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Monday 31 December 2012

कहवा चली गइलू बेटी हमार हो ---पूनम माथुर

कहवा चली गइलू बेटी हमार हो अँखिया से ओझल हो गइलू दुखवा देइके माई बाप ,भाई बहिन के रोअत छोड़िके  । सन 2012 अब त जा रहल बा हमरा तोहरा से ना मिले के संदेशवा दे के। काईसन निठुर रे सन 2012 रे हमार बेटी के निगल गइले रे। अब हम कइसे रतिया दिनिया काटब रे। हमार त करेजवा अइठ के चल गइलू हो। हम अपना के कइसे ढाढ़स बधाई हो।  तोहार तो कबनों कसूर ना रहे। नियति के काल तोहारा के खा गईल।

बेटी हो हमारा अपन कोख पर नाज बा कि तू दरिंदन से खूब लड्लू । तू त मर गइलू लेकिन ऊ दरिंदवन सब फांसी मांगत बाड़न स । डरे उ सबहन के हालत खराब । जेल मे कैदियों सबसे पीटातारन स । कुकर्म करे समय त अपना के सबसे ताकतवर समझत  रहन स । अब काहे डर लगल बा।

हमार आंखि से गंगा-जमुना बहरहल बा लेकिन तू हमार बेटी हऊ  एहसे हमारा कौवनों तरह के शरमीनदी नइखे । आज तोहरा वास्ते पूरा भारत वर्ष मे बलात्कार करे वालन के विरुद्ध कारवाई हो रहल बा। तोहार सहादत  बेजा ना जाई तोहार कुर्बानी बेकार  न होई देश भर तोहरा साथे  बाटे। अब समाज के बदले के पड़ी ।औरत के इज्जत आऊर सम्मान त देवे के ही पड़ी। समाज बदली। परमात्मा सृष्टि के रचना औरत आऊर मर्द के द्वारा ही करवावे के खातिर संसार के रचना कइले बाड़न। न कि बलात्कार के खातिर। दिमाग के विकृति के कारण ही त लोग इ सब काण्ड कर देवलन। इंका के ठीक करे के समाज मे चेतना लावे की चाही। हमरा अब कौवनों डर नइखे । बेटी हमार बहादुर रहन हिया। हम अपना बेटी के संस्कार दे ले रही।

हमार आंखि के लोर चूअल अब तब ही बंद हो जब कन्या भ्रूण -हत्या ना होई। सरकार,देश,समाज,परिवार के अब इहे दृढ़ संकल्प लेवे की पड़ी। तब हम समझब की हमार बेटी फिर से हमार कोख मे पल रहल बिया?हम तोहरा के बिदा नइखी कइले। तू त देश के बेटी हऊ। तू त युवा वर्ग के अंदर संस्कार आऊर संस्कृति के मशाल जला देहलू। तोहरा के पूरा देश के तरफ से नमन आऊर श्रद्धांजली।       

Friday 28 December 2012

संवाद /बिना-नज़र समझ के फेर बा ---पूनम माथुर


जब हमनी के बी ए मे हिन्दी के किताब-'राजतिलक' मे एगो पढ़ले रही ऊ लिख रहल बानी -"राजा की वास्तविक शक्ति जनपद के विश्वास मे होती है न कि,शस्त्रागार मे होती है। "

दिल्ली पुलिस के लोग प्रशासक वर्ग मे कहावे ला लेकिन केतना बड़का दुर्भाग्य बा कि ऊ लोग जनता के साथे  बातचीत के माध्यम या संवाद के माध्यम से कोईयो काम ना करवा सकल हा। का हर बतिया के ऐके को जबाब बा लाठी मार दे। लाठी के आगे भूतवों भाग जाई ।' रामायण '-'महाभारत' मे पहिले दूनों पक्ष के बीच मे संवाद भइल बाटे ओकरा बाद । लड़ाई भइल बा। लेकिन आज नयका युग त कलयुग बा। जाड़ा के दिन जे तरह से पानी के फुहार से आऊर लाठी से मार-मार के परदरशंनकारी के भगावल गईल हा का इहे उचित बा। लोगन के जुड़े के कारण मोबाइल के क्रान्ति काही या इलेक्ट्रानिक क्रान्ति थोड़े ही देरी हजारों लोग एक दूसरा के साथ बाटे भले ही एकरा म नेतृत्व के अभाव होखे। पर एकता त दिखाई दे रहल बा।

जनता के गोसा त सोलह दिसंबर के घटना ही नईखे,सरकारी तंत्र के असंवेदनशील आऊर गैर जबाब देही भी बाटे । न त आज के प्रशासन मे भीड़ से निबटे के केईओ कुशलता बाटे, खाली लाठी देखावे लन जनता ऐही  से  ना सड़क पर उतर ल हिया। कोछो जनता त गोसाई रहे ओकरा त भवानात्मक संतबना चाहीत रहे। सत्ता पर काबिज लोग के ओह घड़ी काम रहे उन लोगन के संतव्ना देवे। कुछ राजद्रोही लोग भीड़ के ऊकसवा देवे लन कि देश मे गृह-युद्ध हो जाये। कालेज -स्कूल के बच्चन के बुद्धि केतना होला। बेचारा सब पीट गईलन। चूके कारवाई ठीक तरह से ना भाईल हा एह से इतना भीड़ जूट गईल आऊर हंगामा होई गईल। संवाद के माध्यम से सब काम हो जाईत न पानी के फुहार से आऊर ना लाठी से। प्यार मोहब्बत से सब काम हो सकत। भवानात्मक रूप से। संवाद के जरिये से ही अंगुलीमाल जईसन डाकू के हृदय परिवर्तन हो गईल । 

संवाद के बिना ही त कुछ लोग मर जाता दूनो तरफ के लोगन   के तकलीफ बा। वोट लेवे के बारी त राजनीतिक लोग घरे परे हाथ जोड़ के घूमेला। का एक घड़ी जब देस मे अइसन स्थिति बाटे त उन लोगन के मुंह काहे बंद बा। ऊ लोग के नेतृत्व करके चाही राजनीतिक नेतृत्व होवे चाही। खाली कुर्सी चाही। देश तो आपन  बा -जाति धर्म मे त ना बाटे के चाही। सभे राजनीतिक दल के अपील करे के चाही की अइसन घड़ी मे शांति बनावे चाही। ना त दुश्मन हावी हो जाई। देश के कुछ गद्दार यही चाह रहल बा। लड़ाई लगा के आपन उल्लू सीधा कर रहल बा।  आज के संदर्भ मे जेतना कांड  हो रहल बा। सब संवाद के अभाव के कारण ही बा। एगो त जेनरेशन गैप हो गईल बा। माहतारी बाप के बाल बच्चा से कोईओ मतलब नई खे । पैसा आऊर पैसा कमाए के धुन लागल बाटे।

दादी -नानी  के किस्सा कहानी खत्म हो गईल बा। लॉरी त न जाने कहअवा छूट गईल बा। एकरा मे बहुत बड़ा संदेश रहे जे छोट बच्चा के दिमाग के अन्तर्मन पर पडत रहे । अंजाने मे ही चरित निर्माण भी धीरे-धीरे होत रहे। आज के बच्चा भूखे रोअत रोअत सुत जाला । महतारी बाप काम पर से लौटिए तवे तक बचवा सिसकते-सुबकते सुत जाला। न ओकरा पास प्यार बाटे न संवाद बाटे न केहु के गोदी बाटे । सही रास्ता दिखावे वाला कोई नईखे । बरगर-पिज्जा खा आऊर जिय। कोई ओ कहबा जा रहल बा कोई ओ मतलबे नई खे । हाय पइसा पइसा।

आज के युग मे फिर से दादी  नानी के युग के आव्हान करे के चाहि। फिर से दादी- नानी के किस्सा-कहानी के माध्यम से नीति आऊर  नैतिक शिक्षा के जमाना लौट आई ,अपराध रुकी । बड़ा-बूढ़ा समझ आऊर नजर के बात करीहे। आज फिर वही गोदी लौटिके बच्चन के चाही। आधुनिक सिनेमा ,आर्केस्ट्रा गाना के कम करके फिर से पुरनका सिनेमा के लावे के चाही। जइसे -प्यासा,चित्रलेखा,दो आँखें बारह हाथ,हकीकत,जाग्रति,दुश्मन जइसन सिनेमा देखावे के चाही। नुक्कड़ नाटक के माध्यम से भी जनता मे जाग्रति फेलावे के चाही । सम्राट अशोक के भी त हृदय परिवर्तन हो गईल रहे। त फिर हर इंसान मे इंसान बनावे के नजरिया होखे के चाही। एक गो गाना बाटे-"इंसान की औलाद हो इंसान बनो ,न हिन्दू बनो न मुसलमान बनो"।

शरीर के खातिर खाना पानी चाही । त मन-आत्मा  के खातिर भी त संस्कार रूपी भोजन देवे के चाही । ई कर्तव्य देशवासी,समाज,घर-परिवार,अड़ौसी-पड़ौसी के बाटे। गलत शिक्षा के कारण ही सब दूरगुन फेलल बाटे। आई हम सभे इहे दृढ़ संकल्प लीही की संवाद के माध्यम से लोग के बदले के कोशिश करब। 


Saturday 22 December 2012

का कहीं कुछो समझे नइखे आवत---पूनम माथुर


का कहीं हमरा त बुझाते नइखे । एगो शास्त्री जी जिंनकर नाम श्री राम रत्न बाटे। अब उनका से मिलले हमरा पाँच छह साल हो गईल बा। ऊ  हमरा के 'बिटिया' क़हत रहन। हमारा घरे ज्योतिषी सलाह लेवे के खातिर आवत रहले कि कौवन दिन से प्रोग्राम रखी की सात दिन के प्रवचन ठीक से ठीक चल सके कवनों विघ्न त ना होवे। हमार पति से पूछे आवत रहवन एहि से  जान पहचान  हो गईल रहे ।

उन  कर बात हमारा जेहन मे बार-बार उठ रहल बा  आज जे ई सब कांड हो रहल बा। उ क़हत रहलन कि महिला मे बाइलोजिकल अंतर नइखे भावना के अंतर बाटे  कि ऊ महतारी,बहिन, भुआ ,दादी,अम्मा,नानी,काकी,बीबी,बेटी के नाम से जानल जा ला। अगर भावना खत्म हो गईल त सब खत्म हो गईल । भावना के चलते ही त आँख के पर्दा बाटे ना त सब खत्म।

दिल्ली मे जे कांड हो गईल हा ओकर त सीधा संबंध भावना के खत्म हो गईला के कारण ही बा। दिल्ली का दुनिया के हर कोना मे आज बलात्कार हो रहल बा। लड़की के घरे से निकलल मोसकिल हो गईल बा। एक तरफ त तरक्की एतना हो गईल बा कि लड़का -लड़की बराबर बा। संविधान मे भी संशोधन करे के खातिर आवाज उठ रहल बा। पर संस्कार कहाँ कोई अपना घर पर दे रहल बा। संस्कृति संस्कार के बात खाली भाषण बाजी ,समाचार पत्र,लेख,ब्लाग,अउर मीडिया मे बतावल जा ला।परंतु घरे पर अपना बेटा के कोई कुछ कहे ला  कि तुअ गलत काम मत करीह । (बेटा हव सब ठीक बा रात बिरात आव जा कुछ भी करब तोरा मे कोई दोष नइखे तु त कुलदीपक हव )। गलत व्यवहार आउर नीति के कारण पुरुष वर्ग महिला वर्ग पर हावि बा। समझदारी के बात आजकल गार्जियन लोगन के बतावे के चाही । कवन   गलती बा इहों बतावे के चाही। रेप -रेप सुन रहल बा आज के लोग रेप के उल्ट के पढि परे-परे हो जाई । एकरा मे कौनों   दुर्घटना न  होई। आज कल हमनी के देखेली कि पढे वाला लडिका लड़किन सब एक दूसरे के हाथ हाथ डालते जा रहल बा लोग एक दूसरे के कांधा पर थपकी दे रहल बा ।दुनिया देख रहल बा का इहे मार्यादा बा।का बच्चा का बूढ़ा सब देख रहल बा ,इहे जमाना आ गईल बा। आज कल हटे-हटे के जगह पर सटे-सटे हो गईल बा। त दुर्घटना त होना ही बा। तरक्की के जमाना बा। कोई कुछ नइखे कह सकत। कहब त पीटा जईब ।

ऐतना होई के बावजूद भी बलात्कार जइसन घटना ना हो के चाही। कुत्ता जइसन हड्डी पर टूट पड़े ला। तू उहे हव का? तू त इंसान हव । मानव होवे  के तनिक  गुमान करअ ।

हमरा   घरे के सामने भागवत हो रहल बा।  कवनो   औरत सुंदर देखे मे लागतिआत  त लोग घूर-घूर के ओकरा के देखे लागे ला। का पब्लिक के भगवान मे मन लागेला कि इहे सब कुलही देखे मे मन लागेला । पूजा करत लोग के ध्यान कहीं आउर बा। आऊर त आऊर भगवान के चरितर  हनन कि कृष्ण भगवान गोपीन के कपड़ा लेके कदम के पेड़ पर चढ़ि गईलन नदी से गोपी तू लोग बाहर निकल तबे कपड़ा दे हव । जरा सोंची कि भावना आऊर भगवान के  ऐतना नीचे गिरावट। हम त पूजा-पाठ मे न जाईला एक तरह से बहिष्कार। हर जगह नारी के साथे अइसन व्यवहार बा तनि सोची। समझे के काम बा अपन-अपन घर के सुधारी तब ही जन-कल्याण बा। महिला के उद्धार बा। हल्ला हंगामा से का होई जे कर इज्ज़त लुट गइल का वापस आई?भगवान से प्रार्थना करी कि ई लोगन के तबीयत जल्दी से जल्दी ठीक हो जाए।आऊर समाज मे ए तरह के लोगन के साथ सामान्य व्यवहार होए। आज के संदर्भ मे जरूरत बा अपना घर के व्यवहार आऊर वातावरन बनावे कि टी वी ,विदेशी कल्चर आऊर  कंप्यूटर से काम ना चली। व्यवहार से घर समाज चली। देश भी बनी।

महतारी ,बाप ,गुरु आऊर समाज के ईहे कर्तव्य बा लड़का- लड़की के   सही शिक्षा दिहल जाए।  तब ई सब घटना पर रोक लगी।

 

Saturday 8 December 2012

कुछ लोग ---पूनम माथुर

बुधवार, 16 नवम्बर 2011

कुछ लोग

श्रीमती पूनम माथुर 
कुछ लोग अपने को बड़ा मानते हैं ।
श्रवण कुमार को सब लोग जानते हैं।
सारे लोग उस पुत्र का लोहा मानते हैं।
यह सब लोग जानते हैं।
इनको किस्सा-कहानियाँ मानते हैं।
आज कल लोग  ऐसा करना नहीं जानते हैं।
तभी तो वृद्धाश्रम ,बूढ़े लोग जाने को मानते हैं।
हर कोई बूढ़ा होता ,क्या लोग नहीं जानते हैं।
संसार एक रहट है,क्या लोग नहीं मानते हैं।
हर सुबह के बाद शाम होती है,
क्या लोग नहीं जानते हैं।
पर अपने को सब बड़ा ही मानते है।
आना-जाना है,सब जानते हैं।
सब मिट्टी है,सब मानते हैं।
यह सब लोग जानते हैं।
परंतु अच्छी सीख नहीं मानते हैं।
बाद मे पछताना जानते हैं।
अच्छे कर्म होते हैं मानते हैं।
पर उन्हें करना नहीं जानते हैं।
कुछ लोग दूसरों को आंधी मे उड़ाना सही  मानते हैं।
कुछ लोग दूसरों को लोहे का चना चबवाना जानते हैं।


(पूनम माथुर)
 
 
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  • रश्मि प्रभा... a year ago

    कुछ लोग दूसरों को आंधी मे उड़ाना सही मानते हैं।
    कुछ लोग दूसरों को लोहे का चना चबवाना जानते हैं।... दुखद है , पर सत्य है
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    sushma 'आहुति' a year ago

    prabhaavshali abhivaykti...
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    कुमार राधारमण a year ago

    यही नीयत है
    यही नियती है
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    डॉ॰ मोनिका शर्मा a year ago

    सार्थक विचार .....
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    ZEAL a year ago

    bahut sundar rachna.
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    डॉ टी एस दराल a year ago

    बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना ।
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    जाट देवता (संदीप पवाँर) a year ago

    सही बताया है आपने।
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    Bhushan a year ago

    सच ही लोग बहुत ज्ञानी हैं. सब कुछ जानते हैं.......परंतु मानते कहाँ हैं.

Monday 3 December 2012

विश्व शौचालय सम्मेलन -भारतीय महिला के भागीदारी

भोरे भोर आज अखबार मे ई समाचार पढ़ के इतना अच्छा लागल हा कि डरबन सम्मेलन मे हिस्सा लेवे खातिर मइला ढोवे वाली महिला राजस्थान के अलवर ज़िला  के ऊषा आऊर रजनी आऊर ज़िला टोंक के डाली परवाना के नाम तय करल गईल बा। ई लोग विश्व शौचालय सम्मेलन मे हिस्सा लिहें। गैर सरकारी संगठन 'सुलभ इन्टरनेशनल' के विनदेश्वरी पाठक  के अगुआई मे हो रहल बा । दिसंबर के पहिलका हफ्ता मे सम्मेलन मे ई बतावल जाई कि शौचालय के नयका तकनीकी का बा आऊर मैला ढोवे के खतम करे पर चर्चा होई। पाठक जी के अनुसार ई महिला लोगन माथा पर से मैला ढोवे के काम से मुक्त करावल गईल बा आऊर पाँच दिन के सम्मेलन मे भाग लेवे के बाद डरबन मे जइहे जहवां पर एक सदी पहले महात्मा गांधी ठहरल रहन ओहे ले जाईल जाई । सुलभ के अनुसार ई महिला लोगन के ई काम से मुक्ति मिल गईल बा आउर ई लोगन के जीवन यापन करे खातिर रोजगार के रूप मे अचार,पापड़ ,बड़ी,आऊर नूडुल्स बना के काम करके आजीविका चल रहल बा। पाठक जी के अनुसार ई तरह के वंचित महिला लोग के समाज के मुख्य धारा से जोड़ कर के उनका भीतर सम्मान से जिये के भावना जाग्रत करे के बा। ई सभ्य समाज समाज मे आज भी मैला ढोवे जईसन शर्मनाक कुप्रथा के खतम करना बहुत ज़रूरी बा। काहे कि आपन  गंदगी दूसरा से उठवाना कहाँ तक वाजिब बा। ज़रा सोंची । का रऊरा  दूसर के गंदगी उठाई ब ?

मानव के विवेक शील प्राणी काहल जा ला। का ए ही विवेकशीलता के परिचय बा?हम सब लोगन से पूछत बानी । इ आपन समाज के का हो गईल बा?

हिंदुस्तान ,लखनऊ,03-12-2012