एक गरीब बच्चे की नज़र से:-
सिक्कों में खनकते हर एहसास को देखा..
आज फिर मैंने अपने दबें हाल को देखा...
अंगीठी में बन रही थी जो कोयले पे रोटियाँ..
आज फिर मैंने अपनी माँ के जले हाथ को देखा...
बट रही थी हर तरफ किताबे और कापियाँ..
आज फिर मैंने अपने हिस्से के कोरे कागज़ को देखा...
सज रही थी हर तरफ बुलंदियों पर खिड़कियाँ..
आज फिर मैंने अपने धंसते संसार को देखा...
चढ़ रही थी हर तरफ दुआओं की अर्ज़ियाँ..
मंदिर भी माँ मैंने तेरे पांव में देखा...
लग रही थी जब मेरे अरमानो की बोलियाँ..
हर ख्वाब-ए-चादर को अपने पांव की सिमट में देखा...
================================*****=====
हिन्दी दिवस की शुभकामनाओं सहित ---पूनम माथुर
एक गरीब बच्चे की नज़र से:-
सिक्कों में खनकते हर एहसास को देखा..
आज फिर मैंने अपने दबें हाल को देखा...
अंगीठी में बन रही थी जो कोयले पे रोटियाँ..
आज फिर मैंने अपनी माँ के जले हाथ को देखा...
बट रही थी हर तरफ किताबे और कापियाँ..
आज फिर मैंने अपने हिस्से के कोरे कागज़ को देखा...
सज रही थी हर तरफ बुलंदियों पर खिड़कियाँ..
आज फिर मैंने अपने धंसते संसार को देखा...
चढ़ रही थी हर तरफ दुआओं की अर्ज़ियाँ..
मंदिर भी माँ मैंने तेरे पांव में देखा...
लग रही थी जब मेरे अरमानो की बोलियाँ..
हर ख्वाब-ए-चादर को अपने पांव की सिमट में देखा...
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हिन्दी दिवस की शुभकामनाओं सहित ---पूनम माथुर
सिक्कों में खनकते हर एहसास को देखा..
आज फिर मैंने अपने दबें हाल को देखा...
अंगीठी में बन रही थी जो कोयले पे रोटियाँ..
आज फिर मैंने अपनी माँ के जले हाथ को देखा...
बट रही थी हर तरफ किताबे और कापियाँ..
आज फिर मैंने अपने हिस्से के कोरे कागज़ को देखा...
सज रही थी हर तरफ बुलंदियों पर खिड़कियाँ..
आज फिर मैंने अपने धंसते संसार को देखा...
चढ़ रही थी हर तरफ दुआओं की अर्ज़ियाँ..
मंदिर भी माँ मैंने तेरे पांव में देखा...
लग रही थी जब मेरे अरमानो की बोलियाँ..
हर ख्वाब-ए-चादर को अपने पांव की सिमट में देखा...
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हिन्दी दिवस की शुभकामनाओं सहित ---पूनम माथुर
हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल परिवार की ओर से आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपको -----हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल----- पर हम आपको चर्चाकार के लिए शामिल करना चहाते है और हम आपका -----हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल----- पर हार्दिक स्वागत है। हमें आपके सहयोग की है। धन्यवाद...! सादर... ललित चाहार
ReplyDeleteपैसे मांगने वाले जो आते है तो वो कहते है पिताजी घर पर नही
ReplyDeleteगरीबी ने बच्चो को झुठ बोलना सिखा दिया
वाह !! लाजवाब लिखा है पूनम जी
ReplyDeleteVery lovely poem!kishi Garib ka dard sirf ek Garib hi Samj sakta hai aur koi nahi kiu ki usne Garibi Dekhi hai aur mahshush bhi kiya hai fir chahe vo kitna hi amir kiu na ho jayr
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