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Friday 4 October 2013

बात है -दिल की ,समय की -बात है -----पूनम माथुर




 (1 )
बात  है :
परसों की है बात
बना रही थी रोटी सात
कलम और कागज की है बात 
चकले  और बेलन की है बात
न कागज था न दवात 
आ रहे थे मन में खयालात 
चूल्हे पर सेंक रही थी रोटी 
कभी चकले पर रोटी 
कभी तवे पर रोटी 
ख्याल आ -जा रहे थे जैसे 
पकने और जलने जैसे 
हाथ का काम कलम से भी था 
हाथ का काम चकले से भी था 
पुरानी है चकले और कलमकी दोस्ती 
इसके बिना न है इंसान की कोई हस्ती 
रोटी और कलम से ही है इंसान की बस्ती 
नहीं चलती इसके बिना जीवन की कश्ती 
पर जीवन राक्षस और रावण के लिए है सस्ती 
भाईचारे और प्यार-प्रेम से होगी जीवन में मस्ती 
रंग लाएगी तब विधाता की गृहस्थी । ।  

(2)

दिल की बात :
किसी का सब मिल जाता है 
किसी का सब लुट जाता है 
किसी का घर आबाद हो जाता है 
किसी का घर तबाह हो जाता है 
किसी के मन में अंधेरा हो जाता है 
किसी के मन में उजाला हो जाता है 
किसी को हर बार छला जाता है 
किसी को हर बार सहा जाता है 
दूसरे का दुख देख कर कोई बुद्ध हो जाता है 
घर बार छोड़ कर मन शुद्ध हो जाता है 
 पर आज दूसरे का माल हड़प कर कोई  गिद्ध हो जाता है 
आँखों में  न्याय की आस  लिए कोई  वृद्ध हो जाता है 
दिल की बातें खुद दिल से की जाती हैं 
रोना है तो खुद रो लें किसी से कही नहीं जाती हैं। ।  

(3 )
समय:
कुछ लोग सकुचाये हुये हैं 
कुछ लोग घबराए हुये हैं 
कुछ लोग सताये हुये हैं 
कुछ लोग शरमाये हुये हैं 
कुछ लोग तड़पाये हुये हैं 
कुछ लोग आँखों से पर्दा उठाए हुये हैं 
क्योंकि ये लोग समाज के बनाए हुये हैं 
समाज में अपने आप को ऊंचा उठाए हुये हैं 
इसी लिए तो सबके ऊपर शासन जमाये हुये हैं। ।
 

1 comment:

  1. bhookhe pet kavita nahi ho sakti ... bahut achhi lagi aapki kavitaayen

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