सबेरे सबेरे जब उठनी एखबार 'नई दिशाएँ' देखनी। ओकर पन्ना तीन पर देखनी एक गो चोर बूढ़ी औरत के साईकिल लौटाल देलस । पढ़ के त मन बड़ा खुस हो गईल। जब इंटर में पढ़त रहनी त एगो अङ्ग्रेज़ी के कविता पढ़ले रहीं ओकरा में लिखल रहे 'CHILD IS THE FATHER OF MAN' । बच्चा के बड़ा रूप मनुष्य होला। लोग कहेला बच्चा भगवान के रूप होला। और परमात्मा के बड़ा अच्छा लाईफ साईकिल बा। सबसे पहले बच्चा यानि के बचपन फिर जवानी और अंत में बुढ़ापा । बच्चा त निश्चछल होला। ओकरा में कोनों कल-छ्ल नई खे। अगर अइसे देखीं बालक के मतलब बिना लालच के, जवानी -जब्बर बानी, बुढ़ापा -बुझे के तरफ बानी ।
राज कपूर के सिनेमा में गाना बा-'पहला घंटा -बचपन,दूसरा -जवानी, तीसरा बुढ़ापा।' इ देखावल गई बा के लाईफ के तीन स्टेज बा। अगर आदमी सीख सके तो अच्छा सीख ले न त फिर दुनिया से गो । इ फिलासफी केतना बढ़िया बा दुनिया के समझे के खातिर।'सजन रे झूठ मत बोलो खुदा के पास जाना है;न हाथी है न घोडा है वहाँ पैदल ही जाना है ' । 'बचपन खेल में खोया जवानी नींद भर सोया बुढ़ापा देख कर रोया' ये सब जो उदाहरण सिनेमा में देखावल जा ला सब इंसान के सुधारे के रास्ता होखेला । 'तोरा मन दर्पण कहलाए'।
नई दिशाएँ पढ़ के लागल के इंसान मन के भी दरवाजा खोल सकत । समाचार त बहुत छोटा बाटे पर मन के और दिल के हिला के रख देवे वाला बा। प्यार मोहब्बत से बिना डरइले बिना धमकौले इंसान के दिमाग बदल दिअल जा सकत । इंसान के हृदय परिवर्तन कर दिअल जा सकत । जइसे सिनेमा 'दो आँखें बारह हाथ' में डाकू के हृदय परिवर्तन हो गई रहे । ऊ सब के सुधारवादी तरीका से अच्छा इंसान बने पर ज़ोर दियल गई रहे। अइसे ही अपराधीअन के सुधार करके मुख्य धारा में जोड़ल जा सकत बा। ये एक तरह के मनोवैज्ञानिक नज़रिया बाटे।
सम्राट अशोक एतना मारी मारी,कुट्टा काटी करके खून खराबा करके अंत में का पइले?बाद में त सम्राट अशोक के इ सब से विरक्ति हो गइल उनकरो हृदय परिवर्तन हो गइल ।
सारा दुनिया में चंद पइसा खातिर लूट मार,बम गोला छूट रहल बा ;आतंक मचल बा मानव से मानव के डर बनल बा। मर जइबा सब यहीं छूट जाई। सोच इंसान के बदले के चाहीं। प्यार मोहब्बत से काम करे के चाहीं। आतंक मारा काटी के बदले के चाहीं। स्वस्थ जीवन जिये के हर इंसान में ललक जगावे के चाहीं।फिर देरी काहे के बा। चलीं सब कोई मिल के।
राज कपूर के सिनेमा में गाना बा-'पहला घंटा -बचपन,दूसरा -जवानी, तीसरा बुढ़ापा।' इ देखावल गई बा के लाईफ के तीन स्टेज बा। अगर आदमी सीख सके तो अच्छा सीख ले न त फिर दुनिया से गो । इ फिलासफी केतना बढ़िया बा दुनिया के समझे के खातिर।'सजन रे झूठ मत बोलो खुदा के पास जाना है;न हाथी है न घोडा है वहाँ पैदल ही जाना है ' । 'बचपन खेल में खोया जवानी नींद भर सोया बुढ़ापा देख कर रोया' ये सब जो उदाहरण सिनेमा में देखावल जा ला सब इंसान के सुधारे के रास्ता होखेला । 'तोरा मन दर्पण कहलाए'।
नई दिशाएँ पढ़ के लागल के इंसान मन के भी दरवाजा खोल सकत । समाचार त बहुत छोटा बाटे पर मन के और दिल के हिला के रख देवे वाला बा। प्यार मोहब्बत से बिना डरइले बिना धमकौले इंसान के दिमाग बदल दिअल जा सकत । इंसान के हृदय परिवर्तन कर दिअल जा सकत । जइसे सिनेमा 'दो आँखें बारह हाथ' में डाकू के हृदय परिवर्तन हो गई रहे । ऊ सब के सुधारवादी तरीका से अच्छा इंसान बने पर ज़ोर दियल गई रहे। अइसे ही अपराधीअन के सुधार करके मुख्य धारा में जोड़ल जा सकत बा। ये एक तरह के मनोवैज्ञानिक नज़रिया बाटे।
सम्राट अशोक एतना मारी मारी,कुट्टा काटी करके खून खराबा करके अंत में का पइले?बाद में त सम्राट अशोक के इ सब से विरक्ति हो गइल उनकरो हृदय परिवर्तन हो गइल ।
सारा दुनिया में चंद पइसा खातिर लूट मार,बम गोला छूट रहल बा ;आतंक मचल बा मानव से मानव के डर बनल बा। मर जइबा सब यहीं छूट जाई। सोच इंसान के बदले के चाहीं। प्यार मोहब्बत से काम करे के चाहीं। आतंक मारा काटी के बदले के चाहीं। स्वस्थ जीवन जिये के हर इंसान में ललक जगावे के चाहीं।फिर देरी काहे के बा। चलीं सब कोई मिल के।
काश !!
ReplyDeleteराउर बात सभे लोग मान जाइत
सादर
गूगल प्लस पर प्राप्त टिप्पणी ---
ReplyDeleteVimal Shukla
Yesterday 8:34 PM
That thief will not an India.