क्या ले के आए थे सपना
कोई नहीं है जग में अपना
सब हैं मृग मरीचिका के सताये
दुनिया में हैं सब अपने को बहलाये
सब हैं बेगाने कहने को चले अपने
ये क्या जाने खुदा के बनाये
तीर औरों पे कहीं चलाये
निशाना कहीं और लगाये
चले किसी को गले लगाने
पर क्या फायदा अपने को बचाये
सब कुछ है अनबूझ पहेली
सखी रे कोई नहीं तेरी सहेली
सपना टूटा बिखरे अपने
हो गए सब आज पराये
राग और रंग का क्या मिलना
अब तो है सब को अलविदा कहना
एक-एक कर सब को है चलना। ।
---(पूनम माथुर)
कोई नहीं है जग में अपना
सब हैं मृग मरीचिका के सताये
दुनिया में हैं सब अपने को बहलाये
सब हैं बेगाने कहने को चले अपने
ये क्या जाने खुदा के बनाये
तीर औरों पे कहीं चलाये
निशाना कहीं और लगाये
चले किसी को गले लगाने
पर क्या फायदा अपने को बचाये
सब कुछ है अनबूझ पहेली
सखी रे कोई नहीं तेरी सहेली
सपना टूटा बिखरे अपने
हो गए सब आज पराये
राग और रंग का क्या मिलना
अब तो है सब को अलविदा कहना
एक-एक कर सब को है चलना। ।
---(पूनम माथुर)
खरी-खरी बातें ही दिल को छूते
ReplyDeleteसादर