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Tuesday, 14 May 2013

इंसानियत है?---पूनम माथुर

किसी ने कहा है-'मान करो न पद वैभव का ह तो कागज का फूल है  ,खुद को खुदा समझो यह तो  आप ही की भूल है। '

आज कल लोग धर्म,जाति,पद,मान,वैभव को ही सब कुछ मान बैठे हैं। लेकिन सच्चाई क्या है?कोई जानना नहीं चाहता है। अहंकार में जीना ही जीवन का उद्देश्य  समझते हैं । सही -गलत का भेद सबको पता है। पर अपने अंदर छुपे हुये अहंकार के कारण इस पर पर्दा डाल देते हैं। जब छोटा जीव-जानवर तक सही -गलत का भेद कर सकता है तो इंसान क्यों नहीं?

इसकी शुरुआत अपने घर से ही करनी चाहिए। तभी परिवार,समाज,देश,दुनिया को बदलने में कामयाब होंगे,अन्यथा नही।आज कहीं आर्यसमाज में झगड़े हो रहे हैं कहीं मदर्स डे पर गोली कांड हो गया। कहीं पानी के लिए झगड़ा है,कहीं बिजली के लिए,कहीं बेघर को उजाड़ने का,कहीं भूख से लोग तड़पते हैं। यह क्या है?मानवता है?इंसानियत है?अमीर आखिर कहाँ से पैसा लाते हैं ,वह जनता से ही तो लूटा हुआ है और समृद्धि का राग अलापते हैं। इनसे अच्छा तो कटोरा लेकर भीख मांगने वाला है ।   

5 comments:

  1. आप बिलकुल ठीक कह रही हैं.

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  2. सार्थक अभिव्यक्ति
    लेकिन मरे हुये लोग पर समय बर्बाद
    जिनमें ज़मीर नहीं वे जिंदा हो सकते हैं ?
    सादर

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  3. बहुत सही कहा ...सटीक लेख आभार

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  4. .पूर्णतया सहमत बिल्कुल सही कहा है आपने .आभार . अख़बारों के अड्डे ही ये अश्लील हो गए हैं .

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