर दरिद्र -नारायण की सेवा पर रहता था और उसका कारण यही योग है.गांधी जी क़े एकादश भाव में सिंह राशि एवं चन्द्र ग्रह की स्थिति ने उन्हें हठवादी,सादगी पसन्द ,सूझ -बूझ व नेतृत्व की क्षमता सम्पन्न तथा विचारवान बनाया.इसी योग क़े कारण उनके विचार मौलिक एवं अछूते थे जो गांधीवाद क़े नाम से जाने जाते हैं.अस्तु गांधी जी को साधारण इन्सान से उठ कर महात्मा बनाने में उनके जन्म-कालीन ग्रह व नक्षत्रों का ही योग है.

साभार ::
http://krantiswar.blogspot.in/2012/10/blog-post.html

(इस ब्लॉग पर प्रस्तुत आलेख लोगों की सहमति -असहमति पर निर्भर नहीं हैं -यहाँ ढोंग -पाखण्ड का प्रबल विरोध और उनका यथा शीघ्र उन्मूलन करने की अपेक्षा की जाती है)

गांधी जी , फुटबाल और मुस्कराहट




Saturday 1 October 2016

माँ के उज्ज्वल प्रेम का सौदा नहीं होता

माता की शक्ति के आगे हम तो कुछ नहीं हैं। हम उनकी संतान मात्र हैं। 



Friday 23 September 2016

Saturday 27 August 2016

पुण्यतिथि/ महान पार्श्वगायक मुकेश ----- कुलदीप कुमार 'निष्पक्ष'




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कुलदीप कुमार 'निष्पक्ष'
फूल तुम्हें भेजा है ख़त में, फूल नहीं मेरा दिल है...!
पुण्यतिथि/ महान पार्श्वगायक मुकेश
'छोड़ गए बालम, मुझे हाय अकेला छोड़ गए' और 'किसी की मुस्कुराहटों पर हो निसार' जैसे गीतों से श्वेत-श्याम पटल पर दर्द को रंग और संवेदना को सहारा देने वालें गायक मुकेश जी ने हर तरह के गीत गाएं हैं। लेकिन उन्हें उनके दर्द भरे गीतों के लिए विशेषरूप से याद किया जाता है। उनकी कशिश भरी आवाज़ और दर्द भरे अंदाज़ मन को एक अलग शांति देतें हैं। मुकेश जी का जन्म 22 जुलाई 1923 को दिल्ली में हुआ था। उनके पिता एक अभियंता थें। उनकी 10 संतान थीं और मुकेश उनकी छटवीं संतान। जब मुकेश जी छोटें थें तब उनकी बहन को संगीत की शिक्षा देने एक शिक्षक आतें थें। मुकेश जी उनको छिपकर सुनते थे।  धीरे-धीरे वह संगीत की बारीकियों से परिचित हुयें और गायिकी की तरफ उनका रुझान होने लगा। हाईस्कूल पास करने के बाद वह पीडब्लूडी में काम करने लगे। उसी समय उनके दूर के रिश्तेदार मोतीलाल उनसे मिले और उनसे प्रभावित होकर उन्हें मुम्बई ले आए। यहीं से मुकेश जी के फ़िल्मी कैरियर की शुरुवात हुई। बतौर अभिनेता और गायक उनकी पहली फ़िल्म 1941 में आयी 'निर्दोष' थी। उनके कैरियर का पहला गीत था 'दिल ही बुझ गया होता' इसके अलावा बतौर अभिनेता उन्होंने 'माशुका, आह, अनुराग और दुल्हन' फ़िल्म में काम किया। यह सभी फिल्में असफल रही।
मुकेश जी के आदर्श गायक सहगल जी थें। जब मुकेश जी फिल्मी दुनिया में नहीं आए थे तब वह अपने दोस्तों को सहगल जी के गाये गाने उनकी आवाज़ में कॉपी करके सुनाते थे। इसका प्रभाव उनके गायिकी पर भी पड़ा। एक वह भी दौर आया जब लोग आपस में शर्त लगाने लगे कि 'यह गीत सहगल ने गाया है या मुकेश ने।' एक बार सहगल जी भी मुकेश जी को सुनकर अचंभे में पड़ गए थे। अपने 40 साल लम्बे फ़िल्मी कैरियर में मुकेश जी ने लगभग 200 फिल्मों के लिए गीत गाए। 40 के दशक के उन्होंने अधिकतर गीत दिलीप कुमार, 50 के दशक में वह राजकपूर और 60 के दशक में राजेन्द्र कुमार मनोज कुमार के लिए कई यादगार गीत गाए हैं। 50 का दशक उनके कैरियर और हिंदी सिनेमा के लिए महत्वपूर्ण दशक है। इस दौरान वो राजकपूर जी की आवाज़ बने और बॉलीवुड की सबसे सफल तिकड़ी शैलेन्द्र-मुकेश-शंकर जयकिशन एक साथ काम करने शुरू किये। इस तिकड़ी ने आम भारतीय जनमानस में फ़िल्मी गीतों को काफी लोकप्रियता दिलाई। हसरत जयपुरी साहब के लिखे कई बेहतरीन गीतों को भी मुकेश जी ने आवाज़ दी। राजकपूर जी के साथ उन्होंने 'अंदाज़, आवारा, श्री 420, छलिया, अनाड़ी, संगम, जिस देश में गंगा बहती है, मेरा नाम जोकर, तीसरी कसम' जैसी म्यूजिकल हिट्स फिल्मों में काम किया। 1951 में आयी फ़िल्म 'मल्हार' और 1956 में आयी फ़िल्म 'अनुराग' के निर्माता मुकेश जी थे। यह दोनों फ़िल्में भी असफल रही थीं। मुकेश जी सर्वश्रेष्ठ पार्श्वगायक का फ़िल्म फेयर अवार्ड पाने वाले पहले गायक हैं। उन्होंने अपने कैरियर में 4 बार फ़िल्म फेयर पुरस्कार प्राप्त किया। उनका अंतिम फ़िल्म फेयर उनकी मृत्यु के बाद मिला। उन्हें फ़िल्म फेयर पुरस्कार 'सब कुछ सीखा हमने (अनाड़ी 1959), सबसे बड़ा नादान वहीँ (पहचान 1970), जय बोलो बेईमान की (बेईमान 1972) और कभी कभी मेरे दिल में (कभी कभी 1976)' के लिए मिला। उन्हें साल 1974 में आयी फ़िल्म 'रजनीगंधा' के गीत 'कई बार यूँ ही देखा है' के लिए सर्वश्रेष्ठ गायक का राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार प्राप्त हुआ। मुकेश जी 27 अगस्त 1976 को अमेरिका में एक कार्यक्रम में ' एक दिन बिक जाएगा माटी के मोल' गीत गा रहे थे तभी उनको दिल का दौरा पड़ा और उनकी उसी समय मौत हो गयी। उनके मृत्यु का समाचार सुनकर राजकपूर ने कहा था 'आज मेरी आवाज़ और आत्मा दोनों चली गयी'
महान पार्श्वगायक को उनके एक गीत के साथ श्रद्धांजलि !
'दीवानों से ये मत पूछो, दीवानों पे क्या गुज़री है 
हाँ उनके दिलों से ये पूछो, अरमानों पे क्या गुज़री है
औरों को पिलाते रहते हैं और खुद प्यासे रह जाते हैं 
ये पीनेवाले क्या जाने, पैमानों पे क्या गुज़री है
मालिक ने बनाया इंसां को, इंसान मोहब्बत कर बैठा 
वो उपर बैठा क्या जाने, इंसानों पे क्या गुज़री है'
https://www.facebook.com/photo.php?fbid=598222747026339&set=a.102967489885203.3918.100005158561797&type=3

Sunday 17 July 2016

:काश संसार के सारे इंसान ऐसे हो जाते ?

******** हितोपदेश से बेहतर वृतांत :

एक बार एक लड़का अपने स्कूल की फीस भरने के लिए एक दरवाजे से दूसरे दरवाजे तक कुछ सामान बेचा करता था,
एक दिन उसका कोई सामान नहीं बिका और उसे बड़े जोर से भूख भी लग रही थी. उसने तय किया कि अब वह जिस भी दरवाजे पर जायेगा, उससे खाना मांग लेगा..
पहला दरवाजा खटखटाते ही एक लड़की ने दरवाजा खोला, जिसे देखकर वह घबरा गया और बजाय खाने के उसने पानी का एक गिलास माँगा..
लड़की ने भांप लिया था कि वह भूखा है, इसलिए वह एक.. बड़ा गिलास दूध का ले आई. लड़के ने धीरे-धीरे दूध पी लिया..
कितने पैसे दूं? लड़के ने पूछा.
पैसे किस बात के? लड़की ने जवाव में कहा.
माँ ने मुझे सिखाया है कि जब भी किसी पर दया करो तो उसके पैसे नहीं लेने चाहिए.
तो फिर मैं आपको दिल से धन्यवाद देता हूँ. जैसे ही उस लड़के ने वह घर छोड़ा, उसे न केवल शारीरिक तौर पर शक्ति मिल चुकी थी , बल्कि उसका भगवान् और आदमी पर भरोसा और भी बढ़ गया था..
सालों बाद वह लड़की गंभीर रूप से बीमार पड़ गयी. लोकल डॉक्टर ने उसे शहर के बड़े अस्पताल में इलाज के लिए भेज दिया..
विशेषज्ञ डॉक्टर होवार्ड केल्ली को मरीज देखने के लिए बुलाया गया. जैसे ही उसने लड़की के कस्बे का नाम सुना, उसकी आँखों में चमक आ गयी..
वह एकदम सीट से उठा और उस लड़की के कमरे में गया. उसने उस लड़की को देखा, एकदम पहचान लिया और तय कर लिया कि वह उसकी जान बचाने के लिए जमीन-आसमान एक कर देगा..
उसकी मेहनत और लग्न रंग लायी और उस लड़की कि जान बच गयी.
डॉक्टर ने अस्पताल के ऑफिस में जा कर उस लड़की के इलाज का बिल लिया..
उस बिल के कौने में एक नोट लिखा और उसे उस लड़की के पास भिजवा दिया. लड़की बिल का लिफाफा देखकर घबरागयी..
उसे मालूम था कि वह बीमारी से तो वह बच गयी है लेकिन बिल कि रकम जरूर उसकी जान ले लेगी..
फिर भी उसने धीरे से बिल खोला, रकम को देखा और फिर अचानक उसकी नज़र बिल के कौने में पैन से लिखे नोट पर गयी..
जहाँ लिखा था, एक गिलास दूध द्वारा इस बिल का भुगतान किया जा चुका है.
नीचे उस नेक डॉक्टर होवार्ड केल्ली के हस्ताक्षर थे.
ख़ुशी और अचम्भे से उस लड़की के गालों पर आंसू टपक पड़े उसने ऊपर कि और दोनों हाथ उठा कर कहा,
हे भगवान..! आपका बहुत-बहुत धन्यवाद..
आपका प्यार इंसानों के दिलों और हाथों के द्वारा न जाने कहाँ- कहाँ फैल चुका है.
अगर आप दूसरों पर.. अच्छाई करोगे तो.. आपके साथ भी.. अच्छा ही होगा ..!!
अब आपको दो में से एक चुनाव करना है..!
या तो आप इसे शेयर करके इस सन्देश को हर जगह पहुंचाएँ..
या अपने आप को समझा लें कि इस कहानी ने आपका दिल नहीं छूआ..!!
PLZZ SHARE!!!!!
साभार :
https://www.facebook.com/209184759431319/photos/a.209186616097800.1073741828.209184759431319/259134634436331/?type=3
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काश संसार के सारे इंसान ऐसे हो जाते ? मानवीय समवेदनाओं से भरी हुई रचना प्रेरक है। अगर सारा संसार ऐसा होता तो आतंक का साया ही खत्म हो जाता। दुनिया खुशहाल होती। 
(पूनम )

Tuesday 24 May 2016

पिता जी की पुण्यतिथि पर ------ पूनम कुमारी

17 वीं पुण्यतिथि पर श्रद्धांजली सहित ::
हमारे  बाबूजी अक्सर अच्छी बात ही जीवन में उतारने के लिए कहते थे। सादा और उच्च विचार लेकर ही चलने की बात करते थे। चाहे घर हो चाहे बाहर। अक्सर सब की मदद ही किया करते थे। नौकरी के दौरान भी अक्सर गरीबों का ही पक्ष लिया करते थे। हमारे दादा-दादी भी उनसे काफी प्रसन्न रहते थे। कभी माँ - बाबूजी की बात को टालते नहीं थे। दुख तकलीफ तो उन्हें जीवन में बहुत मिला। परंतु हमारे माता - पिता निराश नहीं होते थे। उसे गुज़रा हुआ अतीत समझ कर आगे बढ्ने की शिक्षा देते थे। यही कहा करते थे जीवन है तो सुख - दुख लगा ही रहता है। सुबह  साँझ  की तरह उससे क्या घबड़ाना ?

बचपन में 42 दिन बेहोश रहने के बाद भी दिमाग से काफी कुशाग्र थे। गणित में पारंगत थे। सभी दोस्तों को गणित बताया करते थे। उनका एक नारा था - कम खाओ-गम खाओ। और अक्सर कहा करते थे नेकी कर दरिया में डाल । सभी बच्चों से उनको बहुत प्रेम था। बच्चे अपने दिल  की बात उनसे कहा करते थे। कभी हम लोग अपने माता - पिता से मार नहीं खाये हैं। जब भी  मेरे बाबूजी को चाय पीना होता था। प्लीज़ लगा कर ही चाय की फरमाईश  किया करते थे। हर कोई उनको चाय देने को तैयार रहता था। कभी किसी ने भारी मन से चाय नहीं दी। जहां स्नेह होता है वहाँ चीज़ भी अच्छी बनती है। 

माता  -  पिता के गुज़र जाने के बाद एक दौर ही गुज़र जाता है। सिर्फ यादें भर रह जाती हैं। यह याद ही एक माला की कड़ी है। 

श्रद्धा व नमन 
( पूनम ) 
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Poonam Kumari shared Danda Lakhnavi's post.
May 21 at 7:42pm · 

Danda Lakhnavi
May 20 at 11:57pm · 
पिता का मार्मिक पत्र :: पुत्र के नाम
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पढ़िए, समझिए, अपनाइए....... फिर देखिए परिणाम

Beautiful letter written by a father to his son 👌 Must send to your children

Following is a letter to his son from a renowned Hong Kong TV broad-caster and Child Psychologist.
The words are actually applicable to all of us, young or old, children or parents.! 
This applies to daughters too. All parents can use this in their teachings to their children.

Dear son ,

I am writing this to you because of 3 reasons

1. Life, fortune and mishaps are unpredictable, nobody knows how long he lives. Some words are better said early.

2. I am your father, and if I don't tell you these, no one else will.

3. What is written is my own personal bitter experiences that perhaps could save you a lot of unnecessary heartaches. Remember the following as you go through life

1. Do not bear grudge towards those who are not good to you. No one has the responsibility of treating you well, except your mother and I. 
To those who are good to you, you have to treasure it and be thankful, and ALSO you have to be cautious, because, everyone has a motive for every move. When a person is good to you, it does not mean he really likes you. You have to be careful, don't hastily regard him as a real friend.

2. No one is indispensable, nothing is in the world that you must possess. 
Once you understand this idea, it would be easier for you to go through life when people around you don't want you anymore, or when you lose what/who you love the most.

3. Life is short. 
When you waste your life today, tomorrow you would find that life is leaving you. The earlier you treasure your life, the better you enjoy life.

4. Love is but a transient feeling, and this feeling would fade with time and with one's mood. If your so called loved one leaves you, be patient, time will wash away your aches and sadness. 
Don't over exaggerate the beauty and sweetness of love, and don't over exaggerate the sadness of falling out of love.

5.A lot of successful people did not receive a good education, that does not mean that you can be successful by not studying hard! Whatever knowledge you gain is your weapon in life. 
One can go from rags to riches, but one has to start from some rags!

6.I do not expect you to financially support me when I am old, neither would I financially support your whole life. My responsibility as a supporter ends when you are grown up. After that, you decide whether you want to travel in a public transport or in your limousine, whether rich or poor.

7. You honour your words, but don't expect others to be so. You can be good to people, but don't expect people to be good to you. If you don't understand this, you would end up with unnecessary troubles.

8. I have bought lotteries for umpteen years, but I could never strike any prize. That shows if you want to be rich, you have to work hard! There is no free lunch!

9. No matter how much time I have with you, let's treasure the time we have together. We do not know if we would meet again in our next life.

Your Dad

Read it twice
If read fast like me

https://www.facebook.com/dlakhnavi/posts/998495893519692

Sunday 17 April 2016

उसकी तलाश

बरस बीते दिन बीते सुबह हुई शाम हुई । जीवन कट रहा था। जीवन में अंधेरा ही अंधेरा था। चारों तरफ कालिमा थी। कुछ सूझ नहीं रहा था । करें तो क्या करें हर तरफ से लांछन ही लांछन था जीवन में । कहीं से कोई सहारा नहीं था। अब तो लग रहा था जीवन खत्म ही होने वाला है। कहीं कुछ भी नहीं । जैसे अंधेरे कुएं में और ज्यादा अंधेरा था। अंधकार ही अंधकार चारों तरफ था। सही - गलत का फैसला था ही नहीं। हर वक्त गलत का ही बोलबाला था। गलत की चादर में लिपटा हुआ था जीवन। ऐसा लग रहा था मौत का ही सहारा हो। वही सबसे बड़ा सहयोगी हो।

परंतु अचनाक दिमाग ने कहा कि, जीवन तो अनमोल होता है। क्यों जीवन को खोया जाये। मौत तो एक दिन आएगी मरना तो तय है।अपने सुंदर जीवन की रक्षा की जाये। क्यों इसे बर्बाद होने दिया जाये? तभी दिमाग ने सुंदर सलाह दिया कि, क्यों दिल की बातों को गले से लगा कर रखा जाये? दिल को ठेस लगी दिल तो नाज़ुक होता ही है। दिमाग ने कहा तोड़ दो सारे अविश्वास के दीवार, बाहर निकलो और देखो चारों ओर विश्वास खड़ा है। बाहें फैलाये कुदरत के इस हसीन तोहफे को स्वीकार करो।

निकल पड़ो एक सफर पर जहां न कोई तेरा है न मेरा । जीवन अनमोल है इसलिए दुनिया को कुछ देकर जाओ। और फिर से दुनिया को देखो हसरत भारी निगाहों से। जैसे एक गाना मुझे याद आया - 'एक अंधेरा, लाख सितारे .........................'

क्यों किसी का इंतजार करें, कि आओ और मेरे काम में हाथ बटाओ ? दुनिया तुम्हारी है और भी अच्छे लोगों से भरी पड़ी है। फिर देर किस बात की ? जी भर कर अच्छे काम में जुट जाओ कारवां अपने आप बनते जाएगा। क्यों किसी की तलाश की जाये?
14-12-2015 

Thursday 14 April 2016

दलितों के लिए सरकार ने मातृ भाषा तक में शिक्षा दुर्लभ कर दी है



ईश्वर ने तो सबको एक समान बना कर भेजा है। समाज ने खुद खाई खोदी है। प्रकृति की तरफ से बाढ़,भूकंप, तूफान आदि प्रकोप के समय मनुष्य-मनुष्य में भेद नहीं किया जाता है। परंतु आज यह भेदभाव देख कर कर लगता है कि, लोग परमात्मा और प्रकृति के विपरीत आचरण कर रहे हैं इसी कारण समाज दुखी है।  

Thursday 31 March 2016

गरीबी आउर पढ़ाई -------- पूनम कुमारी

कुछ लोगन के ई परिभाषा हो गईलबा । 'भारत माता की जय' कहे के खातिर। अपना बगली में झांक के इन लोग बाग देखले होहिहे कि इनकर महतारी कइसे रह तारी । महतारी के त एगो गिलास शायद जीवन  भर पानिओ न देले होहीहें पर भारत माता की जय करत तारन। अपना मतारी के धूरछी - धूरछी कइले वाइन पर दुनिया के देखावे के खातिर भारत माता की जय। महतारी बाप से ही दुनिया बा। इ बात समझे में नइखे आवत । 

आज अपना नाम शोहरत के खातिर लोग देश बेच रहल बाड़न   आउर बाट रहल बाड़न। आज दुनिया में देखा रहल बाड़न की जे देश महान आउर सब के     रहल हा  उ देश नाम बरबाद करले बाड़न  लोग । आज देश भर में जे यूनिवर्सिटी अच्छा पढ़ाके छात्र के निकल रहल बा।हर क्षेत्र में कामयाब बा।   ओकर पढ़ाई लिखाई मटियामेट कइले बाड़न लोग।का लड़की का लड़का सब पर लाठी डंडा के प्रहार बा। लड़की सबके पेट पर मारल जा रहल बा। आउर न त बलात्कार के धमकी छात्र लड़की पर बोललू ह त   छात्र तोहर दुर्दशा कर दिहल जाई।गरीब बच्चा सबके पढ़ाई ए न हो सके ऊ सबके टेलेंट मर जा। अमीरवन सबके खाली बचवा सब पढे , खाली गरीब पर राज  करे के खातिर।लेकिन इ सोचे के बात बा कि टेलेंट के न मारे के चाहिं इहे सच्चा माने में देश भक्ति बा। जइसन आपन  बच्चा के सोचे के चाहिँ वैसे दुसरा के बच्चा के सोचें के चाहिँ, गरीब अमीर न लावें के चाहिँ ।   जेतना से जेतना छात्र पढ़ के निकल सके चाहे अमीर, चाहे गरीब ऊ भारत देश के एसेट बा। इ लोग के समझे कि चाहिँ। बुजुर्ग लोग के इ परम करतब बा कि यंग जेनरेशन में अच्छा विचार व भावना भरीं।  गरीबी के कारण बच्चा सब पढ़ नइखे सकत।   

जब देश गुलाम रहे ता सब लोग के एक नारा रहे की देश के आजाद करे के चाही । अब इन लोगन के  ई न नईखे समझ में आवत  कि कोई भी सौ बरस की जिंदगी   लेके नइखे आइल  कोई बढ़िया काम करके दुनिया  से रुखसत होइ कि नाम रहे । सबके अपना पेटे नजर आवत दूसर भूखे रहे चाहे मरे। सबका साथ सबका विकास इ खाली कहे क नारा बा। लोग त आँख रहते आंधर  हो गइल बा  । हमरा त अब छात्र लोगन पर आसरा बा। छात्र हीं दुनिया बदले के ताकत रख रहल बा। हम अंत में ए ही कहब कि छात्र एकता ज़िन्दाबाद । छात्र लोग अपन ताकत  देखा द  दुनिया के सामने । सब बुजुर्ग लोगन के काम बा कि छात्र के उन्नति के अवसर प्रदान करीं । उन लोगन के आगे बढ़े खातिर बढ़ावा/अवसर दी। तभी त रउआ लोग छात्र के कंधा पर चैन आउर सकूँन से अंतिम यात्रा कर सकब। 

सब कुछ छात्र की मुट्ठी में 
तुमे पिला दे पानी घुट्टी में 
मत उसे ललकारो 
अपनी पर आने में 
हो जाएगी तुम्हारी छुट्टी मिनटों में 
सब कुछ है छात्र की शक्ति में । । 

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Sunday 27 March 2016

सीख - जो झगड़े का करे अंत -------- एनिस जहाँ


"एक चुटकी ज़हर रोजाना"
आरती नामक एक युवती का विवाह हुआ और वह अपने पति और सास के साथ अपने ससुराल में रहने लगी। कुछ ही दिनों बाद आरती को आभास होने लगा कि उसकी सास के साथ पटरी नहीं बैठ रही है। सास पुराने ख़यालों की थी और बहू नए विचारों वाली।
आरती और उसकी सास का आये दिन झगडा होने लगा।
दिन बीते, महीने बीते. साल भी बीत गया. न तो सास टीका-टिप्पणी करना छोड़ती और न आरती जवाब देना। हालात बद से बदतर होने लगे। आरती को अब अपनी सास से पूरी तरह नफरत हो चुकी थी. आरती के लिए उस समय स्थिति और बुरी हो जाती जब उसे भारतीय परम्पराओं के अनुसार दूसरों के सामने अपनी सास को सम्मान देना पड़ता। अब वह किसी भी तरह सास से छुटकारा पाने की सोचने लगी.
एक दिन जब आरती का अपनी सास से झगडा हुआ और पति भी अपनी माँ का पक्ष लेने लगा तो वह नाराज़ होकर मायके चली आई।
आरती के पिता आयुर्वेद के डॉक्टर थे. उसने रो-रो कर अपनी व्यथा पिता को सुनाई और बोली – “आप मुझे कोई जहरीली दवा दे दीजिये जो मैं जाकर उस बुढ़िया को पिला दूँ नहीं तो मैं अब ससुराल नहीं जाऊँगी…”
बेटी का दुःख समझते हुए पिता ने आरती के सिर पर प्यार से हाथ फेरते हुए कहा – “बेटी, अगर तुम अपनी सास को ज़हर खिला कर मार दोगी तो तुम्हें पुलिस पकड़ ले जाएगी और साथ ही मुझे भी क्योंकि वो ज़हर मैं तुम्हें दूंगा. इसलिए ऐसा करना ठीक नहीं होगा.”
लेकिन आरती जिद पर अड़ गई – “आपको मुझे ज़हर देना ही होगा ….
अब मैं किसी भी कीमत पर उसका मुँह देखना नहीं चाहती !”
कुछ सोचकर पिता बोले – “ठीक है जैसी तुम्हारी मर्जी। लेकिन मैं तुम्हें जेल जाते हुए भी नहीं देख सकता इसलिए जैसे मैं कहूँ वैसे तुम्हें करना होगा ! मंजूर हो तो बोलो ?”
“क्या करना होगा ?”, आरती ने पूछा.
पिता ने एक पुडिया में ज़हर का पाउडर बाँधकर आरती के हाथ में देते हुए कहा – “तुम्हें इस पुडिया में से सिर्फ एक चुटकी ज़हर रोज़ अपनी सास के भोजन में मिलाना है।
कम मात्रा होने से वह एकदम से नहीं मरेगी बल्कि धीरे-धीरे आंतरिक रूप से कमजोर होकर 5 से 6 महीनों में मर जाएगी. लोग समझेंगे कि वह स्वाभाविक मौत मर गई.”
पिता ने आगे कहा -“लेकिन तुम्हें बेहद सावधान रहना होगा ताकि तुम्हारे पति को बिलकुल भी शक न होने पाए वरना हम दोनों को जेल जाना पड़ेगा ! इसके लिए तुम आज के बाद अपनी सास से बिलकुल भी झगडा नहीं करोगी बल्कि उसकी सेवा करोगी।
यदि वह तुम पर कोई टीका टिप्पणी करती है तो तुम चुपचाप सुन लोगी, बिलकुल भी प्रत्युत्तर नहीं दोगी ! बोलो कर पाओगी ये सब ?”
आरती ने सोचा, छ: महीनों की ही तो बात है, फिर तो छुटकारा मिल ही जाएगा. उसने पिता की बात मान ली और ज़हर की पुडिया लेकर ससुराल चली आई.
ससुराल आते ही अगले ही दिन से आरती ने सास के भोजन में एक चुटकी ज़हर रोजाना मिलाना शुरू कर दिया।
साथ ही उसके प्रति अपना बर्ताव भी बदल लिया. अब वह सास के किसी भी ताने का जवाब नहीं देती बल्कि क्रोध को पीकर मुस्कुराते हुए सुन लेती।
रोज़ उसके पैर दबाती और उसकी हर बात का ख़याल रखती।
सास से पूछ-पूछ कर उसकी पसंद का खाना बनाती, उसकी हर आज्ञा का पालन करती।
कुछ हफ्ते बीतते बीतते सास के स्वभाव में भी परिवर्तन आना शुरू हो गया. बहू की ओर से अपने तानों का प्रत्युत्तर न पाकर उसके ताने अब कम हो चले थे बल्कि वह कभी कभी बहू की सेवा के बदले आशीष भी देने लगी थी।
धीरे-धीरे चार महीने बीत गए. आरती नियमित रूप से सास को रोज़ एक चुटकी ज़हर देती आ रही थी।
किन्तु उस घर का माहौल अब एकदम से बदल चुका था. सास बहू का झगडा पुरानी बात हो चुकी थी. पहले जो सास आरती को गालियाँ देते नहीं थकती थी, अब वही आस-पड़ोस वालों के आगे आरती की तारीफों के पुल बाँधने लगी थी।
बहू को साथ बिठाकर खाना खिलाती और सोने से पहले भी जब तक बहू से चार प्यार भरी बातें न कर ले, उसे नींद नही आती थी।
छठा महीना आते आते आरती को लगने लगा कि उसकी सास उसे बिलकुल अपनी बेटी की तरह मानने लगी हैं। उसे भी अपनी सास में माँ की छवि नज़र आने लगी थी।
जब वह सोचती कि उसके दिए ज़हर से उसकी सास कुछ ही दिनों में मर जाएगी तो वह परेशान हो जाती थी।
इसी ऊहापोह में एक दिन वह अपने पिता के घर दोबारा जा पहुंची और बोली – “पिताजी, मुझे उस ज़हर के असर को ख़त्म करने की दवा दीजिये क्योंकि अब मैं अपनी सास को मारना नहीं चाहती … !
वो बहुत अच्छी हैं और अब मैं उन्हें अपनी माँ की तरह चाहने लगी हूँ!”
पिता ठठाकर हँस पड़े और बोले – “ज़हर ? कैसा ज़हर ? मैंने तो तुम्हें ज़हर के नाम पर हाजमे का चूर्ण दिया था … हा हा हा !!!”
"बेटी को सही रास्ता दिखाये,
माँ बाप का पूर्ण फर्ज अदा करे"
पोस्ट अच्छा लगे तो प्लीज शेयर करना मत भूलना

(चिकित्सकीय ज़िम्मेदारी को पिता ने निभाया और नए तथा पुराने विचारों का तालमेल कराया । क्या इसी तरह से हमारे विश्वविद्यालयों में जो झगड़े चल रहे हैं उसका कोई हल नहीं निकल सकता है?सरकार अगर चाहे तो बुद्धिमतापूर्ण कदम उठा कर सारे झगड़े को खत्म कर दे और बच्चों/छात्रों के माध्यम से एक शक्तिशाली राष्ट्र का निर्माण करे जिस पर कोई विदेशी उंगली न उठा सके। क्योंकि छात्रों के भीतर बहुत बड़ी शक्ति छिपी होती है जिसे सामने लाने की जरूरत है दफन करने की नहीं । समस्या है तो समाधान हर जगह है।  ) -------- पूनम कुमारी 

Monday 7 March 2016

मौन में अर्थ तलाशते 'अज्ञेय '


अज्ञेय के ये विचार आज भी जीवंत व प्रासांगिक  हैं और उन पर गौर किए जाने की आवश्यकता है। 

Thursday 3 March 2016

माँ को नमन ------ पूनम



माँ की पुण्यतिथि(03 मार्च ) पर :


हमारे माता-पिता हम लोगों के निर्माण के लिए कितने तकलीफ और दुख उठाते हैं उसके बाद संतान को सुखी जीवन दे पाते हैं । मेरी माँ ने मेरे लिए बहुत दुख उठाया है और संयुक्त परिवार में ऊपर से काम का बोझ । अब मुझे समझ आता है कि, उनके दिमाग पर कितना बोझ था? पर कभी भी संतुलन नहीं खोया। हमेशा ही हम भाई -बहन के लिए ज़िंदगी को जिया। कभी उफ तक नहीं किया। मेरी माँ को शत-शत नमन। :हम भाई-बहन माँ-पिताजी का कहना ज़रूर मानते थे।